पुत्र की लंबी आयु के लिए रखा जाता है जीवित्पुत्रिका व्रत, पढ़ें इस व्रत से जुड़ी कथा
जीवित्पुत्रिका व्रत (Jivitputrika Vrat) को जितिया या जीमूतवाहन व्रत के नाम से भी जाना जाता है। ये व्रत बेहद ही खास होता है और हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को ये व्रत आता है। इस साल ये व्रत 22 सितंबर के दिन यानी रविवार को आ रहा है। इस व्रत को रखने से महिलाओं के सुहाग की रक्षा होता है और पुत्र की आयु भी बढ़ जाती है। इस व्रत को पुत्र के लिए रखा जाता है और ये एक निर्जला व्रत होता है। यानी इस व्रत को दौरान पानी तक नहीं पीया जाता है।
होती है जीमूतवाहन की पूजा
जीवित्पुत्रिका व्रत के दौरान महिलाएं गन्धर्वों के राजकुमार जीमूतवाहन की पूजा करती हैं। इस व्रत को रखने से एक कहानी भी जुड़ी हुआ है और ऐसा कहा जाता है कि जो महिलाएं ये व्रत रखती हैं वो शाम के समय इस व्रत को रखने से जुड़ी कथा को जरूर पढ़ती हैं। इस व्रत की कथा पढ़ने से ये व्रत सफल हो जाता है और विशेष फल की प्राप्ति होता है। तो आइए पढ़ते हैं जीवित्पुत्रिका व्रत से जुड़ी कथा।
जीवित्पुत्रिका व्रत कथा
जीमूतवाहन गंधर्व के राजकुमार हुआ करते हैं। जीमूतवाहन का दिल काफी बड़ा था और वो हर इंसान की मदद किया करते थे। एक दिन जीमूतवाहन के पिता ने अपना राज्य जीमूतवाहन को सौंप दिया और खुद वन चले गए। लेकिन जीमूतवाहन राजा नहीं बनना चाहते थे और वो अपना राज पाट अपने भाई को सौंप कर अपने पिता के पास चले गए। जंगल में जीमूतवाहन की मुलाकात एक कन्या से हुई जिसका नाम मलयवती था। जीमूतवाहन ने मलयवती से विवाह कर लिए और जीमूतवाहन जंगल में खुशी खुशी रहने लगे। वहीं एक दिन जीमूतवाहन को एक वृद्ध व्यक्ति मिला जो कि काफी दुखी थी। जीमूतवाहन ने वृद्ध व्यक्ति से उसके दुखी होने का कारण पूछा। इस व्यक्ति ने जीमूतवाहन को बताया कि वो एक नागवंश से और नागों ने पक्षीराज गरुड़ को वचन दिया है कि प्रत्येक दिन वे एक नाग उन्हें खाने के लिए देंगे।
वृद्ध ने जीमूतवाहन को बताया कि आज उसके बेटे शंखचूड़ को गरुड़ के पास जाना है और गरुड़ उसे खा जाएगा। वृद्ध व्यक्ति की पूरी बात सुनने के बाद जीमूतवाहन ने उनसे कहा कि वो डरे नहीं और वो उनके बेटे को कुछ नहीं होने देंगे। जीमूतवाहन ने कहा कि वो उनके पुत्र की जगह गरुड़ का आहार बनेंगे। ये कहाकर जीमूतवाहन गरुड़ के सामने चले गए और गरुड़ उनको अपने पंजे में लेकर उड़ गए। कुछ देर बाद जीमूतवाहन ने रोना शुरू कर दिया और जब गरुड़ ने उनसे पूछा की वो क्यों रो रहे हैं, तब जीमूतवाहन ने उन्हें पूरी बात बताई। जीमूतवाहन का त्याग देख गरुड़ का हृदय परिवर्तन हो गया और गरुड़ ने जीमूतवाहन को नहीं मारा और साथ में ही जीमूतवाहन को वचन दिया की वो नांगों को भी नहीं मारें गए।
तब से जीमूतवाहन व्रत रखा जाने लगा और ऐसा कहा जाता है कि इस व्रत को रखने से जीमूतवाहन आपके पुत्र की रक्षा ठीक उसी प्रकार से करते हैं जैसे उन्होंने शंखचूड़ की की थी।