अध्यात्म

जानें क्यों किया जाता है श्राद्ध और क्या होती है श्राद्ध कर्म विधि

श्राद्ध कर्म विधि : हमारे शास्त्रों में पितृपक्ष का जिक्र करते हुए कहा गया है कि “श्रद्धयां इदम् श्राद्धम्” यानी पितरों के निमित्त श्रद्धा से किया गया कर्म श्राद्ध होता है। हर साल लोगों द्वारा श्राद्ध किया जाता है और श्राद्ध करने से पितर खुश हो जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि श्राद्ध कर्म विधि के तहत जो तर्पण करते हैं, उससे पितर खुश हो जाते हैं और उनका आशीर्वाद मिल जाता है। हिंदू धर्म में श्राद्ध का विशेष महत्व है और इसे करने से पितर दोष भी नहीं लगता है। श्राद्ध क्या होता है, इसे कैसे किया जाता है और श्राद्ध कर्म विधि क्या है इसकी जानकारी इस तरह से है।

क्या होता है श्राद्ध

हर साल अश्विन माह के कृष्ण पक्ष में श्राद्ध आते हैं और इस दौरान पितरों के निमित्त पिंडदान किया जाता है। अश्विन माह के कृष्ण पक्ष से अमावस्या तक श्राद्ध किया जाता है और श्राद्ध 16 दिनों तक चलते हैं। शास्त्रों में श्राद्ध के बारे में कहा गया है कि हमारे पितर पितृगण पितृपक्ष में धरती पर आते हैं और 16 दिनों तक वो धरती पर रहते हैं। इस दौरान पितृ अपने परिजनों के आस-पास रहते हैं। वहीं श्राद्ध खत्म होने के बाद वो वापस से लोक चले जाते हैं।

पितरों का श्राद्ध करने से उनके मन को शांति मिलता है और वो संतुष्ट होकर वापस से अपने लोक जाते हैं। वहीं अगर अपने पितरों का श्राद्ध सही से ना किया जाए तो वो नाराज हो जाते हैं और ऐसा होने पर आपको पितर दोष लग जाता है। पितर दोष लगने पर जीवन में परेशानिया खड़ी होने लग जाती है। यहीं वजह है कि श्राद्ध के समय लोग अपने पूर्वजों को खुश करने के लिए उनके नाम का श्राद्ध जरूर किया करते हैं।

श्राद्ध को लेकर गरूड़ पुराण में लिखा गया है कि इसे करने से पितर ऋण से मुक्ति मिलती है। गरूड़ पुराण के अनुसार श्राद्ध करने से आने वाला कुल खुश रहता है और कुल के लोग के जीवन में परेशानियां नहीं आती है। पितरों की पूजा करने से घर के लोगों की आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, श्री, पशु, सुख और धन की प्राप्ति होती है। देवताओं की तरह ही पितरों को प्रसन्न करना कल्याणकारी होता है। इसलिए हर किसी को अपने पितरों का श्राद्ध जरूर करना चाहिए।

कब करना चाहिए श्राद्ध

  • श्राद्ध कुल 16 दिनों के होते हैं और इन 16 दिनों में से किस दिन आपको अपने पितरों का श्राद्ध करना चाहिए ये इस बात पर आधारित होता है कि आपके पितरों की मृत्यु कैसे हुई थी।
  • जिन लोगों की सामान्य मृत्यु चतुर्दशी को होती है उनका श्राद्ध पितृपक्ष की त्रयोदशी तिथि या अमावस्या के दिन करना चाहिए।
  • जो व्यक्ति किसी प्रकार की दुर्घटना, हत्या, आत्महत्या और अन्य किसी प्रकार के कारण मरते हैं। उनका श्राद्ध मृत्यु तिथि वाले दिन ना करें। ऐसे लोगों का श्राद्ध केवल चतुर्दशी तिथि को करना चाहिए।
  • जो स्‍त्रियां सुहागन मरती हैं उनका श्राद्ध पितृपक्ष की नवमी तिथि को करना उचित होता है।
  • संन्यासियों लोगों का श्राद्ध पितृपक्ष की एकादशी को करना उत्तम माना जाता है।
  • नाना और नानी का श्राद्ध अश्विन शुक्ल प्रतिपदा को किया जाता है।
  • स्वाभाविक रूप से जिन लोगों की मृत्यु होती है उनका श्राद्ध भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा या आश्विन कृष्ण अमावस्या को करना चाहिए।
  • जिनकी मृत्यु अविवाहित हुई हो, उनका श्राद्ध पंचमी तिथि को किया जाना चाहिए।

इस तरह करें श्राद्ध कर्म

श्राद्ध कर्म विधि बेहद ही सरल होती है और आप अपने घर में आसानी से श्राद्ध कर्म विधि कर सकते हैं। श्राद्ध कर्म विधि के तहत ब्राह्मणों की सेवा की जाती है और इन्हें भोजन करवाया जाता है। वहीं श्राद्ध कर्म विधि कैसे की जाती है इसकी जानकारी इस तरह से है –

