तालाबों को साफ करने का था जुनून, नहीं मिली ऑफिस से छुट्टी तो खुद बना दी महज़ 60 हज़ार की मशीन
अक्सर लोग अपने जीवन में कुछ अच्छा करने की सोचते हैं लेकिन उनकी मजबूरियां उन्हें अच्छा करने नहीं देती हैं. आम जीवन में नौकरी करते हुए कुछ अच्छे कामों को अंजाम देना मुश्किल हो जाता है फिर भी अगर किसी के अंदर हौसला हो कुछ भी कर गुजरने का तो कोई भी काम कठिन नहीं होता है. नौकरी बचाने और अच्छा करने का जज्बा जिस व्यक्ति के अंदर होगा वही कामयाब होता है. ऐसा ही किया एक टीचर ने, जिनके ऊपर तालाबों को साफ करने का था जुनून और जब ऐसा करने के लिए उन्हें छुट्टी नहीं मिलती थी तो उन्होंने किया कुछ ऐसा काम.
तालाबों को साफ करने का था जुनून
तालाब से खरपतवार हटाने का जुनून कुछ ऐसा था कि इस टीचर ने अपनी नौकरी दाव पर लगा दी. उन्हें बार-बार छुट्टी लेनी पड़ती थी और ऐसा करने से स्कूल वालों ने उन्हें नोटिस थमा दिया. ये बात है आंध्र प्रदेश का पोचमपल्ली गांव साड़ियों के लिए काफी प्रसिद्ध है. यहां से सिर्फ एक किलोमीटर पर मुक्तापुर नाम का एक गांव है और यहां पर मछली पकड़ने का मुख्य पेशा है. यहां पर स्थानीय तालाबों से यहां के मछुआरे मछलियां पकड़कर बेचते हैं और अपना घर चलाते है. मगर इन तालाबों में बरसात के मौसम में बहुत से खरपतवार उग जाते हैं जिससे मछुआरे परेशान हो जाते हैं. ये खरपतवार इतने तेजी से बढ़ते हैं कि जो दो-तीन दिन में पूरा तालाब ढक देते हैं. मछुआरों को साल में 3 बार यहां की सफाई करानी पड़ती है और अगर ये किसी मजदूरों से करवाते हैं तो तीन लाख रुपये खर्च हो जाते हैं. इन्ही मछुआरों में एक हैं गोदासु नरसिम्हा जो मछुआरे के साथ-साथ प्राइमरी स्कूल के टीचक भी थे. तालाब साफ करने के लिए उन्हें अक्सर स्कूल से छुट्टी लेनी पड़ती थी. बाद में स्कूल वालों ने उन्हें नोटिस पकड़ा दी अगर उन्होंने ये बंद नहीं किया तो उन्हें नौकरी छोड़नी पड़ेगी. इस स्थिति से निपटने के लिए नरसिम्हा ने खुद की मशी बनाने का काम शुरु किया.
नरसिम्हा ने वेबसाइट द बेटर इंडिया को बताया कि गांव के सरपंच और बाकी लोगों की मदद से उन्होंने 20,000 हजार रुपये इकट्ठा किए. सबसे पहले कटिंग मशीन बनाई लेकिन यह मशीन तालाब के बाहर ही चल पाती थी. अब पानी में इसके ब्लेड काम ही नहीं कर पा रहे थे फिर एक नई मशीन बनाने की जरूरत पड़ी. इस बार गांव के लोगों ने भी मदद से इंकार कर दिया फिर उन्हें अपने एक रिश्तेदार से 30,000 रुपये कर्ज लेने पड़े और उन्होंने उससे 10,000 रुपये की और जरूरत पड़ी जिसे उन्होंने दूसरे गांव से लिया. साल 2012 में इसे गांव के तालाब में उतारा गया और बड़ी कामयाबी मिली.
काम फैलने पर सरकार से मिली मदद
अपने गांव के साथ ही दूसरे गांवाों के तालाब को भी साफ किया गया. उनके बारे में जब स्थानीय अखबार में निकला तो पल्ले सृजना नाम की एक संगठन ने उनसे संपर्क किया और उनकी मदद से नरसिम्हा को अपना यह इनोवेशन राष्ट्रीय मंच पर दिखाने का मौका मिला. इसके बाद हैदराबाद नगर निगम ने उन्हें हैदराबाद के कई तालाबों औऱ झीलों का काम सौंपा. अब एक अच्छी क्वालिटी की मशीन की कुल लागत 30 लाख रुपये है औऱ अगर इस तरह की मशीन आप विदेश में खरीदें तो वो करीब 1 करोड़ रुपये की मिलेगी. अब इनकी मशीन को यूट्यूब पर खूब देखा जाता है और आज नरसिम्हा एक पॉपुलर चेहरा बन गए हैं.