जरूर पढ़ें, जगन्नाथ पुरी मंदिर से जुड़े हुए ये रहस्य (Jagannath Puri Temple)
जगन्नाथ पुरी मंदिर (Jagannath Puri Mandir) भगवान विष्णु को समर्पित है और इस मंदिर में भगवान विष्णु को जगन्नाथ के नाम से जाना जाता है। जगन्नाथ पुरी मंदिर पर करोड़ों लोगों की आस्था है और इस मंदिर से कई सारी कथाएं जुड़ी हुई हैं। जगन्नाथ पुरी मंदिर भगवान विष्णु के चार धामों में से एक है और ऐसी मान्यता है कि इस जगह पर आकर विष्णु भगवान भोजन करते हैं। जबकि अन्य तीन धामों बद्रीनाथ में स्नान करते हैं, गुजरात के द्वारिका में वस्त्र पहनते हैं और रामेश्वरम में विश्राम करते हैं।
जगन्नाथ पुरी मंदिर की अधूरी मूर्ति से जुड़ी कथा
किंवदंती के अनुसार, पहले जगन्नाथ मंदिर का निर्माण भरत और सुनंदा के पुत्र राजा इंद्रद्युम्न (King Indradyumna) द्वारा किया गया था।
राजा इंद्रद्युम्न द्वारा मूर्ति बनाये जाने की कथा
हिन्दू धर्म के प्राचीन धर्मग्रन्थ एवं कुछ ओडिया शास्त्रों में कहा गया है कि भगवान जगन्नाथ को मूल रूप से विश्ववासु (Viswashu) नामक एक सवर राजा (आदिवासी ) द्वारा भगवान नील माधब (Neela madhava) के रूप में पूजा जाता था। जब राजा इंद्रद्युम्न ( King Indradyumna) ने नील माधव के बारे में सुना तो उन्होंने ने राज पुरोहित विद्यापति को नील माधब का पता लगाने के लिए भेजा, विद्यापति ने पता लगाया की सवर राजा ने गुप्त रूप से घने जंगल में नीला माधव की पूजा करता है। विद्यापति (Vidyapati) ने बहुत कोशिश की लेकिन उस जगह का पता नहीं लगा सके जहां सबर राजा भगवान नील माधव की पूजा करता है । आखिरी में कोई उपाय न देख कर विद्यापति नील माधव का पता करने के लिए कबीले के राजा विश्ववासु की बेटी ललिता से शादी कर लेते हैं। शादी के बाद विद्यापति बार बार विश्ववासु को अनुरोध करता है नील माधव के दर्शन के लिए । विद्यापति के बार-बार अनुरोध पर, विश्ववासु (Viswavasu) ने अपने दामाद को उस गुफा में ले जाते हैं, जहाँ भगवान निल माधब (Nila Madhav) की पूजा की जाती थी।
राज पुरोहित विद्यापति (Vidyapati) बहुत बुद्धिमान व्यक्ति थे। जब वो नील माधव का दर्शन करने गुफा की और जा रहे थे रास्ते में वो राई जमीन परगिराते जाते थे। कुछ दिनों के बाद राई अंकुरित हुए, तो उन्हें में गुफा का पता लगाने में मदद मिली।
जब विद्यापति ने वापस लौट कर राजा इंद्रद्युम्न को पूरी कहानी सुनाई तो उनकी बात सुनकर, राजा इंद्रद्युम्न नील माधव भगवान जगन्नाथ को देखने और उनकी पूजा करने के लिए तीर्थ यात्रा पर तुरंत ओडिशा (Odisha) के लिए रवाना हुए। लेकिन जब वो गुफा में पहुँच तो भगवान नीलमाधव तो अंतर्ध्यान हो गए थे। भगवान को अंतरध्यान देख कर राजा निराश हो गए। राजा ने ठान लिया था कि वह नीलमाधव के दर्शन किए बिना वापस नहीं लौटेंगे और नील पर्वत पर अन्न जल का परित्याग किया , तब एक दिव्य आवाज ने पुकारा ‘ बाद में, राजा भगवान विष्णु के लिए एक भव्य मंदिर का निर्माण किया।
नारद द्वारा लाई गई नरसिंह मूर्ति को मंदिर में स्थापित किया गया था। नींद के दौरान राजा को भगवान जगन्नाथ के दर्शन हुए। साथ ही एक सूक्ष्म आवाज ने उन्हें समुद्र के किनारे नीम वृक्ष प्राप्त करने और उससे मूर्तियाँ बनाने का निर्देश दिया। तदनुसार, राजा इंद्रद्युम्न ने भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, सुभद्रा और चक्र सुदर्शन की छवि को दिव्य वृक्ष की लकड़ी से बना कर मंदिर में स्थापित कर दिया।
