व्रत आदि में खाया जाने वाला मखाना कैसे बनता है, सच जानकर सिर पकड़ लेंगे आप
मखाना जिसे हम सभी आमतौर पर सूखे मेवों में शामिल करते हैं वैसे आपको बता दें की ये एक हल्का-फुल्का स्नैक्स भी है जिसे कोई भी व्यक्ति अगर नियमित रूप से और सही तरीके से अपनी डाइट में शामिल करता है तो इससे उसे एक दो नहीं बल्कि ढेरो फायदे मिल जाते हैं। आपको यह भी बता दें की मखाना एक लो कैलोरी हेल्दी फूड है जो भारत के लगभग हर हिस्से में यह खाया जाता है। आपने देखा होगा की ज़्यादातर भारतीय लोग इसका इस्तेमाल व्रत और पुजा के दौरान करते हैं लेकिन अधिकांश लोगों को शायद इस बारे में मालूम नहीं होगा कि अनगिनत सेहत लाभ देने वाला ये मखाना आखिर बनता कैसे है। खैर अगर आप भी नहीं जानते इसके बनाने के बारे में तो चलिये आजा हम आपको बताते हैं की व्रत आदि में इस्तेमाल होने वाला ये मखाना आखिर बनता कैसे है।
मखाना जो कि पोषक तत्वों से भरपूर होता है, बता दें की यह एक जलीय घास है जिसे कुरूपा अखरोट भी कहा जाता है। आपको शायद इस बारे में जानकारी ना हो मगर बता दे की साधारण से दिखने वाले इस मखाने में कई तरह के प्रोटीन पाए जाते हैं जैसे कि आसानी से पचनेवाला प्रोटीन, कार्बोहाईड्रेट, नमी, वसा, खनिज लवण, फॉस्फोरस आदि मौजूद होता है और तो और इसमें कई तरह के औषधीय गुण भी मौजूद होता है। भारत में यह नवरात्रों और अन्य अवसरों के दौरान तैयार किए जाने वाला एक लोकप्रिय ‘उपवास’ पकवान है। जिसे हम सूखे मेवा के रूप में शामिल करते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि आपको ये भी पता होना चाहिए की मखाना खाने से चेहरे में झुर्रियां नहीं पड़ती हैं और उम्र कम दिखती हैं।
खैर आपकी जानकारी के लिए बताते चलें की बिहार के मिथिलांचल में मखाने की खेती होती है और आपको यह जानकर हैरानी भी हो सकती है यहाँ पर होने वाली खेती देश के कुल मखाना खेती का लगभग 80 फीसदी भाग है। जी हाँ, यानी की अकेले बिहार में इसका 80 प्रतिशत उत्पादन किया जाता है। बता दें की मखाने की खेती उथले पानी वाले तालाबों में की जाती है। दिसंबर से जनवरी के बीच मखाना के बीजों की बोआई तालाबों में होती है जिसके बाद अप्रैल के महीने में इसके पौधों में फूल लगने शुरू हो जाते हैं। देखते ही देखते जून-जुलाई के महीने में 24 से 48 घंटे तक पानी की सतह पर तैरते हैं और फिर नीचे जा बैठते हैं। यहन पर काफी ध्यान रखना पड़ता है क्योंकि इसके फल कांटेदार होते है और इन काँटों को पूरी तरह से गलने में करीब 1 से 2 महीने का समय लग जाता है।
इसके बाद सितंबर अक्टूबर आते आते इसकी खेती करने वाले किसान पानी की निचली सतह से उन्हें इकट्ठा करते हैं, फिर उन की प्रोसेसिंग का काम शुरू किया जाता है। आपको यह सुनकर थोड़ा अच्छा लगेगा की इसे उगाने के लिए किसी भी तरह के खाद या फिर कीटनाशक का इस्तेमाल नहीं होता और इसीलिए इसे आर्गेनिक भोजन भी कहा जाता है। बता दे की मखाना की खेती भारत के अलावा चीन, रूस, जापान और कोरिया में भी की जाती है। मतलब अब तक तो आप समझ जाइए की इतना हल्का फुल्का सा दिखने वाला मखाना उगाने और इसे सही सलामत हम तक पहुँचने के लिए कितने सारे प्रक्रियों से और कितने लंबे वक़्त तक का समय लेने के बाद हम तक पहुंचता है।