जानिए क्यों मनाया है जाता है गुड़ी पड़वा का त्यौहार, कैसे करते हैं इस पर्व की तैयारी
भारत में कई तरह के त्यौहार अलग अलग महत्व के लिए मनाए जाते हैं। होली के बाद अब 6 अप्रैल को गुड़ी पड़वा का त्यौहार मनाया जाएगा। चैत्र मास की शुक्ल प्रतिप्रदा गुड़ी पड़वा या वर्ष प्रतिपदा या युगादि के नाम से जानी जाती है। ऐसा माना जाता है कि हिंदू नववर्ष की शुरुआत इसी दिन से होती है। गुड़ी का मतलब होता है विजय पताका। गुड़ी पड़वा को संस्कृत में चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के नाम से भी जाना जाता है। ये चैत्र नवरात्र महीने के पहले दिन मनाते हैं। गुड़ी पड़वा से अलग अलग प्रकार की परंपरा महत्व और रीति रिवाज जुड़े हैं।
क्यों मनाते हैं गुड़ी पड़वा
दरअसल गुड़ी पड़वा मनाने के पीछे की कहानी रामायण की कहानी जुड़ी हुई है। रामायण काल में दक्षिण भारत में बालि का शासन काल था। उस वक्त रावण माता सीता का हरण करते लंका ले गया था। रावण से युद्ध करने के लिए श्रीराम को वानरों की सेना की जरुरत पड़ी थी। दक्षिण भारत आने पर भगवान श्रीराम ने सुग्रीव से मुलाकात की तो उन्होंने सबसे पहले अपने परेशानी श्रीराम को बताई थी। तब प्रभु श्रीराम ने बालि की कैद से सुग्रीव की पत्नी को छूड़ाने के लिए और उसका कुशासन खत्म करने के लिए बालि का वध किया था। जिस दिन लोगों को बालि के कुशासन से मुक्ति मिली थी वो चैत्र प्रतिप्रदा का दिन था और इस दिन लोगों ने विजय पताका लहरायी थी। इसी के बाद से गुड़ी पड़वा का त्यौहार मनाया जाने लगा।
साथ ही इससे जुड़ी एक औऱ महत्वपूर्ण बात ये कही जाती है कि इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था इसलिए गुड़ी पड़वा को नवसंवत्सर भी कहा गया है। साथ ही महान गणितज्ञ भास्कराचार्य नें इसी तिथि पर सूर्योंदय से सूर्यास्त तक दिन महीने और वर्ष की गणना करते हुए पंचाग रचा था। इस उत्सव को पूरे भारत वर्ष में मनाया जाता है लेकिन महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों में इस पर्व का 9 दिनों तक पूजा विधि विधान के साथ मनाया जाता है।
स्वास्थ का महत्व
सिर्फ धार्मिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि स्वास्थ के लिहाज से भी गुड़ी पड़वा का बहुत महत्व है। मान्यता के अनसार इस दिन बनाए जाने वाले सभी भोजन स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छे होते हैं। आंध्र प्रदेश में पच्चड़ी, महाराष्ट्र में पूरन पोली जैसे भोजन बनाए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि जो भी व्यक्ति खाली पेट पच्चड़ी के सेवन करता है वो चर्म रोग से दूर होता है साथ ही उसकी निरोगी काया बनी रहती है। वहीं अगर पूरन पोली की बात करे तो इसे बनाने में गुड़, नीम के फूल, इमली और आम का इस्तेमाल होता है। ये सभी हमारे स्वास्थ के लिए बहुत ही फायदेमंद होती हैं। इस दिन सुबह नीम की पत्तियां खाना भी लाभदायक माना जाता है।
कैसे मनाते हैं गुड़ी पड़वा का त्यौहार
गुड़ी पड़वा के दिन साफ सफाई का विशेष महत्व होता है। इस दिन लोग घर की साफ सफाई करने के बाद रंगोली और तोरण से घर को सजाते हैं। अपने घर के मुख्य द्वार पर गुड़ी यानी झंडा भी लगाते हैं। साथ ही घर में किसी बर्तन पर स्वास्तिक चिन्ह बनाकर उसे रेशम के कपड़े में लपेट कर रखा जाता है। सुबह सूर्यदेव की पूजा के बाद सुंदरकांड, रामरक्षा स्त्रोत और देवी भगवती के मंत्रों का जाप किया जाता है। गुड़ी पड़वा पर खीर और श्रीखंड जैसे स्वादिष्ट मिष्ठान भी खाना अच्छा माना जाता है।
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