जगन्नाथ पुरी मंदिर (Jagannath Puri Mandir) में रखी गई जगन्नाथ भगवान की मूर्ति अधूरी है और इस मूर्ति के अधूरी होने से एक कथा भी जुड़ी हुई है।
भगवान जगन्नाथ की मूर्ति बनाने के लिए देवताओं के शिल्पी भगवान विश्वकर्मा (Viswakarma) एक वृद्ध व्यक्ति का रुप लेकर राजा इंद्रद्युम्न के पास आए और उन्होंने राजा से कहा कि वो 21 दिनों में मूर्ति का निर्माण कर देंगे। साथ में ही उन्होंने ये शर्त भी रखी ही वो मूर्ति को अकेले एक बंद कमरे में बनवाएंगे और कोई भी कमरे में ना आए। वहीं कुछ दिनों बाद राजा की पत्नी ने मूर्ति देखने की इच्छा जाहिर की और जैसे ही राजा की पत्नी ने कमरे का दरवाजा खोला, वैसे ही कमरा से विश्वकर्मा गायब हो गए। और इस तरह से भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा की मूर्ति अधूरी रहे गई। राजा ने बाद में इन्हीं अधूरी मूर्तियों को मंदिर के अंदर स्थापित करा दिया।
जगन्नाथ पुरी यात्रा (Jagannath Puri Yatra)
जगन्नाथ पुरी यात्रा हर साल निकलती है और इस यात्रा का हिस्सा बनने के लिए लाखों की संख्या में लोग इस मंदिर में आते हैं। ये यात्रा हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को निकाली जाती है। जगन्नाथ पुरी यात्रा के दौरान तीन रथ निकलते हैं। जिसमें से एक रथ पर भगवान जगन्नाथ जी, दूसरे पर बलभद्र जी और तीसरे रथ पर सुभद्रा जी की मूर्ति रखी जाती है और इन रथों को भक्तों द्वारा खींचा जाता है। ये रथ गुंडीचा मंदिर में लाए जाते हैं और इस मंदिर में मूर्तियों को रख दिया जाता है। जिसके बाद भगवान जगन्नाथ (Jagannath Puri Mandir) सात दिनों तक यहां पर आराम करते हैं और आठवें दिन फिर से इनकी मूर्ति को रथ पर रख दिया जाता है और वापस से पुरी के मंदिर में ले जाया जाता है। रथ को वापस से पुरी के मंदिर ले जाने वाली यात्रों को बहुड़ा यात्रा (Bahua Yatra) कहा जाता है।
जगन्नाथ पुरी मंदिर से जुड़ी रोचक बातें
- जगन्नाथ धाम को धरती का बैकुंठ भी कहा गया है। जगन्नाथ पुरी मंदिर में भगवान जगन्नाथ के साथ उनके भाई बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा की पूजा भी की जाती है।
- मंदिर में भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा को दाई तरफ रखा गया है। जबकि उनकी बहन सुभद्रा की प्रतिमा बीच में है और दाई तरफ उनके बड़े भाई बलभद्र की मूर्ति स्थापिक की गई है।
- जगन्नाथ पुरी मंदिर से एक रहस्यमय कहानी भी जुड़ी हुई है। ऐसा कहा जाता है कि पुरी मंदिर में रखी गई भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के अंदर स्वयं ब्रह्मा जी विराजमान हैं।
- जगन्नाथ पुरी मंदिर में हमेशा 20 फीट का एक ध्वज लहराता है और ये ध्वज रोज बदला जाता है। ऐसी मान्यता है कि अगर ध्वज रोज नहीं बदला जाए, तो ये मंदिर अपने आप ही 18 सालों तक के लिए बंद हो जाएगा।
- जगन्नाथ पुरी यात्रा के दौरान तीन रथ होते हैं जिसमें से पहले रथ पर भगवान जगन्नाथ विराजमान होते हैं। दूसरे रथ में बलभद्र और तीसरे रथ में सुभद्रा जी।
कहां है मंदिर
जगन्नाथ पुरी मंदिर (Jagannath Puri Mandir) उड़ीसा के पुरी शहर में स्थित है जो कि उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर से थोड़ी सी दूरी पर है। हर साल लाखों की संख्या में लोग उड़ीसा राज्य के पुरी शहर में आकर भगवान जगन्नाथ के दर्शन किया करते हैं।
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