अद्भुत शक्तियों वाला है देवी माँ का ये मंदिर, खीरा चढ़ाने भर से श्रद्धालुओं की भर जाती है गोद
देवी माँ की अराधना का पर्व नवरात्रि खत्म होने को है। ऐसे में देश भर के श्रद्धालु देवी माँ की भक्ति में लीन हैं। देश के लगभग हर मंदिर में भक्तों का तांता लग रहा है। लेकिन, आज हम आपको देश के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे है जो अपने आप में काफी विशेष है। इस अद्भुत मंदिर की खासियत ये है की ये साल में सिर्फ 12 घंटे के लिए ही खुलता है। लेकिन, इस मंदिर की एक सबसे बड़ी विशेषता ये है कि इस मंदिर में देवी माँ के समक्ष मात्र खीरा चढ़ाने भर से सूनी गोद भर जाती है। जी हां, यह मंदिर अपनी इसी खासियत के कारण दुनिया भर में विख्यात है।
अद्भुत है माता लिंगेश्वरी का ये मंदिर
यह मंदिर छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिले में स्थित है। यह मंदिर माता लिंगेश्वरी का है जो देशभर में मशहूर है। देवी माता का यह अनोखा मंदिर साल में सिर्फ एक ही बार दर्शन के लिए खोला जाता है। इस मंदिर के अन्य नाम आलोर और लिंगाई माता मंदिर भी है। वैसे तो यह भोलेनाथ का मंदिर है, लेकिन यहाँ शिवलिंग की पूजा स्त्री रूप में की जाती है।
साल में सिर्फ के बार खुलने की वजह से यहां दर्शन करने वालों की संख्या काफी ज्यादा होती है। इस मंदिर में आने वाले दर्शनार्थी रेंगकर दर्शन करने आते हैं। लिंगेश्वरी माता का यह मंदिर छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाके में है। इस मंदिर को लेकर ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त संतान प्राप्ति के लिए यहाँ आता है उसकी सूनी गोद सालभर के भीतर ही भर जाती है। हर साल भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष की नवमी के बाद जो बुधवार आता है उसी दिन इस मंदिर के द्वार खोले जाते हैं।
खीरा चढ़ाने भर से पूरी होती है सभी मुरादें
इस विशेष मंदिर को लेकर ऐसी मान्यता है कि अगर किसी स्त्री को संतान न हो रही हो तो वह अगर इस मंदिर में खीरा चढ़ाती है तो उसकी सूनी गोद साल भर के अंदर की भर जाती है। इसलिए मंदिर के बाहर बड़ी मात्रा में खीरे की दुकाने देखने को मिलती हैं। यहां खीरा प्रसाद के रूप में दिया जाता है। अगर कोई विवाहित जोड़ा संतान प्राप्ति चाहता है तो वह यहां खीरा चढ़ाता है। अगर आप कभी इस मंदिर जाये तो आपको आसपास के क्षेत्र में चारो ओर खीरे की ही महक आय़ेगी।
अधिक ऊंचाई होने के कारण यहां दर्शन करने के लिए पहुंचना थोड़ा मुश्किल है। इस मंदिर को लेकर एक मान्यता ये भी है कि साल भर बाद मंदिर के दरवाजे खुलने पर कुछ चिन्ह उभरे हुए दिखाई देते हैं। इन चिन्हों को देखकर पुजारी अगले साल की भविष्यवाणी करते हैं। जैसे अगर हाथी के पांव के निशान मिले तो यह उन्नति का प्रतीक है। वहीं अगर बिल्ली का पंजा मिले तो यह भय और विनाश का प्रतीक है। यह मंदिर छत्तीसगढ़ के रायपुर रेलवे स्टेशन से 242 किलोमीटर दूर है। यहाँ पहुंचने के लिए आपको रायपुर से दिलमिली रेलवे स्टेशन आना होगा फिर यहां से 67 किलोमीटर की दूरी तय कर कोंडागांव पहुंचना होगा। इसके आगे आपको मंदिर तक जाने के लिए कई प्रकार के साधन मिल जाएंगे।