महान हिंदू कवि और संत तुलसीदास का जीवन परिचय
तुलसीदास (Tulsidas in hindi) जी को एक महान हिंदू कवि और संत का दर्जा प्राप्त है और इन्होंने कई सारी साहित्य रचनाओं को लिख रखा हैं। तुलसीदास जी ‘रामचरितमानस’ के भी रचयिता हैं और ऐसा कहा जाता है कि स्वयं हनुमान जी ने ‘रामचरितमानस’ को लिखने में संत तुलसीदास जी की मदद की थी। हनुमान जी ने इनको भगवान राम जी के जीवन के बारे में बताया था।
संत तुलसीदास का जीवन परिचय (Tulsidas Biography In Hindi)
संत तुलसीदास (Tulsidas) भगवान राम जी के बहुत ही बड़े भक्त हुआ करते थे और यह हमेशा राम जी की भक्ति में ही लीन रहा करते थे। हमारे देश के इस महान संत ने अपने जीवन काल में कई सारी अद्भुत दोहे भी लिख रखे है। आइये जानते हैं संत तुलसीदास का जीवन परिचय विस्तार से –
पूरा नाम | गोस्वामी तुलसीदास |
जन्म स्थान | सवंत 1511, राजापुर, बांदा, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु स्थान | 1623, वाराणसी |
शिक्षा | वेद, पुराण एवं उपनिषदों का ज्ञान |
माता का नाम | हुलसी देवी |
पिता का नाम | आत्माराम दुबे |
पत्नी का नाम | रत्नावली |
बच्चे का नाम | तारक |
धर्म | हिन्दू धर्म |
पेशा | कवि और संत |
प्रसिद्ध साहित्यिक कार्य | रामचरितमानस, विनयपत्रिका, दोहावली, कवितावली, हनुमान चालीसा और इत्यादि. |
संत तुलसीदास का जन्म (Tulsidas ka Jeevan Parichay)
तुलसीदास का पूरा नाम गोस्वामी तुलसीदास (Tulsidas in hindi) हुआ करता था और इनका जन्म सन् 1511 में उत्तर प्रदेश के राजापुरा में हुआ था। हालांकि इनके जन्म के वर्ष और स्थान को लेकर कोई सटीक जानकारी नहीं है। इनके माता-पिता का नाम हुलसी देवी और आत्माराम दुबे थे। ऐसा कहा जाता है कि इनका जन्म अशुभ नक्षत्रों के दौरान हुआ था। जिसकी वजह से यह अपने माता-पिता के लिए अशुभ साबित हुए थे और इनके अशुभ होने के कारण इनके माता-पिता ने इनका त्याग कर दिया था। जिसके बाद संत बाबा नरहरिदास ने इनका पालन पोषण किया था और इनको बाबा नरहरिदास ने ही विद्या दी थी।
कितने विद्वान थे तुलीसदास
ऐसा माना जाता है कि तुलसीदास को वेद, पुराण एवं उपनिषदों की ज्ञान था। साथ में ही इनको अवधी और ब्रज भाषा भी खूब अच्छे से आती थी। इन्होंने इन भाषाओं में ही अपनी रचानाओं को लिख रखा है।
संत तुलसीदास का विवाह
तुलसीदास का विवाह पंडित दीनबंधु पाठक की बेटी रत्नावली से हुआ था और इस शादी से इन्हें एक बेटा हुआ था। जिसका नाम तारक था। ऐसा कहा जाता है कि तुलसीदास अपने पत्नी से बेहद ही प्यार किया करते थे और एक पल भी उनसे दूर नहीं रहा करते थे। एक दिन रत्नावली को तुलसीदास पर काफी क्रोध आ गया और उन्होंने गुस्से में तुलसीदास से कहे दिया कि वो जीतना उसने प्यारा करते हैं, उतना समय प्रभु राम की भक्ति में क्यों नहीं लगाते हैं। अपनी पत्नी की बात उनके दिल पर लग गई और उन्होंने प्रभु राम की भक्ति में खुद को लीन कर लिया।
संत तुलसीदास ने शुरू की तीर्थ यात्रा
