जानिए क्या था जम्मू-कशमीर में प्रधानमंत्री औऱ राष्ट्रपति का इतिहास, एक बयान ने क्यों बरपा दिया हंगामा
चुनावी माहौल हो तो नेताओं के बयान और तीखे हो जाते हैं। कुछ ऐसा ही हुआ है अमर अबदुल्ला के बयान से जिनकी कुछ बातों ने जबरदस्त हंगामा मचा दिया है। उमर ने एक चुनावी रैल में कहा दिया की वो दिन भी जल्द आएंगे जम्मू कश्मीर का अपना प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति होगा। जम्मू-कश्मीर देश का एक ऐसा हिस्सा जो है हमेशा से विवादों में घिरा रहा है। पीएम मोदी ने भी इस मुद्दे पर कांग्रेस पर निशाना साधा है जो नेशनल कांफ्रेंस के साथ मिलकर चुनाव लड़रही है। हालांकि अब इस मुद्दे ने एक बार फिर जम्मू-कश्मीर के विवाद को फिर से खड़ा कर दिया है।
अमर अब्दुल्ला के बयान पर मचा हंगामा
दरअसल जम्मू कश्मीर के पूर्व सीएम और नेशनल कांन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष अमर अबदुल्ला ने लोकसभा चुनाव के लिए सभा करते हुए बांदीपोरा में जनसभा को संबोधित किया। अमर अब्दुल्ला ने कहा कि बाकी रियासतें बिना शर्त के देश में मिलें पर हमने कहा कि हमारी अपनी पहचान होगी, अपना संविधान होगा। हमने उस वक्त अपने सदर ए रियासत और वजीर ए आज भी रखा था, इंशा अल्लाह उसको भी हम वापस लाएंगे। अब आपको ये जानना जरुरी है कि वो कौन सा दौर था जब जम्मू कश्मीर के पीएम और राष्ट्रपति हुआ करते थे।
1589 का समय था और उस वक्त जम्मू-कश्मीर में मुगलों का राज हुआ करता था। ये अकबर का शासन काल था। मुंगल साम्राज्य के पतन के बाद जम्मू-कश्मीर पर पठानों का कब्जा हो गया। 1814 में पंजाब के शासक महाराजा रणजीत सिंह ने पठानों को हराकर जीत हासिल की और फिर वहां सिख साम्राज्य आया। 1846 में अंग्रेजों ने सिखों को हरा दिया और इसके बाद लाहौर संधि हुई। अंग्रेजों ने महाराजा गुलाब सिंह को जम्मू कश्मीर की गद्दी सौंप दी और वो कश्मीर के स्वतंत्र शासक बने।
क्या रहा है पीएम का इतिहास
इसके बाद महाराजा गुलाब सिंह के पौत्र महाराजा हरि सिंह 1925 में जम्मू-कश्मीर की गददी पर बैठे और 1947 तक वहां उनका शासन रहा। उस वक्त भारत आजाद हो रहा था साथ ही पाकिस्तान के साथ उसका बंटवारा हो रहा था। उसी दौर में पाकिस्तानी कबायली समूह ने कश्मीर पर आक्रमण किया जिसके बाद जम्मू- कश्मीर का भारत में विलय किया गया।
भारत में विलय होने के बाद भी 1947 से मार्च 1948 तक इंडियन नेशनल कांग्रेस के मेहर चंद महाजन जम्मू-कश्मीर के पीएम बने रहे। जम्मू-कश्मरी में पहली बार अगस्त-सितंबर 1951 मे चुनाव हुए और नेशनल कांन्फ्रेंस ने शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में सभी 75 सीटों पर निर्विरोध जीत भी हासिल की। उस वक्त शेख अबदुल्ला 31 अक्टूबर 1951 को राज्य के पीएम बने, लेकिन 1953 मे प्रेसीडेंट कर्ण सिंह ने उन्हें बर्खास्त कर दिया। इसी बीच नेशनल कान्फ्रेसं के ही एक वरिष्ठ नेता बख्शी गुलाम मोहम्मद राज्य के पीएम बने।
हालांकि बख्शी को हजरतबल की मस्जिद से जुड़ी घटना के बाद 1963 में पीएम का पद छोड़ना पड़ा। इस घाटी में विरोध हुआ और अक्टूबर 1963 मे ख्वाजा शम्सुदीन राज्य के पीएम बनाए गए। फरवरी 1964 में ख्वाजा को भी पद से हटाया गया और जीएम सादिक नए पीएम बने। मार्ट 1965 में पीएम का पद बदलकर इसे मुख्यमंत्री का पद बना दिया गया औऱ सादिक राज्य के पहले सीएम बने।
सीएम से बदला पीएम का पद
1967 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने पूर्ण बहुमत प्राप्त किया और 61 सीटें जीतीं। भारतीय जन संघ ने तीन सीटें जीती वहीं बख्शी गुलाल मोहम्मद की नेशनल कांग्रेस को महज आठ सीटें मिली। 12 दिसबंर 1971 को सादिक का निधन हो गया और उनके स्थान पर सैयद मीर कासिम को राज्य का सीएम बनाया गया।
हालांकि उनके हिस्से से ये पद सिर्फ 25 फरवरी 1975 तक रहा,क्योंकि उस वक्त इंदिरा-शेख समझौता हो गया और उन्हें वो कुर्सी छोड़नी पड़ी। हालांकि बाद में कांग्रेस ने शेख अब्दुल्ला को दिया समर्थन वापस ले लिया और यहां पर राष्ट्रपति शासन लग गया। 1977 के विधानसभा चुनाव में नेशनल कांन्फ्रेंस को जबरदस्त जीत मिली और शेख अब्दुल्ला को सीएम बनाया गया। इसके बाद 8 सितंबर 1982 को शेख अब्दुल्ला का निधन हो जाने पर उनके बेटे फारुक अब्दुल्ला को राज्य का सीएम बनाया गया।
यह भी पढ़ें