दिलचस्प

एक अनमोल अंगूठी और गुरु-शिष्य की प्रेरणादायक कहानी

एक गांव में काफी प्रसिद्ध गुरुकुल हुआ करता था और उस गुरुकुल में एक विद्धान गुरु रहा करता था जो कि साधारण जीवन जिया करता था। एक दिन इस गुरुकुल का एक शिष्य उस गुरु के पास गया और उसने गुरु से पूछा, ‘आप काफी विद्वान हैं और आपकी वजह से ही इस गुरुकुल में दूर-दूर से बच्चे पढ़ने के लिए आया करते हैं’। लेकिन आप इतने साधारण कपड़े क्यों पहनते हैं’। ‘मैंने कभी भी आपको अच्छे कपड़ों में नहीं देखा’। अपने शिष्य की बात सुन गुरु ने उसे कहा, ‘तुम मेरा एक काम कर सकते हो’  शिष्य ने तुरंत कहा ‘हां क्यों नहीं’। ‘बताई क्या काम करना हैं’। तब गुरु ने शिष्य को अपनी उंगली से एक अंगूठी निकालकर दी और उसे कहा ‘तुम इस अंगूठी को किसी भी व्यक्ति को बेच देना और इसके बदले एक सोने की अशर्फी ले आना’।

शिष्य ने अपने गुरु की बात मान ली और अपने गुरु की साधारण सी दिखने वाली अंगूठी को वो बेचने के लिए चले गया। ये शिष्य एक बाजार में इस अंगूठी को लेकर गया और उसने उस बाजार में  सब्जी वाले, कपड़े वाले और इत्यादि तरह के लोगों को वो अंगूठी दिखाई और उनसे कहा कि ‘आप इस अंगूठी को ले लें और इसके बदले मुझे एक सोने की अशर्फी दे दें’। लेकिन किसी ने भी उस अंगूठी को नहीं खरीदा और शिष्य उस अंगूठी को बेचे बिना गुरुकुल वापस आ गया। गुरुकुल आकर उसने अपने गुरु से कहा कि ‘मैंने खूब कोशिश की लेकिन किसी भी व्यक्ति को ये अंगूठी इतनी कीमती नहीं लगी कि वो इसके बदले मेरे को एक सोने की अशर्फी दे सके’।

अपने शिष्य की बात सुनने के बाद गुरु ने उससे कहा ‘कोई बात नहीं तुम कल इस अंगूठी को लेकर किसी जौहरी के पास जाना और उसे ये अंगूठी बेच देना’।’ इस अंगूठी के बदले वो जो तुम्हें दे सके वो ले आना’। अपने गुरु की बात को मानते हुए शिष्य अगले दिन अंगूठी को बेचने के लिए जौहरी के पास गया। लेकिन कुछ समय बाद वो फिर से अंगूठी को बिना बेचे हुए गुरुकुल वापस आ गया।

गुरुकुल वापस आकर शिष्य अपने गुरु के पास गया, शिष्य को देख गुरु ने कहा ‘क्या हुआ आज भी किसी ने तुमको इस अंगूठी के बदले एक भी सोने की अशर्फी देने उचित नहीं समझा’। गुरु की बात सुन शिष्य उनसे बोला, ‘नहीं गुरु जी, बात ये नहीं हैं, जब मैं एक जौहरी के पास इस अंगूठी को लेकर गया तो उसने इस अंगूठी को देखकर कहा कि इस अंगूठी का मूल्य बहुत ज्यादा है और उसके पास इतने पैसे नहीं है कि वो इस अंगूठी को खरीद सके’। ‘फिर मैं दूसरे जौहारी के पास भी गया और उस जौहरी ने भी इस अंगूठी की कीमत काफी अधिक बताई और कहा कि इस अनमोल हीरे को खरीदने के लिए लाखों सोने की अशर्फियां भी कम पड़ेगी’।

अपने शिष्य की बात सुनकर गुरु ने उससे कहा कि ‘तुमने मेरे से साधारण कपड़े पहन ने को लेकर एक सवाल किया था और उस सवाल का उत्तर तुम्हें आज मिल गया है’। जिस तरह से इस अनमोल अंगूठी की कीमत का अंदाजा तुम और अन्य लोग इसको देखकर नहीं लगा पाया। उसी प्रकार से इंसान के वस्त्रों को देखकर उसे आंकाना नहीं चाहिए। अपने गुरु की ये बात सुन शिष्य को समझ आ गया कि व्यक्ति की वेश-भूषा से बड़ा उसका ज्ञान होता है, व्यक्ति की पहचान उसके ज्ञान से होती है ना की कपड़े से।

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