देवी माँ के ये मंदिरों हैं बेहद ही विशेष, कोई 150 साल तो कोई 700 साल से भी है पुराना
आज से पूरे देश भर में चैत्र नवरात्र का आरंभ हो चुका है, बता दें की इस चैत्र नवरात्र के साथ ही हिन्दू नव वर्ष के प्रथम दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है और इसका समापन नवरात्र के नौवें दिन यानी की रामनवमी को किया जाता है। आपकी जानकारी के लिए यह भी बताते चलें की इस बार चैत्र शुक्ल पक्ष में दशमी तिथि की हानि से यह पखवारा 14 दिनों का ही होगा और इसकी वजह से कुछ महत्वपूर्ण तिथियां आगे-पीछे हो रही हैं जिससे महाअष्टमी व नवमी का व्रत और पूजन 13 अप्रैल को किया जाएगा। खैर आपको बता दें की नवरात्र का ये पर्व हिन्दू समझ के लिए काफी ज्यादा महत्वपूर्ण होता है और इस दौरान सभी नौ देवियों में अष्टम महागौरी व नवम सिद्धिदात्री का दर्शन भी किया जाएगा। ऐसे में आज हम आपको लखनऊ के कुछ बेहद ही प्राचीन और प्रसिद्ध देवियों के मंदिरों से रूबरू करा रहा है जिनमे से कुछ 150 वर्ष पुराने हैं तो कुछ 700 वर्ष से भी ज्यादा प्राचीन हैं।
चंद्रिका देवी मंदिर
सिद्धपीठ चन्द्रिका देवी धाम की स्थापना आज से सैकड़ों वर्ष पहले हुई थी और इस मंदिर का उल्लेख स्कंद पुराण में भी मिलता है। बता दें की उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में गोमती नदी के तट पर स्थित पौराणिक तीर्थ मां चंद्रिका देवी का दरबार अमावस्या से लेकर नवरात्र में मां भगवती के जयकारों से गूँजता रहता है। ऐसी मान्यता है की महराज दक्ष के श्रप से भगवान चंद्रमा को भी सुधन्वा कुंड में स्नान करने से क्षय रोग से मुक्ति मिली थी। सिर्फ इतना ही नहीं इस मंदिर के बारे में बताया गया है की यहाँ पर महाभारत के महाबली बर्बरीक का भी मां चन्द्रिका देवी के इस पावन धाम में रह कर मां की आराधना करते थे।
कालीबाड़ी मंदिर
यूपी की राजधानी लखनऊ स्थित कैसरबाग के घसियारीमंडी क्षेत्र में माँ का एक दरबार ऐसा है जहां माँ पांच जीवों के मुंड पर विराजी हुई है। बता दें की करीब 155 साल पुराना कालीबाड़ी मंदिर के नाम से जाना जाता है जो 1863 से सिद्ध पीठ के रूप में विराजमान है। ऐसा बताया जाता है की मधुसूदन बनर्जी ने सपने में मिले मां भगवती के आदेश का पालन करते हुए स्वयं अपने हाथों से मिट्टी की प्रतिमा तैयार कर इस स्थान पर स्थापित की थी। शारदीय नवरात्र में इस मंदिर में महिषासुर मर्दिनी का विशेष पाठ होता है।
छोटी काली जी मंदिर
एक बहुत ही एक पुराने कुएं से निकली गयी माँ काली की प्रतिमा को लखनऊ के चौक में जहां पर चूड़ी वाली गली की लंबी ढलान समाप्त होती है ठीक उसके ठीक आखिरी छोर पर जैन मंदिर के सामने वाली सड़क पर इन्हे स्थापित किया गया है और यह मंदिर छोटी काली जी के प्राचीन मंदिर के नाम से प्रचलित है। जैसा की यहाँ के सभी भक्त बताते हैं ये मंदिर करीब 400 वर्षों से भी ज्यादा पुराना है। बताते चलें की इस मंदिर में काली माँ के अलावा प्रभु श्री राम दरबार, राधा-कृष्ण, शिवाली, गणोश जी समेत तमाम इष्टदेव भी विराजमान हैं।
बड़ी काली जी मंदिर
इसके अलावा बात करें बड़ी काली मंदिर के बारे में तो आपको बता दें की इस मंदिर का इतिहास आजा से तकरीबन 700 साल पुराना है। ऐसी मान्यता है की शंकराचार्य ने माता की मूर्ति की स्थापना की थी और जिस काली माँ को हम सभी पूजते हैं असल में वह लक्ष्मी-विष्णु की मूर्ति है। इस प्रतिमा की बारें में एक कथा है की जब मुगलों ने इस मंदिर पर धावा बोला था तो उस दौरान यहां के पंडितों ने इस विलक्षण मूर्ति को बचाने के लिए उसे एक कुएं में फेंक दिया था। यह एक बेशकीमती अष्टधातु की मूर्ति है और नवरात्र में इस मंदिर में श्रद्धालुओं की खूब सारी भीड़ उमड़ती है।
सजेगा मां का दरबार
लखनऊ के ही चौक में स्थित संतोषी माता का दरबार नवरात्र के दौरान कई तरह से देशी-विदेशी फूलों से सज जाता है। आपको बता दें की संदोहन देवी मंदिर, संकटा देवी मंदिर, त्रिवेणी नगर योगी नगर दुर्गा मंदिर, मदेयगंज दुर्गा मंदिर, चिनहट के मां जानकी मंदिर, कैसरबाग दुर्गा मंदिर, आदि तमाम मंदिर जो की काफी ज्यादा प्रचलित और प्राचीन हैं वे सभी इस दौरान भक्तों के आगमन के दौरान सजा दिये जाता हैं।
दुर्गा मंदिर में ज्योति की स्थापना
इसके अलावा आपको बता दें की शास्त्रीनगर स्थित श्री दुर्गा मंदिर में सप्ताह के प्रत्येक दिन अलग-अलग रंगों के फूलों और वस्त्रों से माता रानी का दरबार सजाया जाता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें की इस मंदिर में माँ ज्वाला की ज्योति की स्थापना के साथ ही माँ का गुणगान शुरू हो जाता है और नवरात्र के सभी नौ दिनों तक हर दिन ज्योति के दर्शन किए जा सकेंगे।