बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय की कहानी: हौंसले बुलंद होने पर हर परिस्थिति का सामना किया जा सकता है
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय की कहानी: आज हम आपको एक ऐसी सच्ची कहानी बताने जा रहे हैं, जिसको पढ़ने के बाद आपको इस बात पर यकीन हो जाएगा कि जीवन में चाहें कितनी भी खराब परिस्थितियां क्यों ना हो, अगर इंसान के हौंसले बुलंद हैं तो वो हर परिस्थिति का मुकाबला कर अपनी मंजिल तक पहुंच ही जाता है।
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय की प्रेरणादायक कहानी
महान लेखक बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय का बचपन बेहद ही गरीबी से भरा हुआ था। बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के परिवार के पास बिलकुल भी पैसे नहीं हुआ करते थे और कई बार इनके परिवार के सदस्यों को दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं हुआ करती थी। बंकिम चंद्र चटर्जी को पढ़ने का काफी शौक था, लेकिन वो जानते थे कि उनके परिवार वाले उनकी पढ़ाई का खर्च नहीं उठा सकते हैं। लेकिन स्कूल जाने के सपने को पूरा करने के लिए बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने दिन रात मेहनत की और पैसे कमाकर ये अपने स्कूल की फीस भरा करते थे।
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय पढ़ाई में तेज हुआ करते थे और उनके साथ पढ़ने वाले बच्चों को ये बात पसंद नहीं थी। एक दिन ईष्या के कारण इनकी कक्षा में पढ़ने वाले कुछ बच्चों ने प्रिंसिपल के पास जाकर इनकी शिकायत कर दी। इन बच्चों ने प्रिंसिपल से कहा कि बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय उनके पैसों को चुराया करता है और इन्हीं पैसों से अपनी स्कूल की फीस और किताबें खरीदा करता है। प्रिंसिपल ने बच्चों की बात सुनकर कहा ठीक है तुम लोग जाओ में इस मामले की जांच करवाता हूं। ये सभी बच्चों खुश हो गए क्योंकि ये जानते थे कि बंकिम चंद्र चटर्जी बेहद गरीब हैं और जब प्रिंसिपल को ये बात पता चलेगी तो प्रिंसिपल के मन में ये सवाल उठेगा कि आखिर इतना गरीब होने के बाद ये अपनी स्कूल की फीस कैसे भर पाता है।
प्रिंसिपल ने अपने स्कूल के एक व्यक्ति को ये पता लगाने को कहा कि आखिर बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय किस तरह से अपनी स्कूल की फीस भरा करता है। इस व्यक्ति ने कुछ दिनों बाद प्रिंसिपल को बताया कि यह अपने खाली समय में माली का काम करता है और इस काम से जो पैसे उसको मिलते हैं, वो उन पैसों से स्कूल की फीस भरा करता है।
अगले दिन प्रिंसिपल ने शिकायत करने वाले सभी बच्चों को बुलाया और उनके सामने बंकिम चंद्र चटर्जी से पूछा कि तुम बेहद ही गरीब हो तो तुम अपने स्कूल की फीस माफ क्यों नहीं करवाते। इस सवाल के जवाब में बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने कहा कि ‘मैं अपनी सहायता खुद कर सकता हूं, मैं खुद को लाचार क्यों मानूं, मैं मेहनत करके अपनी फीस भर सकता हूं। जिस तरह से दूसरे बच्चों के माता- पिता मेहनत करके फीस देते हैं, वैसे ही मैं भी मेहनत करके अपनी फीस देता हूं। बंकिम चंद्र चटर्जी की ये बात सुन प्रिंसिपल काफी खुश हो गया। जबकि उनकी शिकायत करने वाले बच्चों को अपनी गलती का एहसास हुआ।
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने आगे जाकर अपने जीवन में खूब नाम कमाया और ये हमारे देश के एक महान लेखक बनें। साथ में ही इन्होंने बंगाल के शिक्षा संगठन के डायरेक्टर का पद भी संभाला है।
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