राजनीति

जयगढ़ किले में छुपा था अरबों का खजाना, इंदिरा गांधी ने 5 महीने तक करवाई थी किले की खुदाई

भारत में आज भी ऐसी कई जगह हैं जहां पर अरबों-खरबों का खज़ाना छुपा हुआ है। दरअसल भारत की धरती पर राजा-महाराजाओं ने कई सालों तक राज किया है। वहीं जब अन्य देशों के लोगों ने भारत में आक्रमण करना शुरू किया तब कई सारे राजाओं ने अपने धन को सुरक्षित रखने के लिए छुपा दिया था और आज तक ये खजाना किसी के हाथ नहीं लग पाया है।

आज हम आपको एक ऐसी ही जगह के बारे में बताने जा रहे हैं। जहां पर अरबों-खरबों का खजाना छुपा हुआ था। ये जगह राजस्थान में है और ऐसा माना जाता है कि इस राज्य के जयगढ़ किले में अरबों का खजाना छुपा हुआ था। इतिहासकारों के अनुसार राजस्थान के जयगढ़ किले का निर्माण जयपुर के महाराज सवाई जयसिंह ने करवाया था, जो कि मुगल बादशाह अकबर के सिपहसालार थे। ऐसा कहा जाता है कि उस दौरान राजा मान सिंह और अकबर के बीच एक संधि हुई थी। जिसके तहत राजा मान सिंह और अकबर ने ये फैसला लिया था कि जिस भी क्षेत्र पर राजा मान सिंह विजय हासिल करेंगे वो क्षेत्र अकबर का हो जाएगा। जबकि उस क्षेत्र से जुड़ा सारा खजाना राजा मान सिंह को दिया जाएगा।

इसी तरह से राजा मान सिंह ने कई राज्यों पर विजय हासिल की और वहां से जीता हुआ सारा खजाना राजस्थान के जयगढ़ किले में छुपा दिया। इतिहास की इस कहानी का सूबत कई सारे पुराने दस्तावेजों में भी मिलता है। दरअसल जयगढ़ के पुराने किलेदार के पास से कुछ दस्तावेज मिले थे जो इस बात की और इशारा करते थे कि जयगढ़ किले में खूब सारा खजाना रखा गया था। इसके अलावा जयसिंह खवास को भी इस खजाने के बारे में जानकारी थी।

जब भारत आजाद हुआ तो सरकार द्वारा इण्डियन ट्रेजर ट्रोव एक्ट बनाया गया। इस एक्ट के मुताबिक देश में छुपे सभी खजाने पर भारत सरकार का हक था। वहीं जो भी भारत सरकार को खजाने के बारे में जानकारी देता था। उसे सरकार द्वारा कुल संपत्ति का 2 प्रतिशत दिया जाता था। कुल संपत्ति का 2 प्रतिशत मिलने के चलते कुछ लोगों ने सरकार को जयगढ़ किले में रखे खजाने के बारे में जानकारी दी। जिसके बाद सरकार ने इस खजाने की खोज शुरू कर दी।

कहा जाता है कि जयपुर रियास के आखिरी महाराजा सवाई भवानी सिंह के पास कुछ दस्तावेज थे। जिसमें इस खजाने का जिक्र था। इसके अलावा अरबी पुस्तक ‘तिलिस्मात-ए-अम्बेरी’ में भी जयगढ़ के किले के बारे में लिखा गया था और इस किताब में भी इसी चीज को और इशारा किया गया था कि इस किले के अंदर खूब सारी दौलत है ।

जब सरकार को इस दौलत के बारे में पता चला, तो बिना कोई देरी किए सरकार ने इस खजाने को अपने कब्जे में लेने का काम शुरू कर दिया। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी के समय जयगढ़ किले से खजाना निकालने का काम सरकारी अफसरों को सौंप और कुल पांच महीनों तक सरकारी अफसरों द्वारा किले के अंदर खजाने की खोज की गई। कहा जाता है कि भारत सरकार ने खजाना खोजने के लिए सेना की 37वीं इंजीनियर्स कोर की मदद ली थी।

किले से निकला था महज थोड़ा सा ही खजाना

जयगढ़ किले में 5 महीने तक की गई खुदाई में महज 230 किलो चांदी का सामान ही मिला था। सेना ने खुदाई में निकले इस सामान को राजपरिवार के प्रतिनिधि को दिखाकर कब्जे में ले लिया था और दिल्ली भेज दिया था। हालांकि ऐसा माना जाता है कि इस किले में सरकार द्वारा खुदाई किए जाने से पहले ही यहां से खजाना निकाल लिया गया था।

इस तरह से दिल्ली भेजा गया था खजाना

राज्यमार्ग से इस खजाने को दिल्ली भेजा गया था और इस खजाने को सेना के ट्रकों का काफिला दिल्ली लाया था। उस दौरान जयपुर-दिल्ली का राजमार्ग पूरी तरह से बंद कर दिया गया और भारी सुरक्षा के साथ ये खजाना दिल्ली में लाकर दिल्ली छावनी में रख गया था।

इंदिरा गांधी ने किया खजाना मिलने से माना

किले के अंदर से खजाना मिलने की खबर पाकिस्तान देश के पास भी पहुंच गई थी। जिसके बाद पाकिस्तान की और से एक पत्र इंदिरा गांधी को लिखा गया था और उस पत्र में पाकिस्तान ने इस खजाने पर अपना हक भी बताया था। पाकिस्तान की और से कहा गया था कि विभाजन के पूर्व के समझौते के अनुसार जयगढ़ की दौलत पर पाकिस्तान का हिस्सा बनता है। अगस्त 11, 1976 को पाकिस्तान की और से लिखे गए इस पत्र पर इंदिरा गांधी ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए पाकिस्तान से कहा था कि खजाने के हिस्से पर पाकिस्तान देश का कोई भी हक नहीं है और खजाने पर पाकिस्तान का कोई भी दावा नहीं बनता है। इंदिरा गांधी ने जो पत्र पाकिस्तान को लिखा था उसमें ये भी कहा था कि जयगढ़ में किसी भी तरह का खजाना नहीं मिला है।

अपने कब्ज में ले लिया था किला

खजाने की खोज के लिए भारत सरकार ने 25 फरवरी 1976 को जयगढ़ के किले को राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर दिया था। हालांकि  ब्रिगेडियर भवानी सिंह ने सरकार के इस फैसले को स्वीकार नहीं किया था और इस किले को राजपरिवार की संपत्ति बताया था। भवानी सिंह के प्रयासों की वजह से ही मई, 1982 को ये किला दोबारा से राजपरिवार को दे दिया गया था।

किला वापस मिलने के बाद इसे 27 जुलाई 1983 को सार्वजनिक कर दिया गया था और अब दूर-दूर से लोग इस किले को देखने के लिए आया करते हैं।

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