ओशो को कोई मानता था भगवान तो कोई खलनायक, इनके भक्तों का ये तोहफा आज भी बना है हुआ है मिसाल
देश में बहुत से अध्यात्म गुरु हैं लेकिन कुछ ऐसे हैं जिनका नाम आज तक खराब नहीं हुआ और आज भी उनका नाम सम्मान से लिया जाता है। उन्हीं में से एक हैं ओशो, जिनकी नीतियों को सुनकर बहुत से लोग अपना जीवन व्यतीत करते हैं। जब कभी ओशो का नाम आता है, तो दुनिया दो अलग-अलग भागों में बांट दिया जाता है। इनमें एक भाग ‘ओशो’ को भगवान मानता है तो दूसरा भाग उन्हें खलनायक मानता है। हालांकि, ओशो पर कभी इसका फर्क नहीं पड़ा कि कौन उनके साथ है या कौन उनके खिलाफ है। ओशो को कोई मानता था भगवान तो कोई खलनायक, चलिए बताते हैं उनके जीवन से जुड़े कुछ तर्क।
ओशो को कोई मानता था भगवान तो कोई खलनायक
ओशो को शुरुआती दिनों में रजनीश नाम से लोग पहचानते थे और इनका जन्म 11 दिसंबर 1939 को मध्यप्रदेश के रायसेन जिले के कुचवाड़ा गांव में हुआ था। ओशो ने करियर की शुरुआत बतौर लेक्चरर की थी लेकिन बाद में ये ओशो के नाम से पूरी दुनिया में लोकप्रिय हुए। कामुकता पर उनके बेबाक राय को कई जगहों पर सराहा गया तो कई जगहों पर वे बदनाम भी हुए लेकिन ओशो के भक्तों में कभी कमी नहीं आई। अपने भक्तों के लिए ओशो केवल भगवान के रूप में ही पूजे जाते थे और यही कारण था कि ओशो के पास तोहफे में दी गई कई Rolls Royace जैसी कारें थीं।
ओशो के पास 90 से भी ज्यादा Rolls Royace का कारें हुआ करती थीं। इस बात को ओशो बड़े शान से हर किसी से बताया करते थे। उनका कहना था कि उनके भक्त चाहते हैं कि उनके पास 365 Rolls Royace कारें हों, जहां वो हर अलग दिन के लिए अगल Rolls Royace का इस्तेमाल कर सकें। साल 1981 से 1985 के बीच में ओशो उर्फ रजनीश अमेरिका गए और यहां उनके भक्तों ने ओरेगन प्रांत में 65,000 एकड़ ज़मीन पर उनके लिए आश्रम भी बनवाया। ओशो का अमेरिका प्रवास काफी विवादास्पद बन गया था। ओशो महंगी घड़ियों, रोल्स रॉयस कारों और डिजाइनर कपड़ों के कारण हमेशा सुर्खियों में बने रहे।
ओशो को दुनिया के 21 देशों में बैन कर दियागया था और साल 1985 में ओशो को जर्मनी में गिरफ्तार कर लिया गया था। ओशो कामुकता और नशे की स्वतंत्रता के लिए हमेशा आवाज उठाते रहे हैं। उनके सभी प्रवचनों को मिलाकर साल 1968 में एक किताब पब्लिश की गई थी। इस किताब का नाम संभोग से समाधि की ओर रखा गया था जिसे लोगों ने खूब खरीदा। मगर फिर भी इनकी आलोचनाओं में कोई कमी नहीं रही, और जैसे-जैसे इनके आलोचकों की संख्या बढ़ी वैसे ही इन्हें लोगों ने भगवान का दर्जा दिया रहा।
80 का दौर था जब एक्टर विनोद खन्ना ने अपने उभरते करियर को ठुकराकर अमेरिका जाकर ओशो की शरण ले ली थी। यहां पर वे कई महीनों तक उनकी शरण में रहकर दीक्षा ले लिए और अपने घर-परिवार से दूर ओशो की बातों का पालन करने लगे थे। उन दिनों ओशो को हर कोई पहचानता था और उनकी शरण में जो एक बात जाता वापस नहीं आ पाता था और लोगों को लगा कि विनोद खन्ना कभी वापस नहीं आएंगे। मगर 6 महीनों तक वहां रहने के बाद वे वापस आए और फिल्मों में वापसी की थी। इसके अलावा वे राजनीति में भी एक्टिव रहे।