एक ऐसा स्कूल जहाँ बच्चे फीस के रूप में पैसा नहीं ‘प्लास्टीक कचरा’ देते हैं, जाने क्यों?
प्लास्टिक एक ऐसी चीज हैं जो पर्यावरण को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता हैं. इससे छुटकारा पाना भी इतना आसान नहीं होता हैं. इसे जमीन में गाड़ भी दिया जाए तो ये गलने में सैकड़ों साल का समय ले लेता हैं. वहीं इसे आग में जलाकर पिघालने पर कई हानिकारक गैस निकलती हैं. ऐसे में इसे रिसाइकल करना ही एक मात्र विकल्प रह जाता हैं. हालाँकि समस्यां ये हैं कि ये प्लास्टिक की चीजें अक्सर लोग यूं ही फेंक देते हैं. इसलिए ये सही हाथो में नहीं जा आती हैं जहाँ इनका फिर से सही इस्तेमाल किया जा सके. इसी समस्यां को हल करने के लिए असम के अक्षर फाउंडेशन स्कूल ने बहुत ही अनोखी पहल की हैं. यहाँ पढ़ने वाले बच्चे स्कूल में फीस के रूप में पैसा नहीं बल्कि प्लास्टिक का कचरा देते हैं. रोज सुबह यहाँ के बच्चों का एक समूह किताब लेकर निकलता हैं और आस-पड़ोस के घरो और बाहरी एरिया से प्लास्टिक चुनकर लाता हैं.
‘अक्षर’ के सह-संस्थापक मज़िन मुख्तार ने बताया कि प्लासिक के रूप में स्कूल फीस देने का आईडिया कुछ ही महीने पुराना हैं. वैसे देखा जाए तो हम यहाँ के बच्चों को फ्री में एजुकेशन देते हैं. हालाँकि हमने ये अनोखी पहल प्लास्टिक कचरे से निपटने के लिए की हैं. जब बच्चे आसपास से इस प्लाटिक कचरा बिन के लाते हैं तो हम इसे इन्ही बच्चों की सहायता से रिसाइकल कर लेते हैं. इन रिसाइकल प्लास्टिक्स का उपयोग छोटे निर्माण संबंधित कार्यों में किया जाता हैं. इस प्रक्रिया के तहत बच्चों से प्लाटिक के इन कचरे की इको-ब्रिक्स बनवाई जाती हैं. ये काम बच्चों की एक्स्ट्रा एकेडमिक एक्टिविटीज के दौरान होता हैं. प्लास्टिक के कचरे, सीमेंट और कंक्रीट से बनी इंटों को घर की दीवारे या अन्य निर्माण कार्य में इस्तेमाल किया जाता हैं. इसके अतिरिक्त बच्चों को वृक्षारोपण और जानवारों की देखभाल भी सिखाई जाती हैं.
इस एक्टिविटी के दौरान एक और दिलचस्प चीज होती हैं. दरअसल जब बच्चे यहाँ कचरा बिन लाते हैं तो उन्हें बदले में टॉय मनी (बच्चों के नकली पैसे) दिए जाते हैं. इन टॉय मनी से बच्चे लोकल शॉप से जूते, कपड़े और किताबें भी खरीद सकते हैं. इस स्कूल में 100 से अधिक बच्चे पड़ते हैं. इनकी उम्र 4 से 15 के बीच में हैं. इनमे अधिकतर बच्चे मजदूरों के हैं. इस तरह वे जीवन में पैसा कमाना और उसकी अहमियत भी सिख जाते हैं. इस स्कूल में पढ़ाई का मॉडल भी बड़ा रोचक हैं. यहाँ टीचर्स पहले सीनियर स्टूडेंट्स को पढ़ाते हैं. फिर ये सीनियर छात्र अपने जूनियर साथियों को पढ़ाते हैं. इसे पीयर-टू-पीयर लर्निंग मॉडल के नाम से जाना जाता हैं.
असम का ‘अक्षर’ अपने आप में एक अनोखा स्कूल हैं. इसके इरादे और सोच बड़ी ही नेक हैं. इससे ना सिर्फ बच्चों की पढ़ाई लिखाई हो रही हैं बल्कि उन्हें प्रयावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारियां भी समझाई जा रही हैं. प्लास्टिक कचरा आज के समय में बहुत बड़ी समस्यां बना हुआ हैं. ऐसे में हम भी इन लोगो से सिख ले सकते हैं. अपने आसपास सड़क पर यूं की प्लास्टिक कचरा ना फेंके. इसे आप किसी कबाड़ वाले को दे सकते हैं या फिर बाकायदा कचरा वाहनों में डाल सकते हैं. इस तरह इसका सही इस्तेमाल (रिसाइकल) हो आएगा.