कथा: दान का धन नहीं, मेहनत से कमाए गया धन सच्चा आनंद देता है
एक गांव में एक संत अपनी पत्नी के साथ रहा करता था। ये संत बेहद ही ज्ञानी था और इस संत के पास हर समस्या का हल जरूर होता था। हालांकि ये संत काफी गरीब था और इस संत के पास खेती करने के लिए थोड़ी सी ही जमीन थी। संत और उसकी पत्नी दिन रात खेती किया करते थे और खेती कर किसी तरह से अपना जीवन यापन कर रहे थे। संत की गरीबी के बारे में गांव के हर व्यक्ति को पता था और लोग संत की मदद करने के लिए हमेशा उन्हें कुछ ना कुछ दान दिया करते थे। हालांकि ये संत हर बार लोगों द्वारा दिया गया सामान उन्हें वापस कर देता था और लोगों से पैसे लिए बिना ही उन्हें धर्म का ज्ञान देता था।
इस राज्य के राजा के दो पुत्र हुआ करते थे और दोनों पुत्र जुड़वा थे। राजा हमेशा इसी सोच में रहता था कि वो किस पुत्र को अपना उत्तराधिकारी बनाएं। एक दिन राजा को इस दुविधा में देख। राजा के मंत्री ने उनसे कहा, महाराज आपके राज्य में एक संत रहता है और उस संत के पास हर समस्या का हल है। आप एक बार उस संत से जाकर मिल लें। क्या पता उस संत के पास आपकी इस समस्या का हल हो। अपने मंत्री की बात मानते हुए राजा संत से मिलने के लिए गया और राजा ने संत को बताया कि उसके दो पुत्र हैं, जो कि जुड़वा है और ऐसा में उन्हें ये समझ नहीं आ रहा है कि वो किसे अपना उत्तराधिकारी बनाएं।
राजा की बात सुन संत ने कहा, महाराज उत्तराधिकारी चुनना बेहद ही सरल है। आप अपने उस पुत्र के ऊपर इस राज्य की जिम्मेदारी सौंपे, जो कि मेहनती हो और राज्य की भलाई को सबसे पहले चुने। संत की बात सुन राजा की दुविधा दूर हो गई और राजा संत के यहां से खुशी-खुशी अपने राजमहल चले गया। राज महल जाकर राजा ने अपने मंत्री से कहा, संत बेहद गरीब है इसलिए उनके घर में सोने और चांदी के सिक्के और अन्य तरह की वस्तुएं भेजी जाएं।
मंत्री ने राजा की बात को मानते हुए संत के यहां पर सोने-चांदी और कई तरह की वस्तुएं भेजवा दी। इतना सारा सामान देख संत हैरान रहे गया। संत ने जब मंत्री से पूछा की ये सब क्या है। तो मंत्री ने संत को बताया कि ये सामान राजा ने भेजवाया है। संत ने ये बात सुनते ही सारा सामान वापस राजा के पास भेज दिया और अगले दिन राजमहल आकर राजा से कहा, मैं मेहनत करके धन कमाने में विश्वास रखता हूं और आपके द्वारा दिया गया ये दान मुझे स्वीकार नहीं है। अपनी मेहनत से कमाए गए धन में जो सुख मिलता है, वो सुख दान में मिले पैसों से हासिल नहीं किया जा सकता है। राजा को संत की ये बात काफी अच्छी लगी और राजा ने संत को अपने राज्य का पुरोहित नियुक्त कर दिया।
कथा की सीख- मेहनत से कमाए गए धन से ही सच्चा आनंद मिलता है, ना की दान में मिले धन से।