अध्यात्म

बेहद ही चमत्कारी है कनकधारा स्तोत्र, इसे पढ़ने से प्रसन्न हो जाती हैं मां लक्ष्मी

जीवन में आर्थिक तंगी किसी को भी आ सकती है और आर्थिक तंगी आने से इंसान परेशान रहने लग जाता है। अगर आप भी आर्थिक तंगी से गुजर रहे हैं या फिर धन प्राप्ति चाहते हैं, तो आप कनकधारा स्तोत्र का पाठ करें। कनकधारा स्तोत्र को पढ़ने से अपार धन मिलने लग जाता है और कभी भी आर्थिक तंगी का सामना नहीं करना पड़ता है। इसलिए धन प्राप्ति के लिए तरह-तरह के टोटक करने की जगह आप कनकधारा स्तोत्र (Kanakadhara Stotram) का पाठ कर लें।

दरअसल कनकधारा स्तोत्र (Kanakadhara Stotram) का जिक्र हमारे पुराणों में किया गया है और पुराणों में इस स्तोत्र को चमत्कारिक स्तोत्र बताया गया है। ये स्तोत्र पढ़ने से धन लाभ होता है और ऐसा कहा जाता है कि जो लोग दिन में एक बार इस स्तोत्र का पाठ कर लें उनको जीवन में कभी भी धन की कमी नहीं होती है।

आदि शंकराचार्य द्वारा लिखा गया है ये स्तोत्र

कनकधारा स्तोत्र को आदि शंकराचार्य द्वारा लिखा गया है और ये स्तोत्र लक्ष्मी मां से जुड़ा हुआ है। ऐसा कहा जाता है कि बचपन में आदि शंकराचार्य खाने की तलाश में इधर-उधर धूम रहे थे तभी उनपर एक महिला की नजर पड़ी। उस महिला ने आदि शंकराचार्य को रोका और उनसे बात करने लगी। आदि शंकराचार्य  ने इस महिला से कहा कि वो खाने की तलाश में हैं। ये महिला काफी गरीब थी और इस महिला के पास देने के लिए कुछ भी नहीं है। आदि शंकराचार्य ने इस महिला से कहा कि उनके पास जो भी है वो उनके लिए पर्याप्त होगा। इस महिला ने एक बेर निकालकर आदि शंकराचार्य को दे दिया। आदि शंकराचार्य ने इस बेर को एक पात्र में डाल दिया और लक्ष्मी जी के मंत्र का जाप किया। जाप करते ही ये पात्र और महिला का घर का आंगन बेरों के भर गया।

तभी से ये कहा जाने लगा कि जो लोग कनकधारा स्तोत्र का पाठ करते हैं उन लोगों को जीवन में कभी भी पैसों की कमी नहीं आती है और सदा लक्ष्मी मां की कृपा उनपर बनी रहती है। इसलिए आप लोग भी कनकधारा स्तोत्र (Kanakadhara Stotram) को जरूर पढ़ा करें। वहीं इस स्तोत्र को किस तरह से पढ़ा जाता है इसकी जानकारी इस प्रकार है।

इस तरह से पढ़ें कनकधारा स्तोत्र

  • कनकधारा स्तोत्र (Kanakadhara Stotram) को पढ़ने का कोई भी विशेष दिन नहीं होता है और आप कनकधारा स्तोत्र को कभी भी पढ़ सकते हैं। हालांकि ऐसा कहा जाता है कि अगर कनकधारा स्तोत्र को रोज पढ़ा जाए तो लाभ अधिक और जल्द मिलता है। इसलिए आप कनकधारा स्तोत्र को रोज पढ़ा करें। कनकधारा स्तोत्र ज्यादा बड़ा स्तोत्र नहीं है और आप इसे 15 मिनट के अंदर ही पढ़ सकते हैं।
  • कनकधारा स्तोत्र को पढ़ने से किसी भी तरह की विधि नहीं जुड़ी हुई है और ना ही इस स्तोत्र को पढ़ने के लिए जाप या माला की जरूरत पड़ती है।
  • आप जब भी कनकधारा स्तोत्र को पढ़ें तो अपने पास एक  दीपक और अगरबत्ती जरूर जला लें। वहीं कनकधारा स्तोत्र (Kanakadhara Stotram) को अगर आप किसी दिन नहीं पढ़ पाते हैं तो घबराएं नहीं क्योंकि इस स्तोत्र को हर दिन पढ़ जरूरी नहीं होता है।
  • कनकधारा स्तोत्र से जुड़े यंत्र भी दुकानों में बेचे जाते हैं और आप चाहें तो अपने पूजा घर में ये यंत्र लाकर रख सकते हैं। पूजा घर के अलावा आप अपने व्यापार स्थल पर भी कनकधारा स्तोत्र का यंत्र रख सकते हैं। इस यंत्र को रखने से ना केवल आपको धन की प्राप्ति होगी बल्कि जीवन की हर बाधा भी दूर हो जाएगी।

