क्या है हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण चिन्ह स्वस्तिक का मतलब और क्या हैं इसकी धार्मिक मान्यताएँ
हमारे हिन्दू धर्म में बहुत सारी प्राचीन मान्यतायेँ ऐसी है जो आज भी जीवित हैं और बहुत ही श्रद्धा के साथ इनका निर्वाहन किया जाता है। कुछ इसी तरह से स्वास्तिक का भी महत्व है जो अत्यन्त प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में मंगल का यानी की शुभता का प्रतीक माना जाता रहा है और यही वजह है की किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले स्वास्तिक चिह्न अंकित करके उसका पूजन किया जाता है। बता दें की इसे सातिया या साथिया भी बोला जाता है, यह हमारे महान ऋषि मुनियों की देन है जो ईश्वर की शक्ति अपने अन्दर समाये हुए है। कहा जाता है की किसी भी शुभ कार्य से पहले रोली चन्दन से स्वस्तिक चिन्ह बनाकर ही पूजा अर्चना शुरू की जाती है। गणेश पुराण में कहा गया है कि स्वस्तिक चिह्न भगवान गणेश का स्वरूप है, जिसमें सभी विघ्न-बाधाएं और अमंगल दूर करने की शक्ति है। इसके अलावा आचार्य यास्क के अनुसार स्वस्तिक को अविनाशी ब्रह्म की संज्ञा दी गई है और इसे धन की देवी लक्ष्मी यानी श्री का प्रतीक भी माना गया है। अलग अलग जगहों पर इसकी अलग अलग मान्यताएँ है मगर हर जगह इसका प्रयोग शुभ के लिए ही बताया गया है।
सामान्यतय: स्वस्तिक शब्द को “सु” एवं “अस्ति” का मिश्रण योग माना जाता है, यहाँ पर “सु” का अर्थ है- शुभ और “अस्ति” का अर्थ है, होना। इसके अनुसार यदि संस्कृत व्याकरण में “सु” एवं “अस्ति” को जब संयुक्त किया जाता है तो जो नया शब्द बनता है वो है “स्वस्ति” अर्थात “शुभ हो”, “कल्याण हो” और इस प्रकार स्वस्तिक शब्द का अर्थ हुआ अच्छा या मंगल करने वाला। स्वस्तिक का नाम आप तकरीबन हर जगह पर देखे और सुने भी होंगे और इसी सिलसिले में आज हम आपको बताने जा रहे हैं स्वस्तिक से जुड़ी कुछ धर्मिका मान्यताएं और इसके फ़ायदों के बारे में।
स्वस्तिक का महत्व और इसका लाभ
1. ऐसा माना जाता है की किसी भी धार्मिक कार्यक्रम में या फिर किसी पूजा-अर्चना में हम दीवार, थाली या ज़मीन पर स्वस्तिक का निशान बनाकर स्वस्ति वाचन करना बहुत ही शुभ होता है। माना जाता है की ऐसा करना धनात्मक ऊर्जा का भी प्रतीक है, इसे बनाने से हमारे आसपास से नकारात्मक ऊर्जा कोसो दूर रहती है।
2. इसके अलावा आपको यह भी बता दें की आमतौर पर देखा गया है की स्वस्तिक के चिन्ह का इस्तेमाल हर उस जगह पर होता है जहां लोगों की इच्छा रहती है की वो धन की देवी माँ लक्ष्मी को प्रसन्न कर सकें और अगर उनके घर में पैसों की तंगी रहती है तो आप सिंदूर या कुमकुम से स्वास्तिक चिन्ह को घर के बाहर मुख्य द्वार पर बनाये, ऐसा करने से माँ लक्ष्मी जो आपके घर की तरफ आकर्षित होती हैं।
3. स्वास्तिक मंत्र या स्वस्ति मन्त्र शुभ और शांति के लिए प्रयुक्त होता है। ऐसा माना जाता है कि इससे हृदय और मन मिल जाते हैं, स्वास्तिक मन्त्र का पाठ करने की क्रिया ‘स्वस्तिवाचन’ कहलाती है।
“ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः।
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः।
स्वस्ति नो ब्रिहस्पतिर्दधातु ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥”
4. सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि स्वस्तिक का वास्तु में काफी ज्यादा महत्व बताया जाता है तथा इसके अलावा आपको यह भी बता दें की वासत्शास्त्र के अनुसार पूजा स्थल, तिज़ोरी, अलमारी में भी स्वस्तिक स्थापित करना चाहिए इससे धनलाभ होता है।
5. आपको यह भी बताते चलें की हमारे हिन्दू धर्म में हर तरह के व्रत, पर्व, त्योहार, पूजा एवं हर मांगलिक अवसर पर स्वस्तिक को कुमकुम से अंकित करते है एवं भावपूर्वक ईश्वर से प्रार्थना की जाती है कि- “हे प्रभु! मेरा कार्य निर्विघ्न सफल हो और हमारे घर में जो अन्न, वस्त्र, वैभव आदि आयें वह पवित्र बनें।”