जानिए भगवान गणेश को क्यों धारण करना पड़ा था स्त्री रुप, क्या है इसके पीछे की कहानी
महिलाओं को हमारे समाज में कही ना कहीं किसी स्तर पर कमजोर ही माना जाता है लेकिन हमारे भगवान ने कभी भी स्त्री रुप को कमजोर नहीं माना। एक तरफ जहां दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी, काली , पार्वती माता हैं तो वहीं कई बार ऐसा भी हुआ जब भगवान को भी स्त्री रुप में आना पड़ा।सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु, रचयिता ब्रह्मा, हनुमान, इंद्र सभी ना कभी ना कभी स्त्री रुप धारण किया और समाज का कल्य़ाण किया। उनके स्त्री बनने के पीछे की वजह जो भी रही हो, लेकिन उद्देश्य एक ही था कि कई बार समस्या के समाधान के लिए स्त्री की ही आवश्यकता होती है। ऐसी ही एक औऱ घटना हुई थी जब भगवान गणेश को भी स्त्री रुप धारण करना पड़ा था।
गणेश भगवान माता पार्वती और भगवान शिव के पुत्र हैं। वो बहुत पुजनीय हैं और कहा जाता है कि कोई भी शुभ काम या पूजा शुरु होगी तो भगवान गणेश का नाम लेकर ही होगी। पुराणों में गणेशजी के स्त्री रुप का वर्णन किया गया है। गणेश जी पहले विनायक रुप में थे और उनके स्त्री रुप का नाम विनायकी जाना जाता है। वन दुर्गा उपनिषद में भी गणेश जी के स्त्री रुप का वर्णन मिलता है।
क्यों भगवान गणेश ने किया था स्त्री रुप धारण
एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार अंधक नाम का एक दैत्य था। वो बहुत ही क्रूर था। एक दिन उसने माता पार्वती के साथ जबरदस्ती उनकी पत्नी बनाने की कोशिश की। ऐसे में मां पार्वती ने अपनी सहायता के पति शिव को बुलाया। अपनी पत्नी को दैत्य से बचाने के लिए भगवान शिव ने अपना त्रिशुल उठा लिया और उसके आर पार कर लिया।
हालांकि अंधक की मृत्यु उस तलवार से नहीं हुई बल्कि त्रिशूल के प्रहार से उसके रक्त की एक एक बूंद से राक्षसी अंधका का निर्माण होने लगा। माता पार्वती समझ गई कि हर एक दैवीय शक्ति के भीतर दो तत्व मौजूद होते हैं। पहला पुरुष तत्व जो उसे मानसिक रुप से सक्षम बनाचा है और दूसरा स्त्री तत्व होता है जो उसे शक्ति देता है।
माता पार्वती समझी गई की शिव के प्रहार से पुरुष तत्व का खात्मा तो हो गया, लेकिन स्त्री तत्व को खत्म करने के लिए स्त्रियों की ही जरुरत होगी। उन्होंने उन सभी देवियों को आमंत्रित किया जो शक्ति का रुप होता ही। माता पार्वती के बुलाने से हर दैवीय शक्ति अपने स्त्री रुप में प्रकटच हो गई। अंधक दैत्य के खुन गिरने से पहले ही उसे अपने अंदर समा लिया जिससे राक्षसी अंधका का आकार घटने लगा।
हालांकि अंधक के गिरते हुए रक्त को खत्म करना बहुत मुश्कि हो रहा था उसी वक्त भगवान गणेश स्वयं स्त्री रुप में आ गए। विनायकी रुप में आए गणेश ने अधंक का सारा रक्त पी लिया।य इस तरह से गणेश जी समेत सभी दैवीय शक्तियों के स्त्री रुप से अंधका का खात्मा हो गया। बता दें कि गणेश जी के स्त्री रुप की पहचान 16वीं सदी में हुआ थी। विनायकी का शरीर माता पार्वती का था, लेकिन मुख हाथी के समान था।
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