जो मनुष्य दूसरे व्यक्ति के दर्द को अपने दर्द से भी ज्यादा महत्व देता है वो मनुष्य नहीं देवता है
बहुत पहले के समय में एक राज्य में राजा रहा करते थे। उन्हें पत्नी और प्रजा दोनों का सुख प्राप्त था। राजा अपने राज्य का भरण पोषण करते थे और हर किसी की मदद करते थे। उनकी देख रेख में राज्य की उन्नति हो रही थी। हालांकि तमाम सुख के बाद भी सिर्फ एक ही बात थी जो राजा को दुखी करती थी वो था राजा का संतानहीन होना। किसी कारणवश राजा पिता नहीं बन पाए थे औऱ ये बात उन्हें बहुत परेशान करती थी। उन्हें ये चिंता रहती की उनके जाने के बाद राज्य का क्या होगा।
राज्य के लिए राजा को हुई चिंता
राजा ने अपनी इस परेशानी को एक बार अपने गुरु से साझा किया। उन्होंने कहा- हे गुरु मेरे समझ नहीं आ रहा कि आखिर मेरे चले जाने के बाद इस राज्य़ का राजा कौन बनेगा? मेरा कोई उत्तराधिकारी नहीं है आखिर मेरी प्रजा की रक्षा कौन करेगा? गुरु ने कहा कि – महाराज आप किसी को गोद ले लिजिए वही आपके राज्य का अगला राजा बनेगा।
राजा को गुरु की बात समझ आ गई। उन्होंने योग्य युवक की तलाश शुरु कर दी जो राज्य की देख रेख कर सके। राजा चाहते तो उन्हें सुंदर हष्ट पुष्ट बलशाली युवक मिल जाता , लेकिन वो ऐसे युवक को राजा बनाना चाहते थे जो योग्य हो और उसके अंदर सत्ता का लालच ना आए। राजा की खोज बढ़ने लगी, लेकिन उन्हे कही भी सही युवक नहीं मिला।
एक दिन राजा अपने महल के कोनों से बाहर की ओर देख रहे थे। उन्होंने देखा कि युवक है जिसके कपड़े फटे पड़े हैं और बाल बिखरे हैं। वो एक भिखारी की तरह दिख रहा था। उसके पास खाना रखा था जैसे ही वो खाने बैठा एक बुढ़ा खाना मांगने आ गया। युवक ने फौरन उसे खाना दे दिया। फिर उसने अपने पास बची हुई एक मिठाई निकाली तो एक कुत्ता उसके सामने आकर खड़ा हो गया। यवक ने मिठाई भी कुत्ते को दे दी।
राजा ऊपर से ये नजारा देख रहे थे। उन्होंने फौरन युवक को अपने राज महल में बुलाय़ा। युवक ने पूछा- महाराज क्या मुझसे कोई भूल हो गई हो।राजा ने कहा- आज से मैं तुम्हें अपना उत्तराधिकारी चुनता हूं, तुम राजगद्दी पर बैठो। उसकी बात सुन कर युवक को पहले तो कुछ समझ नहीं आया और फिर वो राजा के सामने गद्दी के नीचे बैठ गया।
किसे चुना गया राजा?
राजा ने कहा- गद्दी के नीचे नहीं गद्दी के ऊपर बैठो मैं तुम्हें अपना पूरा राज्य सौंपना चाहता हूं। युवक ने कहा-महाराज ये आपका बड़प्पन है, लेकिन मैं आपका राज्य पाठ नहीं ले सकता, य़े लेकर मैं क्या करुंगा, त्याग ही असली धर्म है यही मोक्ष का असली मार्ग है।
राजा ने कहा तुम धन्य हो और मेरे पुत्र होने योग्य हो। मैं तुम्हें राज्य की गद्दी प्रजा की सेवा के लिए सौंप रहा हूं, जिस तरह से तुमने एक बूढ़े और एक जानवर को अपने दर से भूखा नहीं जाने दिया उस तरह कभी किसी व्यक्ति को इस दरबार से भी निऱाश नहीं जाने देना। मैं तुम्हें राज्य राज करने के लिए प्रजा की सेवा के लिए सौपं रहा हूं और फिर युवक ने इस भेंट को स्वीकार कर लिया।
जो व्यक्ति अपने सुख से ज्यादा दूसरों के दुख का ध्यान रखता है उसे महत्व देता है वो ही श्रेष्ठ है। ऐसे लोग हर जगह सम्मानित हैं। भगवान उनकी झोली खुशियों से भरे रहते हैं।
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