ISRO ने तेज़ी से शुरु की ‘विक्रम लैंडर’ की तलाश, जल्द हो सकता है दोबारा संपर्क
भारत का चंद्रयान-2 तेज़ी से चंद्रमा की सतह की तरफ बिना किसी रुकावट के बढ़ रहा था, लेकिन तभी अचानक से ठीक 2.15 किलोमीटर पहले ही विक्रम लैंडर से इसरो का संपर्क टूट गया। संपर्क टूटने के बाद एक पल के लिए लगा जैसे सबकुछ खत्म हो गया, लेकिन बाद में जब विक्रम लैंडर के संपर्क टूटने पर विचार किया गया, तो माना जा रहा है कि अभी सबकुछ खत्म नहीं हुआ है। जी हां, इसरो के वैज्ञानिक अब इस सवाल का जवाब ढूढ़ंने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर कैसे विक्रम लैंडर से संपर्क टूट गया या फिर अब उससे कैसे दोबारा संपर्क किया जा सकता है?
इसरो वैज्ञानिकों की एक खासियत रही है कि वे कभी हार नहीं मानते हैं और हर छोटी बड़ी सफलता और असफलता से बहुत कुछ सीखने की ललक रखते हैं, जिसकी वजह अब वे इस बात का मूल्यांकन करेंगे कि आखिरी विक्रम की लैंडिंग में कहां और कैसे गड़बड़ी हुई और यदि वह क्रैश नहीं हुआ है, तो उससे दोबारा कैसे संपर्क साधा जा सकता है? मतलब साफ है कि अभी भी इसरो के पास कुछ उम्मीदें बची हुई हैं, जिसके तहत अगले एक साल तक काम किया जाएगा और फिर जाकर सही नतीज़ों पर पहुंचा जाएगा।
हर रहस्य से इसरो उठाएगा पर्दा
इसरो के वैज्ञानिकों का पूरा ध्यान अब विक्रम की लैंडिंग में हुई गड़बड़ी पर आ चुका है, जिसकी वजह से अब फिर से सारी चीज़ों का मूल्यांकन करेंगे और पता लगाएंगे कि कैसे और कहां गड़बड़ी हुई, जिससे संपर्क टूट गया। बता दें कि इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए वैज्ञानिक विक्रम लैंडर के टेलिमेट्रिक डाटा, सिग्नल, सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर, लिक्विड इंजन का विस्तारपूर्वक अध्ययन कर रहे हैं, जिसके बाद हर रहस्य से पर्दा उठेगा और फिर विक्रम की लैंडिंग में हुई दिक्कत का भी पता चलेगा।
संपर्क करने की कोशिश जारी
इसरो के वैज्ञानिकों का कहना है कि उनके लिए अगले 14 दिन काफी महत्वपूर्ण है, जिसमें वे विक्रम से संपर्क साधने की कोशिश करेंगे। वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि विक्रम लैंडर क्रैश हुआ है, तो चांद की सतह पर उसके उपकरण ज़रूर मिलेंगे, लेकिन अगर ऑर्बिटर के जरिए सही दिशा में लैंडर से संपर्क करने की कोशिश की जाए तो संपर्क स्थापित हो सकता है, जिससे हम आगे का काम शुरु कर सकते हैं। बता दें कि ऑर्बिटर के पास चांद की सतह की तस्वीर खींचने की क्षमता है, यदि ऐसे में वह कोई ऐसी तस्वीर भेजता है, जिसमें विक्रम का पता चल सके, तो यह वैज्ञानिकों के लिए सोने पर सुहागा होगा।
हर पहलू पर इसरो की नज़र
विक्रम की लैंडिंग में आंतरिक या बाहरी गड़बड़ी का पता लगाने के लिए इसरो हर पहलू पर नज़र रख रहा है और सभी डाटा एकत्रित कर रहा है, जिसके बाद यह पता चल जाएगा कि आखिर हमारा विक्रम लैंडिंग से पहले कहां भटका या फिर उसने लैंडिंग कर ली है? बता दें कि वैज्ञानिकों ने कहा कि ऑर्बिटर अगले सात सालों तक चांद की सतह की तस्वीरें भेजता रहेगा, जिससे हमारी बहुत सारी मदद होगी और अपने प्रभाव से ही काम करेगा।