प्रेरणादायक कहानी: जो आदमी समय का उपयोग करना नहीं जानता है, वो कभी सफल नहीं हो पाता है
एक ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ एक झोपड़ी में रहा करता था। ये ब्राह्मण काफी आलसी था। इस ब्राह्मण की पत्नी उसे जो भी काम देती थी वो उस काम को समय पर नहीं करता था। अपने पति के आलसी होने से ब्राह्मण की पत्नी काफी दुखी रहा करती थी। वहीं एक दिन ब्राह्मण के घर एक साधु आता है और उस साधु की देखभाल ब्राह्मण और उसकी पत्नी काफी अच्छे तरह से करते हैं। ये साधु जब इनके घर से जाने लगता है, तो वो ब्राह्मण और उसकी पत्नी को एक पारस का पत्थर सौंप देता है और उनसे कहता है कि वो ठीक 8 वें दिन आकर उनसे ये पत्थर ले जाएगा। इन सात दिनों तक वो जितना चाहें उतने लोहे को इस पत्थर मदद से सोना बना लें।
साधु से पारस का पत्थर मिलते ही ब्राह्मण और उसकी पत्नी खुश हो जाते हैं और घर में रखे हुए लोहे को इकट्ठा करने लग जाते हैं। लेकिन ब्राह्मण के घर ज्यादा लोहे का सामान नहीं होता है। जिसके चलते ब्राह्मण की पत्नी उसे कहती है कि ‘तुम कल बाजार जाकर वहां से लोहा खरीद लाना, हम उस लोहे को सोने में बदल देंगे’। लेकिन ये ब्राह्मण आलस के कारण बाजार नहीं जा पाता है। ब्राह्मण की पत्नी रोज उसे बाजार जाने को कहती लेकिन ये ब्राह्मण हर बार बाजार जाने की बात को टाल देता है। इसी तरह से दो दिन बीत जाते हैं। वहीं तीसरे दिन ये ब्राह्मण बाजार जाता है। मगर जब ये ब्राह्मण लोहे के दाम को पता करता है तो काफी अधिक होते हैं और ब्राह्मण के पास इतने पैसे नहीं होते हैं कि वो लोहे को खरीद सके। जिसके चलते ब्राह्मण अपने घर वापस आ जाता है और अपनी पत्नी को बताता है कि उसके पास पैसे कम थे जिसकी वजह से वो लोहा नहीं खरीद पाया। ब्राह्मण की पत्नी उसे तुरंत पैसे लाकर देती है और कहती है कि वो अभी बाजार जाकर लोहे को खरीद लाए। लेकिन ब्राह्मण आलस के कारण अगले दिन बाजार जाने की बात कहता था। इसी तरह से चार दिन बीत जाते हैं। ब्राह्मण पांचवे दिन बाजार जाता है मगर लोहे के दाम और बढ़ जाते हैं जिसके चलते ब्राह्मण लोहे को नहीं खरीदता है और सोचता है कि क्या पता कल लोहे के दाम कम हो जाए। अगले दिन जब ब्राह्मण फिर से बाजार जाता है लेकिन लोहे के दाम और अधिक हो जाते हैं और ब्राह्मण फिर से लोहे को नहीं खरीदता है।
सातवें दिन ब्राह्मण मन बना लेते है कि आज चाहे कुछ भी हो जाए वो लोहे को खरीद ही लेगा। लेकिन उस दिन बाजार बंद होता है और इस तरह से ब्राह्मण सातवें दिन भी लोहा नहीं खरीद पाता है। वहीं आठवें दिन साधु ब्राह्मण के घर आकर उससे पारस का पत्थर वापस मांग लेते हैं। ब्राह्मण और उसी पत्नी साधु से एक और दिन मांगते हैं, मगर साधु उनको एक और दिन देने से मना कर देता है और कहता है कि तुम लोग जब सात दिन में कुछ नहीं कर सके, तो एक दिन और लेकर क्या कर सकोगे। जो आदमी आलसी होता है और समय का उपयोग करना नहीं जानता वह कभी सफल नहीं होता। ये कहाकर साधु पारस के पत्थर को लेकर चले जाता है।