जीवन में एक बार जरूर जाएं बद्रीनाथ मंदिर
बद्रीनाथ धाम हमारे चार धामों में से है और हर साल लाखों की संख्या में लोग बद्रीनाथ आकर भगवान विष्णु के दर्शन करते हैं। इस मंदिर को धरती का वैकुण्ठ भी कहा जाता है। बद्रीनाथ मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले के बद्रीनाथ शहर में है। ऐसी मान्यता है कि केदारनाथ धाम, गंगोत्री धाम और यमुनोत्री धाम जाने के बाद बद्रीनाथ के दर्शन किए जाते हैं और इनके दर्शन करने पर ही इन धामों की यात्रा पूरी होती है। बद्रीनाथ की यात्रा बेहद ही पवित्र यात्रा है और इस यात्रा को करने से हर मनोकामना पूरी हो जाती है।
कब होती है बद्रीनाथ की यात्रा
बद्रीनाथ की यात्रा हर साल होती है और यह यात्रा अप्रैल-मई के दौरान शुरु होती है। इस दौरान बद्रीनाथ धाम के कपट खोल दिए जाते हैं और लोग भगवान विष्णु के दर्शन करते हैं। यह यात्रा अक्टूबर-नवंबर तक चलती है और इस दौरान लोग बद्रीनाथ धाम के साथ-साथ केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के दर्शन भी करते हैं। दिसंबर महीने में बर्फ गिरने के कारण इस मंदिर के कपट बंद कर दिए जाते हैं और मार्च महीने तक बद्रीनाथ मंदिर के कपट बंद ही रखे जाते हैं। वहीं अप्रैल-मई में पूरी विधि विधान से मंदिर के कपट लोगों के लिए खोले दिए जाते हैं।
बद्रीनाथ धाम से जुड़ी कथा
बद्रीनाथ मंदिर से एक पौराणिक कथा जुड़ी है। इस पौराणिक कथा के अनुसार बद्रीनाथ भगवान शिव का निवास स्थान हुआ करता था और भगवान शिव इस जगह पर पार्वती मां के साथ रहते थे। भगवान विष्णु अपने ध्यान योग के लिए धरती पर एक स्थान की खोज कर रहे थे। तभी वे बद्रीनाथ आए। बद्रीनाथ उनको बहुत पसंद आया लेकिन इस जगह पर भगवान शिव और पार्वती मां रहा करते थे। बद्रीनाथ को अपना स्थान बनाने के लिए भगवान विष्णु ने एक बालक का रुप धारण कर लिया और इस जगह पर स्थित ऋषि गंगा और अलकनंदा नदी के संगम के पास रोने लगे। बालक के रोने की आवाज सुनकर पार्वती मां फौरन इनके पास आई। बालक को पार्वती मां अपने साथ बद्रीनाथ स्थित अपने घर ले जाने की जिद शिव भगवान से करने लगी। शिव भगवान ने पार्वती मां को खूब समझाया लेकिन पार्वती नहीं मानी और अपने साथ बालक को अपने घर ले लाई।
वहीं एक दिन भगवान शिव और पार्वती मां किसी कार्य के चलते घर से बाहर गए और जब वापस अपने घर आए तो उन्होंने अपने घर के कपट को बंद पाया। घर के दरवाजे बंद देख पार्वती मां ने शिव जी से कहा, हम तो बाहर थे तो घर को अंदर से किसने बंद किया। शिव भगवान ने पार्वती मां से कहा कि तुम जिस बालक को घर लेकर आई थी उसने दरवाजे बंद कर दिए हैं और वो बालक विष्णु भगवान थे। तब से इस जगह पर विष्णु भगवान का अधिकार हो गया और पार्वती मां और शिव जी बद्रीनाथ को छोड़कर केदारनाथ चले गए।
हालांकि ऐसा भी माना जाता है कि जब पार्वती मां को विष्णु जी बालक रुप में मिले थे तब पार्वती मां ने उनसे पूछा कि तुम्हे क्या चाहिए? तब बालक यानी विष्णु भगवान ने उनसे यह स्थान मांग लिया था। जिसके बाद पार्वती मां और शिव इस स्थान से चले गए और बद्रीनाथ को विष्णु भगवान ने अपने निवास स्थल बना लिया।
इस तरह से पड़ा बद्रीनाथ मंदिर का नाम
एक कथा के अनुसार एक बार मां लक्ष्मी भगवान विष्णु से नाराज होकर अपने मायके चले गई। मां लक्ष्मी को मनाने के लिए भगवान विष्णु ने कठोर तपस्या की। भगवान विष्णु की यह तपस्या देखकर मां लक्ष्मी मान गई और वह भगवान विष्णु से मिलने के लिए इस स्थान पर पहुंच गई। इस स्थान पर भगवान विष्णु बदरी नामक पेड़ के पास बैठकर तपस्या कर रहे थे और तब इस स्थान का नाम मां लक्ष्मी ने ‘बद्रीनाथ’ रख दिया।
बद्रीनाथ मंदिर का निर्माण
ऐसी मान्यता है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने यह मंदिर का निर्माण करवाया था और यह मंदिर 8वीं सदी में बनाया गया था। बद्रीनाथ मंदिर तीन हिस्सों में बांटा हुआ है। जो कि गर्भगृह, दर्शनमण्डप और सभामण्डप। इस मंदिर के अन्दर कुल 15 मूर्तियां स्थापित की गई है।
मंदिर से जुड़ी जानकारी
- बद्रीनाथ मंदिर में प्रसाद के तौर पर चने की कच्ची दाल, गिरी का गोला और मिश्री चढ़ाए जाते हैं। जबकि वनतुलसी की माला भगवान को अर्पित की जाती है।
- ऐसा कहा जाता है कि वेदव्यास ने महाभारत इसी जगह पर लिखी थी।
- स्वर्ग जाने से पहले पांडव इस जगह पर आए थे और यह जगह उनका अंतिम पड़ाव थी।
कैसे जाएं बद्रीनाथ धाम
यह मंदिर तीन रास्तों के जरिए पहुंचा जा सकता है। पहला रास्ता रानीखेत से, दूसरा रास्ता कोटद्वार होकर पौड़ी से है और तीसरा रास्ता हरिद्वार से होकर देवप्रयाग तक का है। यह तीनों रास्ते कर्ण प्रयाग में आकर मिल जाते हैं। आपको इन जगहों से आसानी से बद्रीनाथ जाने के लिए बस और टैक्सी मिल जाएंगे।
कहां रुकें
बद्रीनाथ मंदिर के पास ही कई सारी धर्मशाला और होटल हैं, जहां पर आप आसानी से रुक सकते हैं।
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