बच्चों की गलत परवरिश उनके भविष्य को बिगाड़ देती है और पतन का कारण बनती है
बच्चों को पालना कोई बच्चों का खेल नहीं। जमाना चाहे कभी का ही रहा हो, लेकिन बच्चों का पालन पोषण करना हमेशा से एक कठिन काम रहा है। बच्चों के पालन पोषण मे सिर्फ उन्हें बेहतर खाना कपड़ा और पैसा देना ही नहीं आता बल्कि इसमें जरुरी है शिक्षा और संस्कार। जो लोग अपने बच्चों की परवरिश में लापरवाही बरतते हैं वो उनका भविष्य बिगाड़ देते है। इस बात का उदाहरण हमें महाभारत में ही देखने को मिल जाता है। एक तरफ कौरव और दूसरी तरफ पांडव। ये संस्कार का ही खेल था कि 5 पांडव 100 कौरवों पर भारी पड़ गए थे।
शिक्षा और संस्कार से मजबूत होती है परवरिश
जब हम बच्चे को सही शिक्षा औऱ संस्कार देते हैं तो वो सही रास्तों पर आगे बढ़ता है। सही मार्ग पर चलने में परेशानियां आएंगी, लेकिन लक्ष्य तक पहुंचने में जो सुख शांति और सुकून है वो कहीं औऱ नहीं है। शिक्षा और संस्कार से गलत मार्ग पर चलने से खुद को रोका जा सकता है औऱ मानसिक सुख और शांति पाई जा सकती है।
महाभारत में इसका उदाहरण बहुत ही साफ तरीके से दिया ग.या है। एक परिवार के दो भाग थे। एक थे कौरव और दूसरे थे पांडव। कौरवों के पिता थे धृतराष्ट्र और पांडवों की माता थीं कुंती उनके पिता पांडु स्वर्गवासी हो गए थे। कौरवों के पास समस्त सुख धन दौलत सबकुछ था। वहीं पांडवों के पास बहुत सी चीजे थी, लेकिन उन्हें जंगल जंगल भटकना पड़ा।
शिक्षा तो कौरव औऱ पांडवों ने एक ही गुरु द्रोणाचार्य से ली थी, लेकिन संस्कार दोनों को अपने अपने घरों से अलग अलग मिले थे। धृतराष्ट्र जन्मांध थे, लेकिन उन्हें सब समझ आता था। वो अपने पुत्र के मोह में अंधे हो गए थे। दुर्योधन कितनी भी गलत बात कहता किसी भी बड़े का उपहास करता तो धृतराष्ट्र उसे कभी सख्ती से नहीं रोकते। वहीं माता गांधारी चाहती तो अपने बच्चों का लालन पोषण सही ढंग से कर सकती थी, लेकिन उन्होंने अपने आंख पर पट्टी बांध ली और अपने बेटे के गलत कृत्य पर भी खामोश रहीं।
माता-पिता की भूल भुगतते हैं बच्चे
वहीं माता कुंती ने अकेले ही अपने 5 पुत्रों को पाला और उन्हें जीवन की सीख दी। वो अपनी मां का कहा नहीं टाल सकते थे। उनके अंदर अपने मां के संस्कार भरे थे।पांडव कभी नहीं चाहते थे की युद्ध हो और अर्जुन तो अपने ही सगों पर बाण चलाने से पहले कांपने लगे थे। वहीं दुर्योधन औऱ कर्ण को युद्ध की लालसा थी।
कौरवों में धन और सिंहासन का लालच भी बहुत ज्यादा था। इसी के चलते जब श्रीकृष्ण संधि प्रस्ताव लेकर हस्तिनापुर गए तो उन्होंने दुर्योधन से बस 5 गांव मांग लिए, लेकिन दुर्योधन ने कहा कि वो सुई की नोक के बराबर की जमीन भी उन्हें नहीं देगा और इस तरह से युद्ध हुआ।
अगर कौरवों को सही शिक्षा के साथ सही ज्ञान मिला होता तो युद्ध नहीं होता और इतना भीषण संघार नहीं होता। ये युद्ध और पूरा महाभारत हमें सीख देता है कि यदि हम अपने बच्चों की परवरिश सही ढंग से नहीं करते हैं तो हम उनके भविष्य को अंधकार में ढकेल देते हैं।
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