रानी लक्ष्मीबाई के बलिदान के बाद अंग्रेजों ने लक्ष्मीबाई के बेटे का किया था ऐसा हाल
रानी लक्ष्मी बाई के जीवन के बारे में लगभग हर कोई जानता है और रानी लक्ष्मीबाई के बहादुरी के किस्से आज भी प्रचलित हैं। लेकिन रानी लक्ष्मीबाई के निधन के बाद उनके वंश यानी उनके बेटे दामोदर राव के साथ क्या हुआ था? इसके बारे में बेहद ही कम लोग जानते हैं। दरअसल रानी लक्ष्मी बाई ने दामोदर राव को गोद लिया था और अपने राज्य का उतराधिकार बनाया था। लेकिन अंग्रेजों द्वारा दामोदर राव को झांसी का राजा नहीं माना गया और अंग्रेजों द्वारा रानी लक्ष्मी बाई से उनका राज्य छीनने की कोशिश की गई। रानी लक्ष्मी बाई ने अपनी अंतिम सांस तक अंग्रेजों से मुकाबला किया और इसी दौरान वो शहीद हो गई। ऐसा कहा जाता है कि रानी के निधन के बाद उनके बेटे दामोदर राव जो कि एक राजा हुआ करते थे। उन्हें भीख मांगकर अपना जीवन जीना पड़ा। इतिहासकारों के अनुसार रानी लक्ष्मीबाई के शहीद होने के बाद उनके बच्चे का पालन सिपाहियों द्वारा किया गया और दामोदर को बेहद ही गरीबी में रहना पड़ा।
इतिहासकार ओम शंकर असर के मुताबिक रानी लक्ष्मी बाई ने युद्ध के दौरान सरदार रामचंद्र राव देशमुख को दामोदर राव की जिम्मेदारी सौंप थी और उन्होंने दो साल तक दामोदर का पालन किया था। इस दौरान वो दामोदर राव के साथ जंगल में रहता करते थे। वहीं कुछ सालों बाद दामोदर को अंग्रेजों द्वारा पकड़ लिया गया और दामोदर राव को साल 1860 में इंदौर भेज दिया गया।
ब्राह्मण परिवार ने किया लालन पालन
इंदौर के रेजिडेंट रिचमंड शेक्सपियर ने दामोदर को मीर मुंशी पंडित धर्मनारायण सौंप दिया और मीर मुंशी पंडित धर्मनारायण द्वारा दामोदर का लालन-पालन किया गया। इतना ही नहीं अंग्रेजों द्वारा दामोदर राव को महज 150 रुपए प्रति महीने पेंशन दी जाती थी। साल 1848 में पैदा हुए दामोदर ने अपना जीवन इंदौर में ही गुजारा और इंदौर की ही एक लड़की से विवाह किया। इस विवाह से इन्हें 23 अक्टूबर 1879 में एक पुत्र हुआ जिसका नाम इन्होंने लक्ष्मण राव रखा। वहीं 28 मई 1906 को इंदौर में रानी लक्ष्मी बाई के पुत्र दामोदर का निधन हो गया।
दामोदर के बेटे लक्ष्मण राव के दो पुत्र थे जिनका नाम कृष्ण राव और चंद्रकांत राव था। इतिहासकारों के अनुसार कृष्ण राव के दो पुत्र मनोहर राव और अरूण राव थे और चंद्रकांत के तीन पुत्र अक्षय चंद्रकांत राव, अतुल चंद्रकांत राव और शांति प्रमोद चंद्रकांत राव थे। वहीं लक्ष्मण राव ने चार मई 1959 को अपनी अंतिम सांस ली। ऐसा कहा जाता है कि लक्ष्मण राव को इंदौर के बाहर जाने की अनुमति नहीं थी और उन्हें हर महीने 200 रुपए पेंशन के तौर पर दिए जाते थे। लेकिन दामोदर के निधन के बाद ये पेंशन 100 रुपए कर दी गई थी।
वहीं साल 1923 में दामोदर राव को दी जाने वाली पेंशन महज 50 रुपए कर दी गई। इसके बाद साल 1951 में यूपी सरकार ने रानी के नाती को मासिक सहायता देना शुरू किया और उन्होंने 50 रुपए दिए जाने लगें। हालांकि बाद में 50 रुपए की जगह 75 रुपए पेंशन के तौर पर उन्हें मिलने लगे। वहीं आज रानी लक्ष्मी बाई का वंश कहां हैं इसके बारे में किसी को भी जानकारी नहीं है और इनका वंश गुमनामी की जिंदगी जी रहा है।