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10वीं तक की पढ़ाई, रिक्शा चलाया, फूटपाथ पर भी सोए, फिर एक मशीन बना ऐसे बन गए अमीर

कहते हाँ जहाँ चाह हैं वहां राह भी होती हैं. यदि आपके इरादें मजबूत हैं तो आपका फैमिली बैकग्राउंड या एजुकेशन कभी भी आपके सपनो को पूरा करने के बीच नहीं आ सकता हैं. ऐसा ही कुछ हरियाणा के धर्मबीर कम्बोज के साथ भी हुआ. युमनानगर जिले में दामला गांव निवासी धर्मबीर एक बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखते हैं. उन्होंने बड़ी मुश्किल से 10वी तक की पढ़ाई की हैं. धर्मबीर ने जीवन में कई संघर्ष किए जी रिक्शा चलाया, फूटपाठ पर सोए, परिवार से दूर रहे लेकिन इन सबके बावजूद आज वे एक सफल व्यक्ति बन गए. ऐसे में चलिए हम आपको इनकी सफलता की कहानी सुनाते हैं ताकि आप भी इससे कुछ प्रेरणा ले सके.

घर की आर्थिक स्थिति ठीक ना होने की वजह से धर्मबीर स्कूल के दिनों में ही पैसा कमाने की जुगाड़ कर लेते थे. वे कभी आटा पिसा देते तो कभी सरसों का तेल बेचा करते थे. काम की तलाश में वे दिल्ली भी गए थे. उस दौरान घर से निकले तो उनकी जेब में सिर्फ 70 रुपए थे. इसमें से भी 35 तो किराए में खर्च हो गए थे. फिर दिल्ली पहुंचे तो वहां ना खाने के ठिकाने थे ना रहने के. दिल्ली की कड़ाके की ठण्ड में फूटपाथ पर किराए की रजाई लेकर सोया करते थे. फिर किसी ने बोला रिक्शा ही चला लो तो वही काम करने लगे. लेकिन एक दिन दुर्घटना हो गई तो वापस गाँव आ गए.

घर लौटने पर धर्मबीर ने खेती का काम शुरू कर दिया. इस काम में उन्हें मुनाफा हुआ तो उन्होएँ इसी पर फोकस कर लिया. वे मशरूम और स्ट्रॉबेरी की खेती रक्रने लगे और मुनाफे की रकम से अपना सारा कर्ज भी चूका दिया. एक समय ऐसा भी था जब उन्होंने 70 हजार प्रति एकड़ टमाटर बेच डाले. इस दौरान उन्होंने पाया कि खेती में असली फायदा तभी हैं जब किसान अपनी उपज को सीधा बाजार में ना बेचे बल्कि उसकी प्रोसेसिंग करके और प्रोडक्ट्स बनाकर बेचे. ऐसे में उन्होंने खुद की मशीन बनाने की सोची. धर्मबीर बताते हैं कि वे पढ़ाई में भले अच्छे नहीं थे लेकिन छोटी मोटी मशीने बनाने का शौक उन्हें बचपन से ही रहा हैं. मसलन गाँव में वे हीटर बनाकर बेचा करते थे.

शुरुआत उन्होंने मशीन का स्कैच बनाकर की. फिर इसे एक लोकल मैकेनिक के पास ले गए. मैकेनिक ने मशीन बनाने के 35 हजार मांगे तो धर्मबीर ने किसी तरह 20 हजार का जुगाड़ कर मशीन बनवाने का काम शुरू करवा दिया. फिर 9 महीने के बाद मशीन रेडी हुई जिसे ‘मल्टी-प्रोसेसिंग मशीन’ नाम दिया गया. इस मशीन की खासियत ये थी कि इसमें कई तरह के प्रोडक्ट्स जैसे गुलाब, एलोवेरा, आंवला, तुलसी, आम, अमरुद इत्यादि को प्रोसेस किया जा सकता था. इतना ही नहीं इस मशीन की सहायता से जैल, जूस, तेल, शैम्पू जैसे प्रोडक्ट्स भी तैयार किये जा सकते थे. सिंगल फेज मोटर पर चलने वाली इस मशीन को आसानी से कहीं भी ले जाया जा सकता हैं.

फिर धीरे धीरे उन्होंने अपनी ये मशीन दुसरे लोगो को भी बेचना शुरू कर दिया. इसकी शुरूआती कीमत 55 हजार रुपए रखी गई. उन्के इस काम का जिक्र अखबार में भी हुआ जिस से गुजरात के हनी बी नेटवर्क और ज्ञान फाउंडेशन ने इसमें दिलचस्पी दिखाई. हनी बी नेटवर्क ने धर्मबीर की इस मशीन में कुछ और बदलाव किये और इसे बेहतर बनाकर पांच अलग अलग मॉडल तैयार किए. इसमें सबसे बड़ी मशीन की कीमत 1 लाख 80 हजार जबकि सबसे छोटी मशीन की कीमत 45 हजार रुपए रखी गई. अपने इस काम के लिए धर्मबीर को 2009 में ‘नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन’ में सम्मान मिला जबकि 2012 में फार्मर साइंटिस्ट अवॉर्ड मिला.

वर्तमान में धर्मबीर की मशीने सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि जापान, दक्षिण अफ्रीका, केन्या, नेपाल और नाइजीरिया जैसे देशों में भी बिकती हैं. मशीन बेचने के अलावा धर्मबीर किसानोना उर महिलाओं को इस मशीन के माध्यम से विभिन्न प्रोडक्ट्स बनाने की ट्रेनिंग भी देते हैं.

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