अगर मुलायम सिहं यादव की ये बात को मान लेते अखिलेश यादव, तो नहीं होती इतनी बुरी हार
उत्तर प्रदेश में बीजेपी पार्टी को हारने के लिए महागठबंधन किया गया था और इस राज्य की कद्दावर पार्टी सपा-बीएसपी-आरएलडी ने एक साथ इस चुनाव को लड़ा था। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव को लगा की वो बीएसपी और आरएलडी के साथ मिलकर आसानी से मोदी को हरा सकेंगे। लेकिन अखिलेश यादव की ये सोच गलत साबित हुई। यूपी की जनता ने इस महागठबंधन का साथ नहीं दिया और इस गठबंधन को यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से केवल 15 ही सीटे मिल पाईं। इन 15 सीटों में से अखिलेश की पार्टी को महज पांच सीटे ही मिली, जबकि मायावती की पार्टी बीएसपी के खाते में 10 सीटे आई हैं।
अखिलेश यादव की पार्टी को साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव से ज्यादा बुरी हार इस बार के चुनाव में मिली है। जबकि मायवती का प्रदर्शन साल 2014 के चुनाव के मुकाबले अच्छा रहा है और बीएसपी को इस गठबंधन से सपा से ज्यादा फायदा पहुंचा है। ऐसा कहा जा रहा है बीएसपी पार्टी के वोटरों ने अखिलेश यादव की पार्टी को वोट नहीं दिए हैं। जबकि समाजवादी पार्टी के वोटरों की और से बीएसपी को वोट दिए गए हैं।
आधी-आधी सीटों पर लड़ा था चुनाव
सपा और बीएसपी पार्टी ने यूपी में आधी-आधी सीटों पर चुनाव लड़ा था। अखिलेश यादव को लगा कि एक साथ चुनाव लड़ने से वो आसानी से मोदी की हरा देंगे। लेकिन अखिलेश यादव का ये फॉर्मूला नाकाम रहा। हालांकि समाजवादी पार्टी के संस्थापक और अखिलेश यादव के पिता मुलायम सिंह यादव ने पहले ही इस गठबंधन को गलत करार दिया था और इस गठबंधन को समाजवादी पार्टी के लिए नुकसान बताया था। लेकिन अखिलेश यादव ने अपने पिता की सलाह को अनदेखा किया और इस राज्य में अपनी विरोधी पार्टी से हाथ मिला लिया।
क्या कहा था मुलायम सिंह
मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा था कि अखिलेश यादव ने मेरे से बिना सलाह लिए ही मायावती के साथ हाथ मिला लिया था और आधी सीटों पर गठबंधन कर लिया था। अखिलेश को आधी सीटे देने का आधार क्या है? अखिलेश के इस फैसले से अब हमारे पास केवल आधी सीटे ही रह गई हैं। हमारी पार्टी कहीं अधिक दमदार है। इस गठबंधन से समाजवादी पार्टी को ही नुकसान होने वाला है। लोकसभा चुनाव से पहले बोली गई मुलायम सिंह की ये बात अब सच साबित हुई है और इस बार के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को नुकसान हुआ और मायावती की पार्टी को फायदा पहुंचा।
दरअसल अखिलेश यादव को लग रहा था कि मायावती से हाथ मिलाकर उनको आसानी से आधी सीटे मिल जाएगी। लेकिन जिन सीटों पर समाजवादी के उम्मीदवार खड़े थे वहां पर बीएसपी के वोटरों ने उनको वोट ही नहीं दिए। जिसके चलते अखिलेश यादव का ये फॉर्मूला गलत साबित हुआ और उनके हाथ महज 5 ही सीटे लग सकी। जबकि बीएसपी पार्टी जिसे साल 2014 के लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं मिली थी उसे इस बार 10 सीटे आसानी से मिल गई।