कौन थे प्रभु श्री राम के प्रिय भक्त केवट और किस तरह से इन्होंने करवाई थी राम जी को गंगा नदी पार
केवट रामायण से जुड़ा हुए का महत्वपूर्ण पात्र है। रामायण के अनुसार केवट राम जी के बहुत ही बड़े भक्त हुआ करते थे और केवट ने ही श्री राम, माता सीता और लक्ष्मण को गंगा नदी पार करवाई थी। केवट का जिक्र हमें रामायण के अयोध्या कांड में पढ़ने को मिलता है।
आखिर कौन थे केवट
ऐसा कहा जाता है कि जब ये संसार शुरू हुआ था तो उस दौरान केवट का जन्म कछुए के रूप में हुआ था और उस समय धरती पूरी तरह से जल में डूबी हुई थी।केवट से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार केवट ने कछुए के रूप से मोक्ष पाने के लिए भगवान विष्णु जी के अंगूठे को छुने की कोशिश की मगर वो ऐसा करने में सफल नहीं रहे। जिसके बाद केवट ने कछुए के रूप में भगवान विष्णु की कड़ी तपस्या की थी और केवट की इस तपस्या से खुश होकर भगवान विष्णु ने केवट को इंसान के रूप में जन्म लेने का वरदान दिया था।
इंसान के रूप में जन्म लेने के बाद केवट मछलियां पकड़ने का कार्य किया करते थे और मछलियां पकड़ कर ही अपने परिवार का पालन-पोषण किया करते थे। केवट के पास एक नाव हुआ करती थी जिसके जरिए वो गंगा नदी के पार जाया करते थे।
करवाई राम जी को गंगा पार
राम जी को वनवास मिलने के बाद वो सबसे पहले गोमती नदी को पार कर वेश्रृंगवेरपुर पहुंचे थे। वेश्रृंगवेरपुर इलाहाबाद से 20 किलोमीटर की दूर पर था। इस जगह पर पहुंचने के बाद राम जी को आगे जाने के लिए गंगा नदी को पार करना था लेकिन गंगा नदी को किस तरह से पार किया जाए राम जी इस चिंता में बैठे हुए थे। तभी उनकी नजर गंगा नदी पर खड़ी केवट की नाव पर पड़ी और राम जी ने केवट से कहा कि वो अपनी नाव से उन्हें गंगा के पार ले जाए।
राम और केवट के बीच जो संवाद हुआ उसका वर्णन रामायण में कुछ इस तरह से किया गया है-
मागी नाव न केवटु आना। कहइ तुम्हार मरमु मैं जाना॥
चरन कमल रज कहुं सबु कहई। मानुष करनि मूरि कछु अहई॥
रामायण के अनुसार राम जी केवट को आवाज लगाते हैं और उसे कहते हैं कि नाव किनारे ले आओ, पार जाना है। राम जी की आवाज सुनकर केवट उनसे कहते हैं कि मैंने सुना है कि तुम्हारे चरणों की धूल से पत्थर की शिला सुंदर सी स्त्री बन गई थी। मेरी ये नाव काठ की बनीं हुई है। अगर तुम्हारे चरण की धूल पत्थर को स्त्री बना सकती हैं, तो उसी तरह से मेरी नाव पर अगर तुम चढ़े तो वो भी स्त्री बन जाएगी। ऐसा होने से मेरी जिंदगी तबाह हो जाएगी और आप भी नदी को पार नहीं कर पाएंगे। इसलिए आप नाव में बैठने से पहले अपने पैरों को मेरे से साफ करवा लें। केवट की ये बात सुनने के बाद राम जी उनसे कहते हैं जो तुम्हें सही लगता है तुम वो करों।
इस तरह से केवट ने आखिरकार विष्णु जी के अवतर यानी राम जी के पैरों को छू लिया और उनके पैरों को अच्छे से धोने के बाद वो राम, माता सीता और लक्ष्मण को गंगा नदी के पार ले गए।