दिलचस्प

सिर्फ पद या पैसे से इज्जत नहीं मिलती, जब आप विनम्रता से बात करते हैं तो लोग सम्मान देते हैं

बहुत पुराने समय की बात है। एक राज्य  में बहुत ही दयावान राजा रहा करता था। उनकी देखरेख में प्रजा उन्नति कर रही थी। लोग उन्हें बहुत दय़ालु मानते थे। राजा भी प्रजा को अपने पुत्र समान प्रेम करते थे और उनके हर सुख दुख में उनका साथ देते थे। राजा का अपना एक पुत्र था जिसे कम उम्र में ही राजपुत्र होने का अंहकार हो गया था। उसे लगता था कि बस कुछ ही दिनों की बात है फिर ये राजगद्दी तो मेरी हो जाएगी।

राजा ने गुरु से मांगी सहायता

राजा अपने बेटे को लेकर हमेशा परेशान रहते क्योंकि उन्हें अक्सर ही अपने बेटे के अंहकार के किस्से सुनाई दे जाते थे। राजकुमार हर किसी को बेवजह तंग करता, उन्हें परेशान करता। काम करने वाले लोगों का काम बिगाड़ देता। आने जाने वाले लोगों का मजाक उड़ाता औऱ हर छोटे काम के लिए किसी को भी आदेश दे देता। राजा को ये बात पता चली तो उन्हें चिंता होने लगीं। वो सोचने लगे की राजकुमार का हाल अगर ऐसा ही रहा तो प्रजा कभी भी इसे अपना राजा स्वीकार नहीं करेगी।

राजा ने अपने गुरु से इस समस्या के बारे में बात की। गुरु ने राजा से कहा- महाराज आप राजकुमार को मेरे साथ गुरुकुल भेजिए। वैसे भी उनकी शिक्षा का समय हो गया है। हालांकि इस बात का ध्यान रहे कि जब मैं उनका गुरु बनूंगा तो  वो मेरे लिए राजकुमार नहीं बल्कि एक साधारण शिष्य की तरह होंगे और उनके साथ वैसा ही सबकुछ होगा जैसा मेरे शिष्यों का साथ होता है। महाराज तैयार हो गए उन्होंने अपने पुत्र को गुरुकुल से शिक्षा लेने का आदेश दिया।

राजकुमार को था राज्य का घमंड

राजकुमारा गुरुकुल तो आया, लेकिन उसका घमंड नहीं टूटा। वो अपने आप को राजकुमार समझता और वहां के लोगों को आदेश देता। पहले दिन ही गुरु ने उसे भिक्षा मांगकर लाने के लिए कहा। राजकुमार ने क्रोध मे कहा- इतने बड़े राजा का बेटा गली गली जाकर इन तुच्छ लोगों से भिक्षा लेगा, ऐसा नहीं हो सकता। गुरु न कहा यदि भिक्षा नहीं लाई तो खाना नहीं मिलेगा।

राजकुमार ने सोचा गुरु तो बस ऐसे ही बोल रहे हैं, ऐसा तो होगा नहीं कि उसे खाना ना मिलें। पहले दिन उसे कोई भोजन नहीं मिला। ऐसा पहली बार हुआ जब वो बिना खाना खाए सोया हो। अगले दिन बेमन से उसने भिक्षा मांगनी शुरु की, लेकिन उसकी बोली मे आग्रह की जगह आदेश था। एक दो लोगों ने थोड़ा बहुत डरकर कुछ खाने को दे दिया, लेकिन भरपूर खाना उसे नहीं मिला।

भाषा औऱ व्यवहार से कमाते हैं सम्मान

धीरे धीरे उसकी समझ में आ गया कि लोग मीठी बात बोलने वाले और प्यार से बोलने वाले की सारी मदद कर देते हैं। राजकुमार का  स्वभाव बदलने लगा वो पहले से ज्यादा लोगों से अच्छे से बात करता। गुरुकुल में भी धीरे धीरे उसने अपने हाथ से काम करना शुरु कर दिया। एक दिन गुरुजी उसे अपने साथ बगीचे में ले गए। उसे पहले खाने को एक मीठा फल दिया। उसका मुंह मीठा हो गया उसके बाद गुरुजी ने उसे नीम के पत्ते दिए खाने को और उसका मुंह कड़वा हो गया।

गुरु ने समझाया कि पुत्र जिस तरह तुम मीठे फल की चरह बने रहोंगे तबतक लोग तुम्हारी बात भी सुनेंगे और तुम्हारी मदद भी करेंगे, लेकिन जब तुम नीम जैसे बन जाओगे कोई भी तुम्हारा सम्मान नहीं करेगा। राजकुमार को बात समझ आ गई उसने सीख पूरी की और राज्य वापस आकर कार्यभार सही रुप से संभाला।

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