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इस मंदिर में रखी गई मूर्ति के पीछे लिखी गई है रहस्यमयी लिपि, जिसे आज तक कोई नहीं पढ़ पाया

भगवती उग्रतारा मंदिर देवी मां उग्रतारा को समर्पित हैं और इस मंदिर में एक चतुर्भुजी देवी की प्रतीमा स्थापित है। इस मूर्ति से कई सारे रहस्य जुड़े हुए हैं और ऐसा कहा जाता है कि ये मूर्ति कम से कम 1000 वर्षों पुरानी है और इस मूर्ति के दर्शन करने के लिए दूर-दूर से लोग इस मंदिर में आते हैं।

मूर्ति के पीछे लिखी गई है रहस्यमयी लिपि

इस मंदिर में रखी गई मां की मूर्ति पर एक अलग ही भाषा में कुछ लिखा हुआ है और अभी तक कोई भी इस मूर्ति पर क्या लिखा गया है ये जान नहीं पाया है। ऐसा कहा जाता है कि इस मूर्ति पर लिखी गई लिपि को पहली बार देखा गया है और इस लिपि के बारे में किसी को भी जानकारी नहीं है। ये लिपी मां की मूर्ति के पीछे अंकित है और हजारों सालों से ये लिपि एक पहेली बनी हुई है।

कहां हैं ये मंदिर?

भगवती उग्रतारा मंदिर झारखंड राज्य के रांची शहर के पास स्थित है और ये एक प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर को शक्तिपीठ मंदिरों में गिना जाता है और ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर में रखी गई मां उग्रतारा की मूर्ति के दर्शन करने से मां अपने भक्तों की हर कामना को पूरा कर देती हैं। हर साल हजारों की संख्या में उत्तर प्रेदश और बिहार राज्य से लोग इस मंदिर में आकर मां उग्रतारा के दर्शन किया करते हैं और मां को अपनी पूजा से प्रसन्न कर अपनी मनोकामना पूरी कर लेते हैं।

मंदिर से जुड़ी कथा

इस मंदिर से जुड़ी कथा के अनुसार एक बार टोरी के शासक पीतांबर नाथ शाही को अपने सपने में मां की दो मूर्तियां दिखाई दी। ये सपना आने के कुछ दिनों बाद पीतांबर नाथ शाही शिकार करने के लिए जंगल में चले गए। जंगल में उनको प्यास लगने लगी और वो पानी की तलाश करते हुए एक तालाब के पास जा पहुंचे। लेकिन जैसे ही पीतांबर इस तालाब से पानी पीने लगे, इनको तालाब के अंदर दो मूर्तियां दिखाई दी। जिसमें से एक मूर्ति मां एक लक्ष्मी और दूसरी मां उग्रतारा की थी। इन दोनों मूर्तियों को पीतांबर नाथ शाही अपने साथ ले आया और इन्होंने ने एक मंदिर का निर्माण करवा वहां पर इन मूर्तियों को रख दिया।

होता है 16 दिवसीय विशेष पूजा

इस मंदिर से कई सारे लोगों की आस्था जुड़ी हुआ है और हर साल दशहरा के समय इस मंदिर में विशेष पूजा की जाती है और ये पूजा  16 दिनों कर चलती है। इस पूजा के दौरान मछली, भैंसे और आदि तरह के जानवरों की बलि भी दी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि जानवर की बलि देने से मां प्रसन्न हो जाती हैं और भक्तों की मुरादों को पूरा कर देती हैं। वहीं दशमी के दिन ये पूजा समाप्ति होती ही मां भगवती पर पान का पत्ता चढ़ाया जाता है। लोगों का कहना है कि मां पर चढ़ाया गया ये पत्ता गिरने के बाद ही पूजा को पूरी तरह से सफल माना जाता। 16 दिनों तक चलने वाली इस विशेष पूजा का हिस्सा बनने के लिए लोग दूर दूर से इस मंदिर में आते हैं।

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