गुरुवायुरप्पन मंदिर में की जाती है श्रीकृष्ण के बाल रूप की पूजा, जानें इस मंदिर से जुड़ी कथा
गुरुवायुरप्पन मंदिर भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है और इस मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण के बाल रूप की पूजा की जाती है। गुरुवायुरप्पन मंदिर केरल राज्य के त्रिशूल जिले से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर है और इस मंदिर को दक्षिण भारत की द्वारका के नाम से भी जाना जाता है। ये मंदिर दक्षिण भारत के बेहद ही लोकप्रिय तीर्थ स्थलों में से एक है।
गुरुवायुरप्पन मंदिर का इतिहास
एक कथा के अनुसार इस मंदिर को देव गुरु बृहस्पति और वायु देव द्वारा स्थापित किया गया है। जिसकी वजह से इस जगह को ‘गुरुवायुर’ नगर के नाम से जाना जाता है। गुरुवायुरप्पन मंदिर में रखी गई भगवान कृष्ण जी की मूर्ति से भी एक कथा जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि गुरु बृहस्पति और वायुदेव को कलयुग के दौरान भगवान कृष्ण जी के बाल रुप की एक मूर्ति मिली थी। ये मूर्ति मिलने के बाद वायु देव और गुरु बृहस्पति ने इस जगह पर एक मंदिर की स्थापना की और इस मंदिर में ये मूर्ति रख दी। इन दोनों देवों के नाम पर ही भगवान कृष्ण का नाम गुरुवायुरप्पन रखा गया और ये मंदिर गुरुवायुरप्पन के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
एक और अन्य कथा के अनुसार, जब द्वारिका में भयंकर बाढ़ आई थी तो ये मूर्ति पानी में बह गई थी और देव गुरु बृहस्पति को ये मूर्ति पानी में मिली थी। जिसके बाद देव गुरु बृहस्पति इस मूर्ति को स्थापित करने के लिए एक स्थान की तलाश में लग गए। वहीं देव गुरु बृहस्पति ने वायु देव से इस मूर्ति को स्थापित करने के लिए एक उचित स्थान ढूढ़ने को कहा और ये दोनों देव जगह की तलाश करते हुए केरल पहुंच गए। इस जगह पर इन्हें शिव और माता पार्वती मिले। शिव जी ने बृहस्पति और वायु देव को ये मूर्ति स्थापित करने के लिए एक जगह बताई और इन दोनों देवों ने गुरुवायुर नगर में ये मूर्ति स्थापित कर दी।
भगवान गुरुवायुरप्पन की मूर्ति
इस मंदिर में रखी गई भगवान कृष्ण की मूर्ति के चार हाथ हैं। एक हाथ में भगवान कृष्ण ने शंख पकड़ रखा है, दूसरे हाथ में सुदर्शन चक्र, तीसरे हाथ में कमल का फूल और चौथे हाथ में एक गदा पकड़ रखा है। भगवान कृष्ण की ये मूर्ति काले रंग की है और ये मूर्ति बहुत पुरानी है| इस मंदिर को इस तरह से बनाया गया है कि सूर्य की पहली किरण भगवान कृष्ण की मूर्ति के चरणों पर आकर गिरती है।
हर रोज आते हैं हजारों की संख्या में लोग
गुरुवायुरप्पन मंदिर बेहद ही प्रसिद्ध है और इस मंदिर में हर रोज हजारों की संख्या में लोग आया करते हैं। इस मंदिर को काफी भव्य तरीके से बनाया गया है। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण विश्वकर्मा जी द्वारा किया गया था। इस मंदिर में कला और साहित्य भी सिखाए जाते हैं। ये मंदिर करीब 5000 साल पुराना है और इस मंदिर के कुछ हिस्सों का पुनर्निमाण सन् 1638 के दौरान किया गया था।
केवल हिंदू धर्म के लोग कर सकते हैं प्रवेश
इस मंदिर में केवल हिंदू धर्म के लोग ही प्रवेश कर सकते हैं। हिंदू धर्म के अलावा अन्य धर्म के लोगों को इस मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं है। इस मंदिर को भूलोक वैकुंठम के नाम से भी जाना जाता है। भूलोक वैकुंठम का अर्थ धरती पर वैकुण्ठ लोक होता है।