सुखी विवाहित जीवन के लिए जरूरी है जीवन में ये 5 तरह की भावना
एक खुशहाल वैवाहिक जीवन जीने के लिए पति-पत्नी के बीच प्रेम होने के साथ-साथ त्याग, समर्पण, संस्कार और संतुष्टि की भावना होना बेहद ही जरूर है। इन चीजों के आधार पर कोई भी एक खुशहाल जीवन जी सकता है और अपने वैवाहिक जीवन में सुख और शांति ला सकता है। पति और पत्नी के रिश्ते में प्यार, त्याग, समर्पण, संस्कार और संतुष्टि की भावना ना होने के कारण ये रिश्ता अधिक समय तक नहीं चल पाता है। इसलिए आप अपने वैवाहिक जीवन में इन पांच चीजों की कमी ना आने दें। जीवन में ये चीजें कितनी जरूरी होती हैं इससे एक कथा जुड़ी हुई है, जो कि राजा हरिशचंद्र के जीवन से है। राजा हरिशचंद्र सतयुग के एक राजा थे जो कि जीवन में सत्य बोलने के लिए जाने जाते थे। कहा जाता है कि राजा हरिशचंद्र अपनी पत्नी से बेहद ही प्यार किया करते थे और उनकी पत्नी तारामति भी हरिशचंद्र से बेहद ही प्रेम करती थी और सदा उनका साथ उनके हर फैसले में दिया करती थी। राजा हरिशचंद्र से उनका राज्य छीन जाने के बाद भी उनकी पत्नी ने उनका साथ नहीं छोड़ा और उनका साथ जीवन की हर परिस्थिति में दिया।
पांच तत्वों पर आधारित था जीवन
हरिशचंद्र और तारामति का वैवाहिक जीवन ऊपर बताए गए पांच तत्व प्रेम, त्याग, समर्पण, संस्कार और संतुष्टि पर आधारित था। हरिशचंद्र एक राजा थे और राजा होने के बाद भी हरिशचंद्र ने अपने जीवन में किसी और से विवाह नहीं किया। उस दौर में जहां राजाओं की काफी सारी पत्नियां हुआ करती थी। तब भी राजा हरिशचंद्र ने केवल एक ही विवाह किया था। वहीं दूसरी तरफ तारामति भी अपने पति का पूरा आदर करती थी और उनके हर फैसले में उनका साथ देती थी। राजा हरिशचंद्र ने जब अपना राजमहल छोड़ दिया उस वक्त उनकी पत्नी ने उनका साथ दिया और वो भी अपने पति के साथ एक साधारण जीवन जीने लगी।
हरिशचंद्र और तारामति ने एक दूसरे के लिए अपने जीवन में त्याग और समर्पण की भावना रखी और इस भावना के कारण ये दोनों एक दूसरे के साथ खुश रहा करते थे और अपने जीवन से संतुष्ट थे। इनके जीवन में धन-दौलत से अधिक महत्वपूर्ण चीज प्रेम था और एक दूसरे का साथ। इन्होंने अपने जीवन में केवल एक दूसरे को समझा और कभी भी किसी चीज को लेकर एक दूसरे से शिकायत नहीं की। राजा हरिशचंद्र हमेशा सत्य ही बोलते थे और तारामति ने उनके जीवन में कभी भी ऐसी स्थिति नहीं आने दी जिसकी वजह से उन्हें झूठ बोलना पड़े। वहीं जब ये दोनों अपने पुत्र के एक साथ राज महल छोड़कर एक आम जीवन जीने लगे तब भी तारामति ने हरिशचंद्र से किसी चीज को लेकर शिकायत नहीं की। राजा तारामति और हरिशचंद्र बेहद ही संस्कारी थे और इन्होंने यही संस्कार अपने बेटे को दिए थे। जिसकी वजह से इनका बेटा भी एक बेहतर इंसान बन सका। इसलिए आप भी अपने जीवन में इन तत्वों का अपनाएं और इनके आधार पर अपना जीवन बिताएं। इन पांच भावनों की मदद से आप भी एक खुशहाल जीवन जी सकेंगे।