पैरो से चलाती हैं फोटोकॉपी की दूकान, खुद अमिताभ बच्चन लिखते हैं चिट्ठी
हमारी जिंदगी में यदि थोड़ी सी समस्यां आ जाती हैं तो हम में से कई उसे एक बहाना बनाकर काम से चोरी करने लगते हैं. लेकिन आज हम आपको एक ऐसी लड़की से मिलाने जा रहे हैं जिसका शरीर का 80 फीसदी हिस्सा दिव्यांग हैं लेकिन फिर भी वो घर में हाथ पर हाथ धरे खाली नहीं बैठती हैं, बल्कि वो बाकायदा अपनी फोटोकॉपी की दूकान चला शान से जीती हैं. दरअसल हम यहाँ बात कर रहे हैं गुजरात के जैतपुर की रहने वाले विकलांग वंदना कटारिया की. आप जैसे ही वंदना की दूकान में एंट्री करोगे तो आपको वहां अमिताभ बच्चन और उनके परिवार के सदस्यों की कई सारी तस्वीरें देखने को मिल जाएगी. दरअसल वंदना अमिताभ बच्चन और उनके परिवार की बहुत बड़ी फैन हैं. इतना ही नहीं वो अक्सर बच्चन परिवार को चिट्ठीयां लिखा करती हैं. दिलचस्प बात ये हैं कि मुंबई से अमिताभ और उनके परिवार के लोग इन चिट्ठीयों के जवाब भी देते हैं.
पैरो से चलती हैं फोटोकॉपी की दूकान
आपको जान हैरानी होगी की वंदना अपने दोनों हाथों का इस्तेमाल नहीं कर सकती हैं लेकिन फिर भी बढ़िया तरीके से अपनी फोटोकॉपी की दूकान चलाती हैं. फोटोकॉपी की मशीन और कंप्यूटर ओपरेट करने के लिए हाथों की जरूरत पड़ती हैं लेकिन वंदना ये काम अपने पैरो से भी कर लेती हैं. ताज्जुब की बात ये हैं कि ऐसा करते समय उसकी स्पीड में कोई कमी नहीं आती हैं. वंदना की दूकान पर जितने भी कस्टमर आते हैं वो उसका ये टेलेंट देख हैरान रह जाते हैं. हर कोई वंदना की तारीफ़ करता नजर आता हैं.
अमिताभ से मिलना हैं सपना
जैसा कि हमने आपको बताया वंदन अमिताभ बच्चन की टॉप की फैन हैं. जब भी बच्चन परिवार से उसकी लिखी चिट्ठी का जवाब आता हैं तो वो उसे बड़े प्यार से संभाल कर रखती हैं. वंदना का एक ही सपना हैं कि वो अमिताभ बच्चन को अपनी आँखों से देखना चाहती हैं. अब जिस तरह से उन्हें अमिताभ जी के जवाब मिल रहे हैं हमें पूरी उम्मीद हैं कि एक दिन उनका ये प्यारा सपना भी जरूर पूरा होगा.
माँ ने किया पैरो पर खड़ा
अक्सर जब भी परिवार में विकलांग बच्चे होते हैं तो उनके माता पिता निराश हो जाते हैं और उन्हें बोझ समझने लगते हैं. लेकिन वंदना की माँ पुष्पाबेन की सोच ऐसी नहीं थी. वो वन्दना की कमियों के बावजूद उसे पैरो पर खड़ा करना चाहती थी. इसके लिए पुष्पाबेन ने अपनी दिव्यांग बेटी की पढ़ाई लिखाई में कोई कसर नहीं छोड़ी. वे उसे हर मोड़ पर प्रोत्साहित करती रही. बंदना भी इसके लिए अपनी माँ को ही प्रेरणा मानती हैं. आज अपनी माँ की बदौलत वंदना स्वयं के पैरो पर खड़ी हैं. वो अपना खर्चा खुद ही इस फोटोकॉपी की दूकान चलाकर निकाल लेती हैं. वंदना की इस लगन और साहस को हमारा दिल से सलाम हैं.
यदि हम सभी भी वंदना की तरह जीवन में सकारात्मक सोचने लगे तो लाइफ की आधी से ज्यादा समस्यां तो यूं ही हल हो जाएगी. वैसे यदि आपको हमारी ये स्टोरी पसंद आई तो इसे दूसरों के साथ भी जरूर शेयर करे.