काफी ताकरवर था बर्बरीक, बर्बरीक से पांडवों की रक्षा करने के लिए कृष्ण ने चली थी ये चाल
महाभारत में कई सारे योद्धाओं का जिक्र किया गया है और इन्हीं महान योद्धाओं में से एक बर्बरीक भी हुआ करते थे। बर्बरीक भीम के पुत्र घटोत्कच के बेटे थे और इनकी मां नाग कन्या अहिलवती की पुत्र थी। महाभारत के अनुसार बर्बरीक काफी शक्तिशाली हुआ करता था और बर्बरीक के एक तीर से ही कौरवों या पांडवों की सेना मिनटों में खत्म हो सकती थी। जब एक बार बर्बरीक से ये पूछा गया कि वो कौरवों और पांडवों में से किसका साथ युद्ध के दौरान देने वाले हैं तो बर्बरीक ने कहा कि वो उस पक्ष की तरफ से लड़ेगा जो हार रहा होगा। बर्बरीक की इस बात ने कृष्ण जी को काफी चिंता में डाल दिया था।
एक दिन कृष्ण जी ने सोच की क्यों ना ये देखा जाए की आखिर बर्बरीक कितना ताकतवर है? फिर क्या था कृष्ण जी अर्जुन के साथ बर्बरीक से मिलने के लिए उसके पास चले गए। कृष्ण जी ने बर्बरीक से मिलकर उससे कहा, क्या तुम इस वृक्ष के सारे पत्तों में एक ही तीर से छेद कर सकते हो? अगर तुम ऐसा कर दो तो मैं मान जाऊंगा की तुम शाक्तिशाली हो। बर्बरीक ने कृष्ण की आज्ञा मानते हुए एक तीर को वृक्ष की ओर छोड़ दिया।
बर्बरीक की और से छोड़ा गया तीर एक-एक कर पत्तों पर छेद करने लगा। तभी पेड़ का एक पत्ता टूटकर कृष्ण जी के पास आ गया और कृष्ण जी ने बेहद ही चलाकी के साथ उस पत्ते पर पैर रख दिया। ताकि बर्बरीक की और से छोड़े गए तीर से ये पत्ता बच जाए और उसमें छेद ना हो सके। लेकिन बर्बरीक की और से छोड़ा गया तीर पेड़ के सभी पत्तों में छेद करने के बाद कृष्ण जी के पैरों के पास आकर रुक गया। तीर को अपने पैरों के पास देख कृष्ण जी हैरान हो गए। तब बर्बरीक ने कृष्ण जी से कहा, हे प्रभु आप अपने पैर को पेड़ के पत्ते के ऊपर से हटा दें। क्योंकि मैंने तीर को सिर्फ पत्तों को छेदने की आज्ञा ही दी हुई है।
बर्बरीक की ताकत देख कृष्ण जी को इस बात का एहसास हो गया कि यदि कौरव हारने लगते हैं तो बर्बरीक उनकी मदद करेगा और ऐसा होने पर बर्बरीक अपने एक तीर से ही पांडवों की सारी सेना को नष्ट कर देगा।
भेष बदलकर मांगा बर्बरीक का शीश
बर्बरीक से पाड़वों की रक्षा करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ब्राह्मण ने एक ब्राह्मण का रूप धारण कर बर्बरीक के पास जाकर उससे दान मांगा। जब बर्बरीक ने ब्राह्मणरूपी कृष्ण से पूछा की आपको क्या चाहिए तो। तो कृष्ण जी ने बर्बरीक से उसका शीश मांग लिया। जिसके बाद बर्बरीक ने बिना कुछ सोचे अपना शीश कृष्ण जी को दे दिया। बर्बरीक द्वारा किए गए शीशदान के चलते श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को स्वयं के नाम से पूजित होने का वरदान दिया और आज बर्बरीक को खाटू श्याम के नाम से पूजा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जिस जगह पर कृष्ण ने बर्बरीक के शीश को रखा था उस जगह का नाम खाटू है।