  • जिन दिन आपके पितरों का श्राद्ध है आप उस दिन घर को अच्छे से साफ कर लें। घर को साफ करने के बाद आप स्नान कर लें।
  • इसके बाद आप अपने घर में गंगाजल को छिड़क लें।
  • गंगा जल छिड़कने के बाद आप एक तांबे का बर्तन ले लें और इस बर्तन के अंदर तिल, दूध, गंगाजल और पानी डाल दें। ये करने के बाद आप बर्तन के अंदर डाली इन चीजों को अच्छे से मिला लें।
  • अब आप इस जल को हाथों में भर लें और अपने सीधे हाथ के अंगूठे की मदद से इस जल को वापस से तांबे के बर्तन में डाल दें। आप अपने पितरों का नाम लेते हुए ये प्रक्रिया 11 बार करें। याद रहे कि पूजा करते समय आपका मुंह दक्षिण दिशा की तरफ होना चाहिए।
  • श्राद्ध के दौरान ब्राह्मण को खाना जरूर खिलाया जाता है। इसलिए आप अपने घर में इस दिन दही, खीर, चावल और अन्य तरह की चीजों को बना लें।
  • श्राद्ध की पूजा करने के बाद ब्राह्मण को अपने घर में बुलाकर उनके पैरों को साफ करें और उनको खाने की ये सभी चीजें परोस दें।
  • हालांकि ब्राह्मण को ये चीजें देने से पहले आप गाय, कौए, देवता और चींटी के लिए खाना अलग से निकला लेंं और सबसे पहले देवताओं को खाना अर्पित कर दें। वहीं ब्राह्मण को भोजन करवाने के बाद आप चींटी, गाय और कौए के सामने ये भोजन रख दें।
  • भोजन करवाने के बाद ब्राह्मण का आशीर्वाद भी जरूर लें।

कितने ब्राह्मण को करवाए भोजन

श्राद्ध का भोजन आप एक, तीन या पांच ब्राह्मण को करवा सकते हैं। वहीं भोजन करवाने के बाद आप ब्राह्मण को चीजों का दान भी करें। श्राद्ध के दौरान चीजों का दान करने का काफी महत्व माना जाता है। इसलिए आप भोजन करवाने के बाद ब्राह्मण को घी, खाने की चीजें, वस्त्र, चांदी, पैसे, नमक और इत्यादि चीजे दान कर सकते हैं। ब्राह्मण के अलाावा आप चाहें तो गरीब लोगों को भी भोजन करवा सकते हैं और उनको चीजों का दान कर सकते हैं।

जो लोग सच्च में से श्राद्ध कर्म विधि करते हैं और ब्राह्मण को भोजन करवाते हैं। उन लोगों के पितर उनसे खुश हो जाते हैं। हालांकि ब्राह्मण को खाना खिलाने के बाद आप कौए के सामने भी भोजन को जरूर रखें। ऐसा कहा जाता है कि अगर कौआ आपके द्वारा रखे गए भोजन को खा लेते हैं। तो इसका मतलब होता है कि आपके पितर आप से खुश हैं और उन तक आपका भोजन पहुंच गया है।

श्राद्ध करने से जुड़ी अन्य महत्वपूर्ण जानकारी

  • अगर आपको भोजन करवाने के लिए कोई ब्राह्मण नहीं मिलता है, तो आप श्राद्ध का भोजन मंदिर में जाकर चढ़ा दें। भोजन के अलावा आप चाहें तो मंदिर में दाल, चावल, दूध और सफेद रंग के वस्त्र भी रख सकते हैं।
  • श्राद्ध चलने के दौरान शराब और मांसाहारी चीजों का सेवन करना वर्जित माना जाता है। इसलिए आप श्राद्ध शुरू होने से लेकर इनके खत्म होने तक इन चीजों का सेवन ना करें।
  • श्राद्ध के दौरान किसी भी शुभ कार्य को शुरू नहीं करना चाहिए और ना ही कोई नई वस्तु खरीदनी चाहिए।
  • गरीब लोगों को जितना हो सके उतना दान करना चाहिए।
  • अगर आपको अपने पितरों की मृत्यु का कारण या तारीख नहीं पता है तो आप उनका श्राद्ध सर्वपितृमोक्ष अमावस्या के दिन करे दें।
  • पिंडदान करते समय आप सफेद या पीले रंग के वस्त्र ही धारण करें।

श्राद्ध के दौरान जरूर करें इन मंत्रों का जाप

ॐ कुलदेवतायै नम:- इस मंत्र का जाप  21 बार करें।
ॐ कुलदैव्यै नम: ये मंत्र कम से कम  21 बार जरूर बोलं।
ॐ नागदेवतायै नम: ये मंत्र  51 बार जपें।
ॐ पितृ देवतायै नम: इस मंत्र को 108 बार बोलें।

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