‘बेचारी नहीं, बेमिसाल है बेटियां’, इस बात को सच साबित कर रही हैं ये बेटियां, जानकर होगा गर्व
भारत में बेटियों को अभिषाप समझा जाता है लेकिन अब बहुत से लोगों की सोच बदल रही है और बेटियों को बेटों के बराबर का हक दिया जाने लगा है। फिर भी ये सोच अभी हर किसी की नहीं है वे आज भी बेटियों को बेचारी और अबला समझकर उन्हें बाहर की आजादी और पढ़ने से वंचित रखकर उन्हें घर का काम करने पर मजबूर किया जाता है। मगर ‘बेचारी नहीं, बेमिसाल है बेटियां’, इस बात को सच साबित कर रही हैं ये बेटियां, ऐसा क्या किया इन्होंने चलिए बताते हैं।
‘बेचारी नहीं, बेमिसाल है बेटियां’, इस बात को सच साबित कर रही हैं ये बेटियां
हौसला अगल बुलंद होता है तो हर मुश्किल आसान हो जाती है। ये बात आपने सुनी होगी लेकिन यूपी के हरदोई की इन बेटियों ने इसे साकार कर दिया है। गरीबी और पारिवारिक हालात को समझकर उसे पीछे छोड़ने की बात को अपने अंदर बसा चुकी इन बेटियों ने कुछ अलह करने की ठानी है। जीजीआईसी की छात्रा आंशी शुक्ला ने 10वीं में टॉप किया और 81 प्रतिशत अंक भी प्राप्त किए। आंशी का इस बारे में कहना है कि बैटगंज निवासी उनके पिता शिव प्रकाश शुक्ला का निधन 5 साल पहले हो गया था और इसके बाद उनके नाना सुरसा के गोहरी निवासी रामप्रकाश त्रिपाठी के यहां उनकी परवरिश हुई। आंशी के पिता चाहते थे कि वो सबसे अच्छी शिक्षिक बने और वो उस सपने को पूरा करने के लिए मेहनत कर रीह है। इनकी मां सुधा शुक्ला हाउसवाइफ हैं और शिक्षिकाएं भी आंशी की पढाई से खुश रहती हैं। फैशन डिजाइनर बनने का सपना साकार कनरे में जुटी कुलसुम टोंडरपुर के सलेमपुरराय निवासी की भी तारीफ हो रही है। सलेमपुर से अहिरोरी और फिर हरदोई महिला आईटीआई तक आने और जाने में हर दिन 45 किलोमीटर का सफर तय करती है।
करीब 7 किलोमीटर पैदल चलकर हर दिन स्कूल जाने वाली कुलसुम फैशन डिजाइनर बनना चाहती हैं। गरीबी को मात देकर आगे बढ़ना चाहती हैं और अपने 6 भाई-बहनों की परवरिश करना चाहती हैं। इसी तरह सुरसा के ललौली तिहारा निवासी पूजा देवी महिला आईटीआई से सिलाई का प्रशिक्षण कर रही हैं। इनका कहना है कि हर बेटी को हुनरमंद होना चाहिए और सिलाई सीखकर खुद को हुनरमंद बनाया जा सकता है। इनके पिता श्रीकृष्ण चाय की दुकान चलाते हैं और घर का खर्चा किसी तरह बस चल पाता है।
कुछ इसी तरह अहिरोरी के महुईपुरी निवासी दीक्षा राजकीय बालिका इंटर कॉलेज में 11वीं में पढ़ती है। जनपदीय माध्यमिक बैडमिटन प्रतियोगिता में दूसरा स्थान जीतकर सिल्वर मैडल हासिल किया। स्कूल से मिले संसाधनों से ही दीक्षा अपने सपनों को पूरा कर सकती हैं क्योंकि उनके घर की स्थिति अच्छी नहीं है लेकिन अपनी मेहनत से वे ओलंपिक में जाना चाहती हैं और अपने माता-पिता का नाम रोशन करेंगी।