अध्यात्म

चैत्र नवरात्रीः कन्या भोजन के बाद भूलकर भी ना करें ये काम, मां दुर्गा हो जाएंगी क्रोधित

6 अप्रैल से नवरात्रि का पर्व शुरु हो रहा है और 14 तारीख को श्रीराम नवमी मनाई जाएगी। नवरात्रि के पावन दिनों में लोग मां को प्रसन्न करने के लिए पूजा पाठ करते हैं। नवरात्र के आठवें दिन अष्टमी के दिन सुबह कन्या भोजन करवाया जाता है। कुछ लोग अष्टमी के बजाय नवमी के दिन पूजन करते हैं, लेकिन अष्टमी के दिन पूजन करना ज्यादा बेहतर रहता है। हालांकि कन्या पूजन कराने के बाद ये तीन काम भूल से भी नहीं करना चाहिए।

क्यां ना करें

कन्या जब भोजन करके घर से चली जाए  तो भूलकर भी सफाई ना करें। यहां तक की झाड़ू भी ना लगाए। ये कार्य कन्या पूजन से पहले करें।

कन्या भोजन के बाद गंदे कपड़ें ना धोएं, ये काम एक दिन पहले ही कर लें। घर में पहले से ही साफ सफाई कर लें और गंदे कपड़ों के बीच कन्याओं को भूल से भी भोजन ना कराएं।

पूजन के बाज घर के सदस्यों को नहाना, सिर धोन, नाखून काटने जैसा काम नहीं करना चाहिए। पूजन के बाद सभी सदस्यों को सिर्फ भोजन करके अपना काम करना चाहिए किसी तरह की साफ सफाई ना करें।

कैसे करें कन्या पूजन

  • कन्या पूजन की कोई खास विधि नहीं है, लेकिन फिर भी एक सही तरीके से कन्या पूजन करना चाहिए
  • सबसे पहले एक दिन पहले ही कन्याओ को अपने घर में भोजन का निमंत्र दें।
  • सभी कन्याओं को एक साथ एक ही समय पर बुलाएं।जैसे ही कन्या घर में प्रवेश कर सभी कन्याओं के पैरों कोम थाल में रखवाकर अपने हाथों से पैर धोएं।
  • इसके बाद उन्हें किसी साफ, स्वच्छ और आरामदायक जगह पर बैठाएं।
  • सभी कन्याओं के माथे पर तिलक और अक्षत से टीका लगाएं। साथ ही हाथ में कलावा बांधे।
  • पूजन पूर्ण होने के बाद सभी को भोजन कराए। इस बात का ध्यान रखें कि सभी कन्याएं प्रसन्नतापूर्वक आपके घर भोजन करें।
  • भोजन कराने के बाद उन्हें अपने सामर्थ्य अनुसार दक्षिणा दें। पैर छूकर उनसे आशीर्वाद लें। कोशिश करें की आपके घर में 9 कन्याएं  आएं। साथ ही एक बालक का होना भी आवश्यक हैं। कन्या भोजन करने वाली कन्याएं वहीं होनी चाहिएं जिनके मासिक धर्म ना शुरु हुए हों।

 

मां दुर्गा की कहानी

हंसाली नाम का एक गांव था जो कटरा के पास था। वहां मां वैष्णवी के एक परमभक्त श्रीधर अपनी पत्नी के साथ रहते थे। एक बार नवरात्र की अष्टमी के दिन उन्होंने कन्या पूजन के लिए कन्याओं को बुलाया। मां श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न थी इसलि कन्याओं के बीच ही बैठ गईं। ऐसे में माना जाने लगा कि कन्या भोजन के वक्त मांता भी उन्हीं कन्याओं में आती हैं और भोजन करती हैं।

जब सभी भोजन करके चली गई तो कन्या रुप में मां दुर्गा ने कहा कि पूरे गांव को भंडारे के लिए निमंत्रण दो। श्रीधर ने गुरुगोरखनाथ और बाबा भौरवनाथ को भी शिष्यों सहित निमंत्र दिया। उन्होंने निमंत्रण तो दे दिया, लेकिन उन्हे भोजन की चिंता होने लगीं की कैसे इतने सारे लोगों को भोजन करवाया जाएगा। माता की कृपा से उनके घर में भोजन की कमीं नहीं पड़ी। वहीं जब कन्या रुप में मां भैरवको भोजन परोसने आईं तो उसने हठ किया की वो खीर पूड़ी नहीं खाएगा बल्कि उसे मांस मदिरा चाहिए।

मां ने क्रोधित होकर आगे कदम बढ़ा लिया और भैरव उनका पीछा करने लगा। माता ने त्रिकुट पर्वत पर नौ माह तपस्या की और जब भैरव वहां पहुंचा तो वो आगे निकल गईं और फिर भैरव का वध कर दिया। माता से मुक्ति मिलते ही उसका धड़ गुफा से ऊपर जा गिरा। इसके बाद मां ने उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा की जो भी व्यक्ति मेरे दर्शन करने आएगा और तेरे दर्शन किए बिना ही लौट जाएगा उसकी इच्छाएं अधूरी रह जाएंगी।इसी वजह से जो भी मां दुर्गा के दर्शन करता है वो भैरों बाबा का आशीर्वाद लिए बिना नहीं लौटता।

 

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