परेशानी का समाधान ढूंढने के लिए भगवान पर निर्भर नहीं रहना चाहिए, हमें स्वयं उसका हल ढूंढना चाहिए
पहले के समय में बच्चे आश्रम में जाकर अपने गुरु द्वारा शिक्षा प्राप्त करते थे। उनके लिए गुरु का कहा वचन ही सबकुछ हुआ करता था। ऐसे ही एक आश्रम में कुछ शिष्य रहा करते थे जिन्हें गुरु कोई ना कोई ज्ञान की बाते सिखाते रहते थे। एक बार गुरु ने अपने शिष्यों को सिखाया कि कण कण में भगवान हैं। उन्हें सिर्फ मंदिरों में मत ढूंढों वो तो हर मनुष्य, हर पत्थर, हर मिट्टी सभी चीजों में वास करते हैं। ऐसी कोई जगह नहीं जहां भगवान ना हों।
हर किसी में ईश्वर है
गुरु ने सिखाया की हमें हर किसी में भगवान देखना चाहिए साथ ही ये भी याद रखना चाहिए की हमारे अंदर भी भगवान का वास है। सिर्फ मंदिर में भगवान की मूर्ति औऱ आकाश में उन्हें देखने से भगवान नहीं मान लेना चाहिए। भगवा तो प्रत्येक जीव में हैं और किसी भी वास करते हैं। उनकी ये बातें शिष्यों ने मन में गांठ बांध ली थीं।
एक बार उनका एक शिष्य़ बाजार जा रहा था। तभी उसने देखा की सामने भगदड़ मची है और एक हाथी दौड़ता हुआ उसकी तरफ आ रहा है। हाथी पर सवार महावत लगातार कह रहा था कि हट जाओ, हट जाओ, हाथी पागल हो गया है वो सबको मार डालेगा , रास्ते से हट जाओ। भीड़ भी अपनी जान बचाने के लिए इधर उधर भागने लगीं, लेकिन उनका शिष्य वहीं डटा रहा।
शिष्य को याद आया कि उसके गुरु ने सिखाया था की कण कण में भगवान वास करते हैं तो इस हाथी में भी भगवान हैं और वो उसे कुछ नहीं करेगा। जब हाथी पास आ गया तो महावत ने कहा- भाई हट जा, तुझे मरना है क्या, लेकिन शिष्य अपने मन की बात सुनकर भी उस स्थान पर खड़ा रहा। उसे यकीन था की उसे कुछ नहीं होगा।
हर समस्या के लिए भगवान पर निर्भर ना रहें
इसके बाद वही हुआ जो होना था। मदमस्त हाथी ने सूड़ से शिष्य को उठाकर दूसरी तरफ फेंक दिया औऱ आगे बढ़ गया। उसे बहुत भयंकर दर्द होने लगा। उसे सबसे ज्यादा दुख इस का था कि भगवान ने भगवान को क्यों मारा और गुरुजी की बात झूठ कैसे हो गई। उसके सहपाठी वहीं मौजूद थे वो तुरंत ही उसे उठाकर आश्रम ले गए। वहां गुरुजी ने उसे लेप लगाया।
शिष्य ने गुरु से कहा कि आप तो कहते थे कि प्रत्येक वस्तु में भगवान है, हर किसी में भगवान है। उस हाथी में भी अगर भगवान होता तो वो मुझे क्यों मारता। उसके अंदर के भगवान ने मुझे क्यों नहीं देखा औऱ क्यों इस तरह घायल कर दिया। इस पर गुरु ने कहा पुत्र भगवान तो उस महावत के अंदर में भी था जो तुम्हें रास्ते से हटने के लिए कह रहा था, सुननी तो तुम्हें उसकी बात भी चाहिए थीं।
इसके बाद शिष्य को समझ आ गया कि भगवान तो सबमें हैं, साथ ही उन्होंने सबको बुद्धि भी अलग दी है। जब हमें पता है कि रास्ते से हट जाने से ही हमारा भला होगा तो जानबूझकर हमें हाथी से टक्कर नहीं लेनी चाहिए। हमें अपनी समस्याओं के लिए स्वयं की बुद्धि का इस्तेमाल करना चाहिए और ईश्वर के भरोसे नहीं बैठना चाहिए।
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