अमरनाथ यात्रा का महत्व: अमरनाथ गुफा में ही शिव ने सुनाई थी मां पार्वती को अमर रहने की कथा
अमरनाथ यात्रा का महत्व: अमरनाथ यात्रा हर साल होती है और इस यात्रा का हिस्सा लाखों लोग बनते हैं। अमरनाथ यात्रा के दौरान श्रद्धालु अमरनाथ गुफा में जाकर बाबा बर्फानी के दर्शन करते हैं। अमरनाथ यात्रा हर वर्ष जून – जुलाई के महीने से शुरू होती है और करीब दो महीनों तक चलती है। दरअसल इस दौरान इस गुफा में अपने आप ही बर्फ का शिवलिंग बनता है जिसे बाबा बर्फानी के नाम से जाना जाता है। लोग हर साल अमरनाथ गुफा में आकर बाबा बर्फानी के दर्शन करते हैं। इस यात्रा का हिस्सा बनने से पहले रजिस्ट्रेशन करवाना पड़ता है और जो लोग शारीरिक रूप से पूरी तरह से फीट होते हैं उन्हें ही इस यात्रा पर जाने की अनुमति दी जाती है।
कहां पर है अमरनाथ गुफा
अमरनाथ गुफा जम्मू कश्मीर राज्य में स्थित है और श्रीनगर से करीब 141 किलोमीटर की दूरी पर है। अमरनाथ यात्रा का आयोजन अमरनाथ जी श्राइन बोर्ड (एसएएसबी) द्वारा किया जाता है। अमरनाथ जी श्राइन बोर्ड द्वारा ही अमरनाथ यात्रा से जुड़े इंतजाम भी किए जाते हैं। अमरनाथ गुफा से एक कथा जुड़ी हुई है और इस कथा के अनुसार भगवान शिव ने अमरनाथ की गुफा में मां पार्वती जी को अमर होने से जुड़ी एक कथा सुनाई थी। जिसके बाद से यह गुफा प्रसिद्ध हो गई।
अमरनाथ यात्रा से जुड़ी कथा
अमरनाथ यात्रा का इतिहास बहुत ही प्रसिद्ध है। एक बार मां पार्वती ने भगवान शिव जी से पूछा, आप अमर हैं और मेरा शरीर नाशवान है। आपके अमर होने का क्या कारण है? तब शिव जी ने मां पार्वती से कहा वो अमर कथा के कारण अमर है। उन्होंने अमर कथा सुन रखी है जिसकी वजह से वो सदा के लिए अमर हो चुके हैं। मां पार्वती जी ने शिव जी से आग्रह किया कि वो उनको अमर कथा सुनाएं ताकि वो भी उनकी तरह अमर हो सकें और सदा उनके साथ रहे सकें। पार्वती के कहने पर शिव जी उन्हें अमर कथा सुनाने के लिए तैयार हो गए।
इसके बाद शिव जी एक ऐसे स्थान की तालाश में लग गए जहां पर कोई भी जीव ना हो। भगवान शिव को अमरनाथ गुफा के बारे में पता चला और वो मां पार्वती के साथ इस गुफा की ओर चल पड़े। अमरनाथ गुफा की ओर जाते हुए भगवान शिव ने सबसे पहले पहलगाम में नंदी का परित्याग किया। चंदनवाड़ी पहुंचकर उन्होंने अपनी जटाओं से चंद्रमा को आजाद किया। इसके बाद शेषनाग नामक झील पर पहुंचकर शिव जी ने अपने गले से सर्पों को उतारकर वहां रख दिया और आगे बढ़ गए। आगे जाकर उन्होंने श्री गणेश जी को महागुनस पर्वत पर छोड़ दिया। पंचतरणी पहुंचकर शिव जी ने पांचों तत्वों का परित्याग किया और इस तरह से अंत में केवल भगवान शिव और पार्वती जी अमरनाथ गुफा पहुंचे।
अमरनाथ गुफा पहुंचकर शिव जी ने मां पार्वती को अमरनाथ कथा सुनाना शुरू कर दिया। शिव जी को लगा मां पार्वती कथा सुन रही हैं लेकिन इस कथा को सुनते-सुनते पार्वती जी को नींद आ गई। वहीं इस गुफा में दो कबूतर मौजूद थे और इन दोनों कबूतरों ने यह अमर कथा सुन ली। जैसे ही शिव जी ने अमर कथा पूरी की तो उनकी नजर इन दोनों कबूतरों पर पड़ी। इन कबूतरों को देखकर शिव जी को गुस्सा आ गया और शिव जी ने इन्हें मारने के लिए अपना त्रिशुल उठा लिया। तभी इन कबूतरों ने शिव जी से कहा, प्रभु हम दोनों ने पूरी अमर कथा सुन ली है। अगर आप हम दोनों को मार देंगे तो यह कथा झूठी साबित हो जाएगी। कबूतरों की यह बात सुनकर भगवान शिव ने इन्हें नहीं मारा और इन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा कि तुम इस जगह पर मेरा और मां पार्वती के प्रतीक चिन्ह के रूप में निवास करोगे।
हर साल अमरनाथ यात्रा के दौरान यह कबूतर अमरनाथ की गुफा में देखने को मिलते हैं। ऐसी मान्यता है कि अमरनाथ गुफा में अगर इन कबूतरों का जोड़ा दिख जाएं तो श्रद्धालुओं की अमरनाथ यात्रा सफल हो जाती है और उनकी हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है।
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