अध्यात्म

रामायण का ज्ञान : बुरी परिस्थिति आने पर अपने लक्ष्य से भटकने की जगह चतुराई से काम लें

सुंदरकाण्ड रामायण का ही एक भाग है और सुंदरकाण्ड हनुमान जी से जुड़ा हुआ है। सुंदरकाण्ड की शुरूआत हनुमान जी के लंका प्रस्थान से होती है और इसमें बताया गया है कि किस तरह से हनुमान जी रावण की सोने की लंका को जला देते हैं। सुंदरकाण्ड पढ़ने से हमें कई चीजे सीखने को मिलती हैं और किसी तरह से अपना लक्ष्य हासिल किया जाए इस चीज का ज्ञान भी सुंदरकाण्ड के जरिए प्राप्ति किया जा सकता है।

दरअसल सुंदरकाण्ड के एक प्रसंग के अनुसार हनुमान जी जब लंका जाने लगे तो उन्हें रास्ते में नदी दिखाई दी। इस नदी को पार करके ही लंका तक पहुंचा जा सकता था। इस नदी को पार करने के लिए हनुमान जी जैसे ही उड़े तो उनका सामना सुरसा नामक राक्षसी से हुआ। सुरसा इसी नदी में रहा करती थी और वो किसी को भी ये नदी पार नहीं करने देती थी। हनुमान जी को ये नदी पार करता देख सुरसा ने अपना आकार बड़ा कर लिया। सुरसा को बड़ा होता देख हनुमान जी ने भी अपना आकर बड़ा कर लिया। लेकिन जैसे ही सुरसा ने अपना मुंह खोला तो हनुमान जी ने अपना आकार छोटा कर लिया और उसके मुंह से बाहर निकल आएं।

इस चीज का वर्णन सुंदरकाण्ड में करते हुए लिखा हुआ है – ‘सत जोजन तेहिं आनन कीन्हा। अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा’।

यानी जैसे-जैसे सुरसा का मुख बढ़ता गया हनुमान जी इसका दोगुना रूप लेते गए। सुरसा ने सो योजन यानी सौ कोस का मुख किया। तब हनुमान जी ने बहुत ही छोटा रूप धारण कर लिया और सुरसा के मुंह से निकल आए।

हनुमान जी चाहते तो वो सुरसा से युद्ध कर सकते थे और आसानी से सुरसा को युद्ध में हरा भी सकते थे। लेकिन हनुमान जी ने सुरसा से युद्ध ना करने का फैसला किया। क्योंकि हनुमान जी को पता था कि उनका लक्ष्य सुरसा से युद्ध करना नहीं है। बल्कि लंका जाकर सीता मां से मिलने का है।

अगर हनुमान जी सुरसा से युद्ध करते तो उनकी ऊर्जा नष्ट होती और वो अपने लक्ष्य पर ध्यान नहीं दे पाते। इसलिए हनुमान जी ने युद्ध करने की जगह चतुराई से काम लिया और आसानी से नदी पार कर लंका चले गए। लंका जाकर हनुमान जी ने सीता मां की खोज की और उनसे मिलकर उन्हें राम जी का संदेश दिया। वहीं जब हनुमान जी को पकड़कर रावण के सामने पेश किया गया तो हुनमान जी ने पहले बातों के जरिए रावण को समझाने की कोशिश की। लेकिन जब रावण नहीं माना तो हनुमान जी ने पूरी लंका को आग लगा दी और रावण का घमंड तोड़ दिया।

रामायाण के इस अध्याय को पढ़कर हमें इस चीज की शिक्षा मिलती है कि हमें हमेशा अपने लक्ष्य पर ही ध्यान देना चाहिए। कई बार लक्ष्य हासिल करते हुए ऐसी परिस्थितियां आती हैं जो कि लक्ष्य से भटकाने का काम करती हैं। लेकिन अगर आप हनुमान जी की तरह ही अपने लक्ष्य पर ही ध्यान रखते हैं तो जरूर कामयाब होते हैं।

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