आखिर क्यों है कनकधारा स्तोत्र इस खास

ऐसा कहा जाता है कि कनकधारा स्तोत्र को पढ़ने से मां लक्ष्मी प्रसन्न हो जाती है और इस स्तोत्र को मां लक्ष्मी से जुड़े सभी स्तोत्र में सबसे उत्तम माना जाता है। कनकधारा स्तोत्र (Kanakadhara Stotram) बेहद ही प्रभावशाली होता है और इस पढ़ने से अतिशीघ्र फल की प्राप्ति होती है। वहीं ये स्तोत्र इस प्रकार है-

कनकधारा स्तोत्र (Kanakadhara Stotram) –

धनप्रदायिनी श्री कनकधारा स्तोत्रम्
अङ्गं हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती भृङ्गाङ्गनेव मुकुलाभरणं तमालम्।

अङ्गीकृताऽखिल-विभूतिरपाङ्गलीला माङ्गल्यदाऽस्तु मम मङ्गळदेवतायाः ॥1॥

मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेः प्रेमत्रपा-प्रणहितानि गताऽऽगतानि।

मालादृशोर्मधुकरीव महोत्पले या सा मे श्रियं दिशतु सागरसम्भवायाः ॥2॥

विश्वामरेन्द्रपद-वीभ्रमदानदक्ष आनन्द-हेतुरधिकं मुरविद्विषोऽपि।

ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणर्द्ध मिन्दीवरोदर-सहोदरमिन्दिरायाः ॥3॥

आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्द आनन्दकन्दमनिमेषमनङ्गतन्त्रम्।

आकेकरस्थित-कनीनिकपक्ष्मनेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः ॥4॥

बाह्वन्तरे मधुजितः श्रित कौस्तुभे या हारावलीव हरिनीलमयी विभाति।

कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला, कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः ॥5॥

कालाम्बुदाळि-ललितोरसि कैटभारे-धाराधरे स्फुरति या तडिदङ्गनेव।

मातुः समस्तजगतां महनीयमूर्ति-भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः ॥6॥

प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत् प्रभावान् माङ्गल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेन।

मय्यापतेत्तदिह मन्थर-मीक्षणार्धं मन्दाऽलसञ्च मकरालय-कन्यकायाः ॥7॥

दद्याद् दयानुपवनो द्रविणाम्बुधारा मस्मिन्नकिञ्चन विहङ्गशिशौ विषण्णे।

दुष्कर्म-घर्ममपनीय चिराय दूरं नारायण-प्रणयिनी नयनाम्बुवाहः ॥8॥

इष्टाविशिष्टमतयोऽपि यया दयार्द्र दृष्ट्या त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते।

दृष्टिः प्रहृष्ट-कमलोदर-दीप्तिरिष्टां पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः ॥9॥

गीर्देवतेति गरुडध्वजभामिनीति शाकम्भरीति शशिशेखर-वल्लभेति।

सृष्टि-स्थिति-प्रलय-केलिषु संस्थितायै तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै ॥10॥

श्रुत्यै नमोऽस्तु नमस्त्रिभुवनैक-फलप्रसूत्यै रत्यै नमोऽस्तु रमणीय गुणाश्रयायै।

शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्र निकेतनायै पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तम-वल्लभायै ॥11॥

नमोऽस्तु नालीक-निभाननायै नमोऽस्तु दुग्धोदधि-जन्मभूत्यै।

नमोऽस्तु सोमामृत-सोदरायै नमोऽस्तु नारायण-वल्लभायै ॥12॥

नमोऽस्तु हेमाम्बुजपीठिकायै नमोऽस्तु भूमण्डलनायिकायै।

नमोऽस्तु देवादिदयापरायै नमोऽस्तु शार्ङ्गायुधवल्लभायै ॥13॥

नमोऽस्तु देव्यै भृगुनन्दनायै नमोऽस्तु विष्णोरुरसि स्थितायै।

नमोऽस्तु लक्ष्म्यै कमलालयायै नमोऽस्तु दामोदरवल्लभायै ॥14॥

नमोऽस्तु कान्त्यै कमलेक्षणायै नमोऽस्तु भूत्यै भुवनप्रसूत्यै।

नमोऽस्तु देवादिभिरर्चितायै नमोऽस्तु नन्दात्मजवल्लभायै ॥15॥

सम्पत्कराणि सकलेन्द्रिय-नन्दनानि साम्राज्यदान विभवानि सरोरुहाक्षि।

त्वद्-वन्दनानि दुरिताहरणोद्यतानि मामेव मातरनिशं कलयन्तु नान्यत् ॥16॥

कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं करुणापूर-तरङ्गितैरपाङ्गैः।

अवलोकय मामकिञ्चनानां प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः ॥17॥

स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमीभिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।

गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो भवन्ति ते भुविबुधभाविताशयाः ॥18॥

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