आज है पापमोचनी एकादशी, ऐसे करें भगवान विष्णु की पूजा एक मंत्र से कट जाएंगे सारे पाप
मार्च का महीना खत्म हो रहा है और 1 अप्रैल से चैत्र का महीना शुरु हो रहा है। 1 अप्रैल को चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी है। इस एकादशी को पापमोचनी एकादशी भी कहते हैं। इस तिथि पर भगवान विष्णु की विशेष पूजा-अर्चना होती है। साथ ही सोमवार को भगवान शिव की पूजा का महत्व है। ऐसे में एकादशी और सोमवार का योग होने से इस दिन विष्णुजी के साथ ही शिवजी की पूजा भी जरुर करें। भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर साल भर की सभी एकादशी का महत्व बताया था। एकादशी बहुत ही महत्वपूर्ण होती है । इस दिन किए जाने वाले व्रत- उपवास पूजा- पाठ करने से सभी तरह के पाप खत्म हो जाते हैं।
कैसे करें एकादशी की पूजा
- एकादशी की पूजा के लिए सबसे पहले सुबह दैनिक क्रिया से निवृत होकर स्नान कर लें। इसके बाद साफ कपड़े पहनकर भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने बैठकर व्रत का संकल्प लें।
- व्रत करने वाले व्यक्ति को उपवास अच्छे तरीके से करना चाहिए और दिन भर अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए। अगर आपको दिक्कत हो रही हो तो एक वक्त का फलाहार कर सकते हैं। इसके बाद भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा करें।
- अगर आपको पूजा के लिए कोई ब्राह्मण मिल जाए तो ये और भी बेहतर होगा। भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान करवाए। इसके बाद चरणामृत ग्रहण करें। पूजा में ऊं नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करना चाहिए।
- भगवान को फूल, धूर नैवेद्य आदि सामान चढ़ाने चाहिए। इसके बाद दीपक जलाएं और विष्णु सह्स्त्रनाम का जाप करें। व्रत की कथा जरुर सुनें। साथ ही दूसरे दिन यानी की द्वादशी पर ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान देकर आशीर्वाद भी लें।
एकादशी पर करें ये शुभ काम
- किसी भी मंदिर जाएं और हो सके तो झंडे का दान करें शिवजी के सामने दीपक जलाएं और श्रीराम नाम का जाप 108 बार करें। शिवलिंग पर जल चढ़ाएं और काला तिल भी चढ़ाएं।
- एकादशी पर सुबह की पूजा के बाद जब सूर्यास्त हो जाए तो हनुमान जी के सामने दीपक जलाएं और सीताराम सीताराम का जाप 108 बार करें। सुबह तुलसी का जल चढ़ाएं और शाम को तुलसी के पास दीपक जलाएं।
- विष्णुजी के साथ ही महालक्ष्मी की पूजा भी करें। पूजा में गोमती चक्र, पीली कौड़ी, दक्षिणावर्ती शंख अवश्य रखें। इससे पूजा का सही फल मिलता है।
पापमोचनी एकादशी की व्रत कथा
युद्धिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम, व्रत करने का फल और विधि के बारे में पूछा था। जवाब में श्रीकृष्ण ने कहा कि राजा मान्धाता ने लोमेश ऋषि से ये ही प्रश्न पूछा था और फिर ये कथा सुनाई। प्राचीन समय में चैत्र रथ नाम का एक सुंदर वन था। उस वन में गंधर्व कन्याएं सदैव क्रीड़ा किया करती थीं। उसी वन में इंद्र भी अन्य देवताओं के साथ मिलकर क्रिड़ा किया करते थे। उस वन में परम शिवभक्त मेधावी नाम के मुनि भी तपस्या करते थे।
एक बार मंजुघोषा नाम की एक सुंदर अप्सरा थी जो मुनि को मोहित करने का प्रयास कर रही थी। उस समय कामदेव भी शिवभक्त मोधावी मुनि पर विजय प्राप्त करने का प्रयास कर रहे थे। कामदेव ने इसे एक अच्छा अवसर समझा और मंजुघोषा की भृकुटी को धनुष बनाया उसके कटाक्ष की प्रत्यंचा बांधी , नेत्रों को संकेत बनाया और कुचों को बाण बनाकर मंजुघोषा को सेना नायक बनाकर मुनि पर प्रहार कर दिया।
अप्सरा प्रेम में लीन हो गए मुनि
मुनि तपस्या में लीन थे, लेकिन उस वक्त वो काफी हष्ट पुष्ट और युवा थे। मुनि के सामने जब अप्सरा आई तो उसके गीत और स्वरूप को देखकर वो मंत्रमुग्ध हो गए। मंजुघोषा के रुप और यौवन में पूरी तरह डूब गए। ये जानकर की वो उन्हें पसंद करती हैं उसे अपने गले से लगा लिया। दोनों पेड़ के तनों की तरह एक दूसरे से प्रेम भाव में लिपटे रहे और ना जाने कितने ही काल बीत गए। मुनि को समय का ध्यान ना रहा। एक दिन मंजुघोषा ने कहा कि हे मुनि, बहुत काल बीत गए हैं अब आप मुझे स्वर्ग जाने की आज्ञा दें।
मुनि उसके आकर्षण में इतने खोए थे कि उन्हें वक्त का पता नहीं था। उन्होंने कहा- हे सुंदरी तुम्हें आए तो कुछ ही वक्त हुआ है। कुछ वक्त और ठहरे। मंजुघोषा उनकी बात मानकर कुछ पल के लिए औऱ ठहर गई। कुछ समय और बीतने पर उसने फिर स्वर्ग जाने की आज्ञा मांगी और मुनि ने फिर मना कर दिया। मंजुघोषा ने कुछ समय बाद हठ पकड़ा की आपको समय का ज्ञान नहीं हो रहा है कृपा करके मुझें जाने दें। मुनि कोज जब होश आया तो उन्होंने पाया कि 57 वर्ष 7 माह और 3 दिन बीत चुके हैं।
क्रोध में दिया अप्सरा को श्राप
मुनि क्रोधित हो गए। उन्होंने अप्सरा को श्राप दे दिया और कहा – दुष्ट, तु पिशाचनी बन जा, तू महापापिनी है औऱ दूराचारिणी है, तुझे धिक्कार है। मुनि का श्राप लगते ही अप्सरा कुरुप पिशाचनी बन गई। उसने प्रार्थना करके मुनि कहा कि मुझ पर इतना क्रोध मत दिखाइये।
मुनि का क्रोध शांत हुआ तो उन्होंने कहा कि तूने मेरा बुरा तो बहुत किया है, लेकिन मैं तुझे इस श्राप से मुक्ति दिलाउंगा। उन्होंने कहा कि चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की पाप मोचिनी एकादशी का व्रत करने से तेरी ये पिशाचनी देह छूट जाएगी और मुनि ने उसे व्रत की विधि भी बताई। इसके बाद वो अपने पिता च्यवन ऋषि के पास चले गए। पिताजी ने उनका ये रुप देखकर उन्हें भी कृष्ण पक्ष की पाप मोचनी एकादशी का व्रत करने को कहा जिससे उनके सारे पाप कट जाए। इसका बाद मंजुघोषा के साथ साथ मुनि ने भी व्रत किया और दोनों पाप से मुक्त हो गए।
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