अध्यात्म

ये है भगवान शिव का अनोखा मंदिर जहां उन्हें चढ़ाई जाती है झाड़ू

पातालेश्वर मंदिर एक प्राचीन मंदिर है जो कि भगवान शिव को समर्पित है। ये मंदिर एक अनोखा मंदिर है क्योंकि इस मंदिर में लोग भगवान शिव को झाड़ू चढ़ाते हैं।उत्तरप्रदेश के मुरादाबाद जिले के बहजोई के बनें इस मंदिर में सावण महीने के दौरान दूर-दूर से लोग भगवान शिव की पूजा करने के लिए आते हैं। सदत्बदी गांव में बनें पातालेश्वर मंदिर से एक पौराणकि कथा भी जुड़ी हुई है और ऐसा कहा जाता है कि ये मंदिर 150 साल पुराना है।

इस तरह से की जाती है पूजा

इस मंदिर में आने वाले लोग सबसे पहले शिवलिंग पर जल अर्पित करते हैं। फिर दूध, बेलपत्र, भांग, धतूरे उन्हें चढ़ाते हैं। इसके बाद शिवलिंग पर सीक वाली झाड़ू भी चढ़ाते हैं। जबकि सावन महीने के दौरान कांवड़िये हरिद्वार से गंगा जल लाकर गंगा जल शिवलिंग पर चढ़ाते हैं और बाद में भगवान को झाड़ू अर्पित करते हैं।

इस वजह से चढ़ाते हैं झाड़ू

शिवलिंग पर झाड़ू चढ़ाने से एक मान्यता जुड़ी हुई है और इस मंदिर के पंडितों के अनुसार शिवलिंग के पास झाड़ू चढ़ाने से कई तरह के रोग तुरंत सही हो जाते हैं। इसके अलावा ये भी कहा जाता है कि शिव भगवान को झाड़ू चढ़ाने से हर मनोकामना पूरी हो जाती है। इस मंदिर में सोमवार के दिन काफी लंबी कतारे लग जाती हैं और दूर-दूर से लोग आकर भगवान शिव को झाड़ू चढ़ाते हैं। यहां पर आने वाले भक्तों का मानना है कि अगर सच्चे मन से शिवलिंग पर झाड़ू चढ़ाया जाए तो त्वचा रोग सहित कई सारी बीमारियां तुरंत सही हो जाती हैं। करीब 150 साल पुराने इस मंदिर में भगवान शिव की कोई भी मूर्ति नहीं है और बस एक शिवलिंग ही इस मंदिर में स्थापित किया गया है।

पातालेश्वर शिव मंदिर से जुड़ी कथा

पातालेश्वर शिव मंदिर से जुड़ी कथा के अनुसार एक सेठ हुआ करता था। इस सेठ के पास पैसों की बिलकुल भी कमी नहीं थी। लेकिन ये सेठ चर्म रोग से ग्रस्त था। इस सेठ ने अपने चर्म रोग का खूब इलाज करवाया। लेकिन फिर भी ये रोग सही नहीं हुआ। वहीं एक बार ये सेठ एक वैद्य के पास अपना इलाज करवाने के लिए जा रहा था तभी रास्ते में सेठ को प्यास लग गई। इस सेठ को एक आश्रम दिखा और ये सेठ आश्रम में पानी पीने के लिए चले गया। आश्रम में रखी एक झाड़ू को इस सेठ ने गलती से छू लिया और ये झाड़ू छूते ही सेठ का रोग एकदम सही हो गया है। त्वचा रोग से मुक्ति पाने के बाद ये सेठ काफी खुश हो गया और इस सेठ ने आश्रम के संत को खूब सारे पैसे और सोना देने की इच्छा प्रकट की। लेकिन संत ने सेठ से पैसे लेने से मना कर दिया और सेठ को कहा कि वो  इस जगह पर मंदिर बनवा दें। जिसके बाद व्यापारी ने संत के कहने पर इस जगह पर मंदिर बनवा दिया और इस मंदिर में भगवान शिव की मूर्ति स्थापित कर दी। ये मंदिर ‘पातालेश्वर मंदिर’ के नाम से प्रसिद्ध हो गया।

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