केवल इंसानों के नहीं पशुओं के भी स्वामी हैं भोलेनाथ, इस वजह से उन्हें कहा जाता है पशुपति नाथ
17 जुलाई से सावन चल रहा है. भगवान शिव के भक्त जगह-जगह कांवड़ ले जाते हुए दिखाई दे रहे हैं. सावन का ये पावन महीना कोई भी शुभ कार्य करने के लिए सबसे अच्छा माना जाता है. इस बार सावन में 4 सोमवार पड़े हैं. सावन का पहला सोमवार 22 जुलाई को था और आखिरी सोमवार 12 अगस्त को है. कहते हैं कि इस महीने जो कोई भक्त भगवान शिव की सच्चे मन से पूजा-अर्चना करता है भोलेनाथ उसकी हर मनोकामना पूरी करते हैं.
गुरुवार 15 अगस्त को रक्षाबंधन के साथ-साथ श्रवण नक्षत्र और पूर्णिमा है. इसी दिन सावन का महीना समाप्त हो जाएगा. उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पंडित मनीष शर्मा की मानें तो सावन माह में सूर्य का नक्षत्र भ्रमण पुर्नवसु नक्षत्र के अंतिम चरण से पुष्य और अश्व्लेषा में रहता है. इन तीनों नक्षत्र का आगमन कर्क राशि में होता है. कर्क को जल तत्व की राशि माना जाता है जिसका स्वामी चंद्रमा है. शिवजी चंद्रमा को अपने मस्तिष्क पर धारण करते हैं. इसलिए उन्हें चंद्रमा बेहद प्रिय है.
क्यों कहलाते हैं शिवजी पशुपति नाथ?
सावन माह वर्षा का मौसम होता है. पूरे सावन मानसून अपने चरम सीमा पर होता है और इस दौरान कई छोटे-बड़े जीव और वनस्पति जन्म लेते हैं. शिव भगवान इंसानों के स्वामी तो हैं ही साथ ही उन्हें सभी जीवों और वनस्पतियों का भी स्वामी कहा गया है. इसलिए शिवजी को पशुपति नाम से भी जाना जाता है. शिवजी के जितने नाम प्रख्यात हैं उनमें से एक नाम पशुपति भी है. पशुपति का यदि विच्छेद किया जाए तो इसका अर्थ निकलता है पशु का पति यानी पशुओं का पालनकर्ता. शिवजी सभी की रक्षा करते हैं इसलिए सावन माह में विशेषरूप से उनको पूजा जाता है.
सावन माह में सूर्य कर्क राशि में रहता है
पंडित मनीष शर्मा के अनुसार सावन के महीने में सूर्य कर्क राशि में रहता है. कर्क राशि का स्वामी चंद्रमा को बताया गया है. श्रवण नक्षत्र की वजह से इस महीने को श्रावण नाम से जाना जाने लगा. इस नक्षत्र के स्वामी चंद्रदेव हैं. सोमवार का कारक ग्रह शिवजी को बेहद प्रिय चंद्र है. एक यह भी वजह है कि भगवान को सोमवार का दिन बहुत प्रिय है और सावन के सोमवारों में शिवजी की आराधना करने पर वह जल्दी प्रसन्न होते हैं. सावन के सोमवारों में भगवान शिव की विशेष रूप से पूजा-अर्चना की जाती है.
सावन में शिवलिंग पर क्यों चढ़ाया जाता है दूध?
सावन में नई घास और वनस्पतियां जन्म लेती हैं. इन घासों का भोजन दूध देने वाले जीव करते हैं. इस समय जो घास उत्पन्न होती है उसमें तरह-तरह के हानिकारक कीटाणु पाए जाते हैं और इन्हीं कीटाणु भरे घासों का सेवन गाय-भैंस कर लेते हैं, जिस वजह से उनका दूध नुकसानदेह हो जाता है. इस दूध को पीने पर कई तरह की बीमारियां जन्म ले सकती हैं. आयुर्वेद में सावन माह के दौरान हरी सब्जियां और दूध के सेवन से बचने की सलाह दी जाती है. समुद्र मंथन के दौरान भगवान शिव ने विषपान किया था जिसके बाद उन्हें नीलकंठ के नाम से भी जाना जाने लगा और यही वजह है कि सावन के महीने में भक्तगण शिवलिंग पर दूध चढ़ाते हैं.
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