जिस कार्य को कर्तव्य समझकर किया जाए, वो हमेशा सफल होता है
एक राज्य में अचानक से सूखा पड़ गया जिसकी वजह से इस राज्य की प्रजा को काफी नुकसान होने लगा। अकाल पड़ने की वजह से प्रजा राजा को कर देने में भी असमर्थ होने लगी। जिसके कारण राज्य का कोष धीरे-धीरे खाली होने लग गया। इस राज्य के राजा को ये चिंता सताने लगी कि अगर इसी तरह से राज्य का कोष खाली होने लगा तो राज्य की बुरी हालत हो जाएगी। इस चिंता के कारण राजा को नींद भी नहीं आया करती थी और ना ही भूख लगा करती थी।
राजा को इतना परेशान देख राजा की पत्नी ने अपने गुरु को राज्य में बुलाया और गुरु को पूरी बात बताई। जिसके बाद गुरु ने राजा से मुलाकात की और राजा से पूछा, आखिर तुम इतनी चिंता क्यों ले रहे हो? राजा ने कहा, उनको समझ नहीं आ रहा है कि वो कैसे अपने राज्य को चलाएं। गुरु ने राजा को सुझाव देते हुए कहा, तुम अपने सिंहासन को त्याग दो क्योंकि तुम्हारा सिंहासन ही तुम्हारी चिंता की मुख्य वजह है।
गुरु की ये बात सुनने के बाद राजा ने कहा, अगर मैं अपना सिंहासन त्याग दूंगा तो इसे कौन संभालेंगा। गुरु ने कहा, तुम अपने बेटे को राजा बना दो। लेकिन राजा का बेटा काफी छोटा था इसलिए राजा ने गुरु के इस सुझाव को नहीं माना। थोड़ी देर बाद गुरु ने राजा से कहा, तुम एक काम करो अपना राज्य मुझे सौंप दो। गुरु की ये बात राजा को सही लगी और राजा ने गुरु को राज्य सौंप दिया।
गुरु ने राजा से पूछा, अपना राज्य छोड़ने के बाद अब तुम क्या करोगे। राजा ने कहा कि वो व्यापार करने की सोच रहे हैं। इसपर गुरु ने कहा, व्यापार करने के लिए तो तुम्हें पैसे चाहिए होंगे और तुम्हारे पास अब एक रुपए भी नहीं रहा है। गुरु की ये बात सुनकर राजा गहरी सोच में पड़ गए। तब गुरु ने राजा से कहा, मुझे इस राज्य को चलाने के लिए एक नौकर की जरूरत है और अपने नौकर को हर महीने मैं 30 सोने के सिक्के वेतन के रूप में दूंगा। तुम मेरे यहां काम करो और जैसे तुम्हारे पास पैसे जुड़ जाएं, तुम ये नौकरी छोड़ देना। राजा ने गुरु की बात को मान लिया और उनके लिए काम करने को राजी हो गए।
राजा ने गुरु से पूछा कि आखिर उन्होंने क्या करना होगा? गुरु ने कहा कि मुझे इस बात का ज्ञान नहीं है कि आखिर किस तरह से राज्य को चलाया जाता है। इसलिए तुम इस राज्य की चलाओं।
गुरु का नौकर बनकर राजा ने राज्य के कार्यों को संभाल लिया और राज्य की हर परेशानी को हल कर दी। एक महीने बाद गुरु ने राजा से राज्य के हाल के बारे में पूछा। तब राजा ने कहा, राज्य एकदम सही से चल रहा है और नौकरी करने से मेरी चिंता भी दूर हो गई है।
गुरु ने राजा को समझाते हुए कहा, पहले तुम इस राज्य के काम को बोझ समझ रहे थे, लेकिन मेरा नौकर बनने के बाद तुमने इसे अपना कर्तव्य समझा। इसलिए तुम जो काम करो उसे अपना कर्तव्य समझों ना की बोझ। ये कहकर गुरु ने राजा को उनका राज्य फिर से सौंप दिया और वहां से चले गए।
कहानी से मिली सीख- जिस कार्य को कर्तव्य समझकर किया जाता है वो कार्य हमेशा सफल होता है।