लगातार सिकुड़ता जा रहा है चंद्रमा, पड़ रही हैं सतह पर झुर्रियां-नासा
चांद की खूबसूरती अब मुरझाने लगी है और चांद का आकार पहले के मुकाबले कम हो रहा है। चांद से जुड़ा ये चौंकाने वाला खुलासा नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) की और से सोमवार को किया गया है। सोमवार को नासा की और से जारी की गई एक रिपोर्ट में ये बात कही गई है और इस रिपोर्ट के अनुसार चंद्रमा का आकार कम हो रहा है और ये सिकुड़ता जा रहा है। इसके अलावा चांद की सतह पर झुर्रियां भी पड़ रही हैं। नासा की और से चांद की खींची गई हजारों तस्वीरों का विश्लेषण करने के बाद चांद से जुड़ी ये रिपोर्ट बनाई है।
पड़ रही है चांद पर दरार
नासा के अनुसास एक अध्ययन में ये पाया गया है कि चांद पर दरार पैदा हो रही है और ये दरार चांद के उत्तरी ध्रुव के पास चंद्र बेसिन ‘मारे फ्रिगोरिस’ में पड़ी रही है। इतना ही नहीं ये अपनी जगह से खिसक भी रहा है। नासा ने बताया कि उन्होंने लूनर रीकॉनिसेंस ऑर्बिटर (LRO) द्वारा कैद की गई 12,000 से अधिक तस्वीरों के आधर पर ये रिपोर्ट तैयार की है।
चंद्र बेसिन ‘मारे फ्रिगोरिस’ को एक मृत स्थल माना जाता है और चंद्रमा में कोई भी टैक्टोनिक प्लेट नहीं है। लेकिन इसके बाद भी चांद पर टैक्टोनिक गतिविधियों होती है और इन टैक्टोनिक गतिविधियों से वैज्ञानिक काफी हैरान हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसी गतिविधि ऊर्जा खोने की प्रक्रिया में 4.5 अरब साल पहले हुई थी। वैज्ञानिकों के अनुसार ऊर्जा खोने की प्रक्रिया के कारण ही चांद की सतह पर झुर्रियां पैदा होती है और कई बार इस प्रक्रिया में चांद पर भूकंप भी आते हैं।
150 फुट तक सिकुड़ गया चांद
वैज्ञानिकों के मुताबिक पिछले लाखों वर्षों में चांद लगभग 150 फुट तक सिकुड़ गया है और ऊर्जा खोने की प्रक्रिया के कारण ही चांद की सतह पर असर पड़ रहा है और चांद का आकार कम हो रहा है। यूनिवर्सिटी ऑफ मेरी लैंड के भूगर्भ विज्ञानी निकोलस चेमर के अनुसार ऐसी संभावना है कि चांद पर लाखों साल पहले हुई भूगर्भीय गतिविधियां अभी तक जारी हैं। सबसे पहले चंद्रमा पर भूकंपीय गतिविधि पर नजर रखने का कार्य अपोलो अंतरिक्ष यात्रियों ने 1960 और 1970 के दशक में किया था। उनका विश्लेषण नेचर जीओसाइंस में प्रकाशित किया गया था और इस विश्लेषण में चांद पर आने वाले भूकंपों से जुड़ी बाते लिखी गई थी।
गौरतलब है कि चांद पृथ्वी का एक उपग्रह जो कि पृथ्वी से लगभग 384,400 किलोमीटर की दूरी पर है। चांद पर कदम रखने वाले पहले इंसान नील आर्मस्ट्रॉन्ग थे और उन्होंने 21 जुलाई 1969 को चांद की सतह पर कदम रखा था। वहीं साल 1972 में चांद पर यूजीन सेरनन को भेजा गया था और ये चांद पर पहुंचने वाले आखिरी अंतरिक्ष यात्री थे। यूजीन सेरनन के बाद अब तक कोई भी इंसान चांद पर नहीं गया है। हालांकि लूनर रीकॉनिसेंस ऑर्बिटर के जरिए नासा चांद की गतिविधियों पर नजर रख रहा है और इन्हीं गतिविधियों के आधार पर नासा की और चांद के सिकुड़ने की बात कही गई है ।