अर्जुन के रथ पर इस वजह से नहीं हुआ दिव्यास्त्रों का असर लेकिन युद्ध खत्म होती ही लग गई थी आग
महाभारत युद्ध के साथ कई तरह की कथाएं जुड़ी हुई हैं और इन्हीं कथाओं में से एक कथा अर्जुन के रथ के साथ भी जुड़ी हुई है। इस युद्ध के दौरान अर्जुन के रथ पर कई बार प्रहार किया गया लेकिन उसके बाद भी अर्जुन का रथ एकदम सही रहा। महाभारत ग्रंथ के अनुसार अर्जुन के रथ की रक्षा हनुमान जी कर रहे थे और हनुमान जी इस रथ पर विराजमान थे।
हनुमान जी के अर्जुन के रथ पर विराजमान होने से एक कथा जुड़ी हुई है। इस कथा के अनुसार जब पांडवों को वनवास मिला था। उस दौरान भीम की मुलाकात हनुमान जी से हुई थी और हनुमान जी से भीम ने बल की शिक्षा ग्रहण की थी। एक दिन भीम ने भगवान हनुमान से अनुरोध किया की जब भी पांडवों का युद्ध कौरवों के साथ हो तो हनुमान जी उनका साथ दें और अर्जुन के रथ पर विराजमान हो जाएं। भीम को पता था कि अगर हनुमान जी अर्जुन के रथ पर विराजमान हो जाएंगे तो इस युद्ध में उन्हें कोई नहीं हरा सकेगा। भीम के इस अनुरोध को हनुमान जी ने स्वीकार कर लिया था और भीम से कहा था कि जब भी युद्ध शुरू हो तो वो लाल रंग का ध्वज अर्जुन के रथ पर बाँध दें। ऐसा करने से मैं स्वयं रथ पर विराजमान हो जाऊंगा। जब महाभारत का युद्ध शुरू हुआ तब भीम ने अर्जुन के रथ पर एक ध्वज बांध दिया था। इसके अलावा भगवान कृष्ण अर्जुन के सारथी बने और अर्जुन के रथ के पहियों पर शेषनाग विराजमान हो गए ताकि युद्ध के दौरान रथ पीछे की और ना खिसके।
कौरवों को लगता था कि उनके के पास भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य और कर्ण जैसे महारथी थे और वो आसानी से पांडवों को हरा देंगे। लेकिन असलियत में पांडवों का पलड़ा कौरवों से भारी था। क्योंकि पांडवों के साथ हनुमान जी, कृष्ण और शेषनाग मौजूद थे।
महाभारत युद्ध के दौरान कई बार अर्जुन के रथ पर प्रहार किया गया लेकिन इन प्रहारों के बाद भी अर्जुन के रथ को कुछ नहीं हुआ। वहीं जब ये युद्ध खत्म हुआ तो अर्जुन का रथ खुद ही जल गया। महाभारत के अनुसार युद्ध खत्म होने के बाद शेषनाग पाताल लोक चले गए थे और हनुमान जी भी रथ के ऊपर से अंतर्ध्यान हो गए थे। इसके बाद श्री कृष्ण जी के कहने पर अर्जुन इस रथ से उतर गए।
अर्जुन के बाद श्री कृष्ण भी इस रथ से उतर गए और श्री कृष्ण के उतरते ही रथ में आग लग गई। रथ को जलता देख अर्जुन हैरान हो गए और उन्होंने श्रीकृष्ण से पूछा की आखिर रथ में खुद से आग कैसे लग गई। तब श्रीकृष्ण ने कहा दिव्यास्त्रों के प्रहार से ये रथ पहले ही खत्म हो चुका था। हनुमान जी के विराजमान होने की वजह से और मेरे कारण इस रथ को कुछ नहीं हुआ। लेकिन आज इस रथ का काम पूरा हो गया है जिसकी वजह से इस रथ को हनुमान जी और मैंने छोड़ दिया और ये रथ भस्म हो गया है।