दिलचस्प

कभी भी दान करने पर घमंड ना करें और ना ही किसी और की दान की वस्तु को छोटा समझें

एक पुरानी कथा के अनुसार एक जंगल में ढेर सारे जानवर थे जो मनुष्यों के किए गए कामों के लेकर अक्सर चर्चा किया करते थे। इसमें खरगोश, बंदर, सियार और ऊदबिलाव मे सबसे ज्यादा दोस्ती थी औऱ चारों एक दूसर से सारी बातें करते थे। एक बार सभी बैठकर आपस में चर्चा कर रहे थे कि मनुष्य दान बहुत करते हैं और दान करने के बाद प्रसन्न रहते हैं। खरगोश ने कहा- सही भी है हमें किसी की मदद के लिए उसे कुछ ना कुछ देना चाहिए, दान करना अच्छा है। ऐसे में चारों ने तय किया कि वो भी अपने सामर्थ्य से जो बन पड़ेगा वो दान में दे देंगे।

चारों दोस्तों ने दान करने का सोचा

अगले दिन सभी दान करने के लिए कुछ ना कुछ लाने की तैयारी मे जुट गए। बंदर ने सोचा मेरे पास रखा हुआ तो कुछ है नहीं, लेकिन जो मैं आसानी से दान कर सकता हूं वो हैं पेड़ के फल। फल खाने से किसी की भी भूख प्यास शांत हो जाएगी। बंदर ने पेड़ से ढेर सारे फल तोड़ लिए। सियार को समझ नहीं आ रहा था कि वो ऐसा क्या लेकर जाए तो लोगों के काम आ जाए। ऐसे में उसने दही की हांडी चुरा ली। ऊदबिलाव भी इसी उलझन में था की वो क्या ले जाएगा उसने नदी में से मछलियां पक़ड़ ली। अब खरगोश के पास सिर्फ घास पत्ते थे। उसकी समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या दान करें क्योंकि घास पत्ते से तो किसी का भला नहीं होना है।

चारों ने फैसला किया की वो एक जगह इक्टठा होकर दान करेंगे। देवराज इंद्र को जब इनके त्याग का पता चला तो उन्होंने सोचा क्यों ना इनकी परीक्षा ली जाए। देवराज इंद्र ने ऋषि रुप धारण किया और जंगल पहुंचे जहां पर ये चारों कुछ ना कुछ दान करने के लिए लाए थे। सभी अपना अपना सामान लेकर ऋषि के पास पहुंचे। बंदर ने फल दान किए, सियार ने दही की हांडी औऱ ऊदबिलाव ने मछली दान कर दी। अब सब खरगोश की ओर देख रहे थे जिसके पास कुछ भी नहीं था।

इंद्रदेव ने ली परीक्षा

जब खरगोश की बारी आई तो सभी को हंसी आ गई। उसके दोस्तों ने सोचा कि ये तो कुछ लेकर ही नहीं आया है और दान करने की बात कर रहा था। अब क्या दान करेगा खरगोश ऋषि के पास गया और कहा- ऋषि मेरे पास दान लायक कोई वस्तु नहीं है इसलिए मैं स्वयं को दान करता हूं। ऐसा कहकर उसने पहले खुद को साफ किया जिससे उसके शरीर का कोई जीव उसके साथ ना मरे और उसके बाद अग्नि मे कुद गया।

खरगोश अग्नि में कूदा जरुर, लेकिन जला या मरा नहीं । ये इंद्रदेव की माया अग्नि थी और वो इन सभी की परीक्षा ले रहे थे। उन्होंने कहा कि जो लोग मेरे लिए कुछ लाए वो इस बात का घमंड कर रहे थे, लेकिन जो कुछ नहीं लाया उसनें खुद को ही मुझे सौंप दिया। दान से बड़ा कोई धर्म नहीं और दान देने पर कभी घमंड नहीं करना चाहिए। सब कुछ ईंश्वर का दिया है और किसी चीज को दान करने में घमंड नहीं करना चाहिए।

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