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उस दिन अपने लाल के घर आने का इंतजार करती रही माँ और उधर देश के लिए शहीद हो गए ‘आज़ाद’

देश की आजादी में बहुत से क्रांतिकारियों का हाथ है बस किसी का नाम सामने है और कुछ अपनी कुर्बानी के साथ गुमशुदा हो गए। शहीद भहत सिंह, सुखदेव और राजगुरू जैसे क्रांतिकारी जिनकी शरण में देश को आजाद कराने के लिए गए थे उनका नाम चंद्रशेखर आजाद था। उन्होंने अपनी आखिरी सांस तक अंग्रेजों से लोहा लिया लेकिन जब उन्हें पता चल गया कि अब उनके ऊपर जाने का समय आ गया है तो खुद को गोली मार ली लेकिन खुद किसी और की गोली का निशाना नहीं बने। जिस दिन उनका निधन हुआ था उस दिन इंतजार करती रही माँ और उधर देश के लिए शहीद हो गए ‘आज़ाद’, फिर क्या हुआ ये जानिए।

इंतजार करती रही माँ और उधर देश के लिए शहीद हो गए ‘आज़ाद’

23 जुलाई, 1906 को मध्यप्रदेश के भावरा में चंद्रशेखर तिवारी का जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम सीकाराम तिवारी औऱ मां का नाम जगरानी देवी था। वे अपने माता-पिता की एकलौती औलाद थे और किशोर अवस्था में ही वे बड़े-बड़े सपने देखने लगे थे। उन्होंने अपना घर छोड़ दिया और मुंबई आ गए यहां पर उन्होंने बंदरगाह में जहाज की पेंटिंग का काम करना शुरु कर दिया था। उस समय मुंबई में रहते हुए चंद्रशेखर जी को एक ही सवाल परेशान करता था कि अगर पेट पालना ही है तो अपने घर पर रहकर कुछ काम कर लें। चंद्रशेखर जी ने काशी से संस्कृत की शिक्षा लेने के लिए काशी की तरफ बढ़ गए और इसके बाद उन्होंने अपने घर के बारे में सोचना बंद कर दिया। देश की स्थिति देखते हुए उन्होने निश्चय कर लिया कि अब वे अपना पूरा जीवन देश के प्रति कुर्बान कर देंगे। उस समय देश में महात्मा गांधी के नेतृत्व में चलाए जा रहे असहयोग आंदोलन का खूब बोलबाला था।

चंद्रशेखर जी ने काशी के अपने विद्यालय में भी इसकी मशाल जलाई और पुलिस ने दूसरे छात्रों के साथ इन्हें हिरासत में ले लिया। उन्हें 15 बेतों की सख्त सजा सुनआई गई और इसके बाद आजाद ने आसानी से स्वीकार कर लिया और हर बेंत की मार खाने के बाद वह वंदे मातरम चिल्लाते रहते थे। उसी दिन उन्होंने प्रण ले लिया कि अब कोई पुलिस वाला उन्हें हाथ नहीं लगा पाएगा। वे आजाद हैं और वही रहेंगे, जब जज ने चंद्रशेखर जी से उनका नाम पूछा तो उन्होंने अपना नाम आजाद और पिता का नाम संवतंत्रता और पता जेल बताया था। इसके बाद से ही चंद्रशेखर सीताराम तिवारी का नाम चंद्रशेखर आजाद पड़ गया था।

सब्र का इंतिहान टूटा तो दे दी जान

ऐसा बताया जाता है कि जब चंद्रशेखर जी की पुलिस से मुठभेड़ हो रही थी उस दिन उन्होंने अपनी मां से मिलने का वादा किया था। मां ने उनके लिए खाना बनाकर रखा था लेकिन जो मुठभेड़ हुई उसका अंदाजा आजाद को भी नहीं था। उत्तर प्रदेश के लोगों का सब्र टूटजा जा रहा था और गांव के लोगों ने पुलिस थाने में आग लगा थी क्योंकि सभी चंद्रशेखर आजाद के साथ खड़े हो गए थे। इनमें करीब 23 पुलिस कर्मियों की मौत भी हुई थीऔर इस हादसे से निराश होकर गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को स्थगित करने का फैसला किया था। 27 फरवरी, 1931 को चंद्रशेखर आजाद ने इलाहाबाद के एक पार्क में पुलिस से खूब लडाई की और घायल होकर एक पेड़ के पीछे छिप गए। जब उन्हें लगा कि अब वे आत्मरक्षा नहीं कर सकते तो उन्होने खुद को गोली मार ली क्योंकि अगर वे घायल रूप में अंग्रेजों के हाथ आते तो वे उनकी दुर्गती कर देते। जिस जगह चंद्रशेखर ने अपने प्राण त्यागे थे उस जगह को आज चंद्रशेखर आजाद पार्क के नाम से टूरिस्ट प्लेज बना दिया गया है।

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