पीएम मोदी पर घूस के आरोप में जांच की मांग वाली याचिका ख़ारिज, कोर्ट ने कहा अविश्वसनीय हैं दस्तावेज!
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और दिल्ली के सीएम अरविन्द केजरीवाल अक्सर पीएम पर सहारा से घूस लेने का आरोप लगाते रहते हैं. वो दोनों जिस दस्तावेज के आधार पर प्रधानमंत्री पर घूस लेने का आरोप लगाते रहते हैं, सुप्रीम कोर्ट ने उस आधार को ही निराधार बताते हुये अपर्याप्त घोषित कर दिया है.
दरअसल मामला है. सहारा-बिडला डायरी का. दिल्ली के जाने माने वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करने और जाँच के आदेश देने से मना कर दिया. कोर्ट ने नरेन्द्र मोदी और अन्य के खिलाफ जाँच कराने के लिये प्रस्तुत सबूतों को अपर्याप्त बताया.
प्रशांत भूषण की याचिका में प्रधानमंत्री मोदी पर जाँच की मांग की गई है. असल में इनकम टैक्स विभाग के एक छापे में सहारा के ऑफिस से एक डायरी मिली थी. जिसमें कथित रूप से यह लिखा है कि 2003 में गुजरात के सीएम को 25 करोड़ रूपये का घूस दिया गया. और 2003 में पीएम मोदी ही गुजरात के सीएम थे. उस डायरी में गुजरात के अलावा तीन और मुख्यमंत्रियों का घूस देने की बात लिखी है.
सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ-
सुप्रीम कोर्ट ने जब्त दस्तावेजों की विश्वसनीयता के बारे में पूछा जिसका जवाब देते हुये एटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने दस्तावेजों को अविश्वसनीय बताया उन्होंने कहा कि किसी भी दस्तावेज पर यूं ही भरोसा नहीं किया जा सकता, ऐसे कागजों के आधार पर मुकदमा नहीं किया जा सकता,
अटॉर्नी जनरल ने सवाल उठाते हुये कहा, ‘मैं लिख सकता हूं, मैंने राष्ट्रपति को पैसे दिए, महज मेरे लिखने के आधार पर FIR क्या दर्ज हो सकती है?’ सहारा ने डायरी और दस्तावेजों को खारिज किया ये सबूत अविश्वसनीय हैं.
अटॉर्नी जनरल की मजबूत दलीलों पर याचिका दाखिल करने वाले पक्ष की तरफ से शांति भूषण ने कहा, ‘FIR के लिए सबूतों की जरूरत नहीं हैं, अगर कोई शिकायत करता है तो जांच होनी चाहिए’, इस पर बेंच ने पूछा, ‘क्या सिर्फ आरोप के आधार पर ही जाँच हो सकती है?’
शांति भूषण ने कहा, ‘अगर आरोपी लोक सेवक है तो जांच होनी चाहिए, जांच करने वाले की जिम्मेदारी है सबूत ढूंढना’
सुप्रीम कोर्ट ने ख़ारिज की याचिका-
कोर्ट ने बहस के बाद दस्तावेजों को शून्य बताते हुए याचिकाकर्ता संगठन को पुख्ता प्रमाण पेश करने के लिए कहा था, याचिकाकर्ता संगठन सीपीआईएल ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल करके आयकर विभाग की अप्रेजल रिपोर्ट का हवाला दिया. उन्होंने हलफनामे में लिखा कि आयकर विभाग की अप्रैजल रिपोर्ट, डायरी और ई-मेल साफ-साफ इशारे करती है कि राजनेताओं को रिश्वत दी गई थी, लिहाजा सुप्रीम कोर्ट को जांच का आदेश देना चाहिए. ऐसे पुख्ता सबूत मिलना आम बात नहीं है और ऐसे में न्यायालय को जाँच का आदेश देना चाहिये. अगर सुप्रीम कोर्ट ऐसा नहीं करता है तो यह न्यायसंगत नहीं होगा.
फ़िलहाल कोर्ट ने इन सबूतों और दस्तावेजों को अविश्वसनीय और आधारहीन मानते हुये जांच के आदेश देने से साफ़ इंकार कर दिया है.