एक कबूतर के प्राण बचाने के लिए महान राजा शिबि ने किया था अपने शरीर का दान, जरूर पढ़ें ये कहानी
राजा शिबि के बारे में महाभारत में उल्लेख मिलता है और कहा जाता है कि ये काफी दयालु राजा हुआ करते थे। राजा शिबि के दयालु पन से एक कथा भी जुड़ी हुई है और उस कथा के अनुसार राजा शिबि एक बार अपने राज्य में महा यज्ञ कर रहे थे। तभी इनके पास एक कबूतर आ गया और वो कबूतर सीधा इनकी गोद में बैठ गया। कबूतर के पीछे-पीछे एक बाज भी वहां पर आ गया। कबूतर को राजा की गोद में देख, बाज ने राजा शिबि से कहा ‘महाराज मेरा भोजन आपके पास है आप मुझे ये कबूतर वापस कर दो’। बाज की बात खत्म होते ही कबूतर ने राजा को बोला ‘मैं आपकी शरण में आया हूं, आप मेरी रक्षा करें’। ‘अगर आप मुझे बाज को सौंप देंगे तो वो मुझे मारकर खा लेगा’। राजा शिबि गहरी सोच में पड़ गए। तभी बाज ने राजा से कहा ‘अगर आप मेरे को मेरा भोजन नहीं देंगे तो मैं मर जाऊंगा और ऐसा होने पर मेरे बच्चे अनाथ हो जाएंगे’। ‘आप किसी भी व्यक्ति से उसका भोजन नहीं छीन सकते हैं’।
राजा शिबि ने बाज से कहा ठीक है ‘मैं तुम्हें भोजन खाने को दूंगा’, ‘तुम इस कबूतर को छोड़ दो, इस कबूतर के बदले तुम में राज्य का सारा भोजन ले लो’। राजा की बात सुन बाज ने कहा ‘मुझे बस इस कबूतर के जितना ही मांस खाने को चाहिए, क्या आप मुझे मांस दे सकते हैं’। राजा शिबि ने बाज से कहा ठीक है जितना इस कबूतर का वजन है, मैं तुमको अपने शरीर से उतना मांस काटकर दे दूंगा।
राजा शिबि ने एक तराजू को मंगवाया और उसके एक पलड़े पर कबूतर को बैठा दिया और दूसरे पलड़े पर उन्होंने अपने हाथ का मांस काटकर रख दिया। लेकिन कबूतर का पलड़ा बिलकुल भी नहीं हिला। जिसके बाद राजा शिबि ने अपने दूसरे हाथ का भी मांस काट कर पलड़े पर रख दिया। लेकिन फिर भी कबूतर का पलड़ा नहीं हिला पाया। तब राजा ने अपने शरीर के और हिस्सों को काटकर मांस तराजू पर रखना शुरू कर दिया । लेकिन तभी कबूतर और बाज अपने असली रूप में आ गए और राजा को अपने शरीर से मांस काटने से रोक दिया। राजा ने कबूतर और बाज को देखा तो पाया कि ये तो इन्द्र और अग्नि देवता हैं।
राजा के दयालु पन देख इन्द्र देव ने उनसे कहा- राजा हमने आपके बारे में काफी कुछ सुना था। लोग कहते हैं कि आप काफी दयालु हैं और अपने वचन से कभी भी पलटते नहीं हैं। हम दोनों आपकी परीक्षा लेने के लिए आए थे। जिस तरह से आप ने एक जीव की रक्षा करने के लिए अपने शरीर का त्याग किया उसको देखकर हम समझ गए की आपके बारे में जो कुछ भी हमनें सुना है वो सब सत्य हैं और आप कभी भी अपने वचन से पीछे नहीं हटते हैं।
राजा शिबि की ये कहानी हमें बलिदान, दायलु पन और वचन का महत्व जीवन में क्या होता है, इसके बारे में ज्ञान देती है। मनुष्य को जीवन में कभी भी किसी चीज का बलिदान करने से डरना नहीं चाहिए, हमेशा औरों के प्रति दायलु पन रखना चाहिए और किसी को दिए वचन से कभी पलटना नहीं चाहिए।