भगवान राम के भक्ति में पूरी तरह से डूबे तुलसीदास (Tulsidas) ने कई सारी तीर्थ यात्रा की और यह हर समय भगवान श्री राम की ही बातें लोगों से किया करते। संत तुलसीदास ने काशी, अयोध्या और चित्रकूट में ही अपना सारा समय बिताना शुरू कर दिया। इनके अनुसार जब उन्होंने चित्रकूट के अस्सी घाट पर “रामचरितमानस” को लिखना शुरू की तो उनको श्री हनुमान जी ने दर्शन दिए और उनको राम जी के जीवन के बारे में बताया। तुलसीदास जी ने कई जगहों पर इस बात का भी जिक्र किया हुआ है कि वे कई बार हनुमान जी से मिले थे और एक बार उन्हें भगवान राम के दर्शन भी प्राप्त हुए थे। वहीं तुलसीदास ने भगवान राम के साथ हनुमान जी की भक्ति करने लगे और उन्होंने वाराणसी में भगवान हनुमान के लिए संकटमोचन मंदिर भी बनवाया।
लगभग तीन साल में लिखी रामचरितमानस (Tulsidas Ramcharitmanas)
भगवान राम जी के जीवन पर आधारित महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ को पूरा करने में संत तुलसीदास को काफी सारा समय लगा था और इन्होंने इस महाकाव्य को 2 साल 7 महीने और 26 दिन में पूरा किया था। रामचरितमानस में तुलसीदास ने राम जी के पूरे जीवन का वर्णन किया हुआ है। रामचरितमानस के साथ साथ उन्होंने हनुमान चालीसा की भी रचना की हुई है।
संत तुलसीदास जी की मृत्यु
तुलसीदास (Tulsidasin hindi) के निधन के बारे में कहा जाता है कि इनकी मृत्यु बीमारी के कारण हुई थी और इन्होंने अपने जीवन के अंतिम पल वाराणसी के अस्सी घाट में बिताए थे। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने अपने जीवन के अंतिम समय में विनय-पत्रिका लिखी थी और इस पत्रिका पर भगवान राम ने हस्ताक्षर किए थे। इस पात्रिका को लिखने के बाद तुलसीदास का निधन 1623 में हो गया था।
तुलसीदास के द्वारा लिखी गई रचानाएं और दोहे (Tulsidas Ke Dohe)
- रामचरितमानस
- रामलला नहछू
- बरवाई रामायण
- पार्वती मंगल
- जानकी मंगल
- रामाज्ञा प्रश्न
- कृष्णा गीतावली
- गीतावली
- साहित्य रत्न
- दोहावली
- वैराग्य संदीपनी
- विनय पत्रिका
- हनुमान चालीसा
- हनुमान अष्टक
- हनुमान बहुक
दोहा-1
“दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान, तुलसी दया न छोडिये जब तक घट में प्राण।”
मतलब- धर्म, दया भावना से उत्पन्न होती और अभिमान तो केवल पाप को ही जन्म देता हैं, मनुष्य के शरीर में जब तक प्राण हैं, तब तक उसे दया भावना कभी नहीं छोड़नी चाहिए।
दोहा-2
“सरनागत कहूँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि, ते नर पावॅर पापमय तिन्हहि बिलोकति हानि।”
मतलब- जो इन्सान अपने अहित का अनुमान करके शरण में आये हुए का त्याग कर देते हैं वे क्षुद्र और पापमय होते हैं। दरअसल, उनको देखना भी उचित नहीं होता।
दोहा-3
“मुखिया मुखु सो चाहिये खान पान कहूँ एक, पालड़ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित बिबेक.”
मतलब- मुखिया मुख के समान होना चाहिए जो खाने पीने को तो अकेला हैं, लेकिन विवेकपूर्वक सभी अंगो का पालन-पोषण करता है।
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