अध्यात्म

जानिए कैसे करते हैं चेचक रोग की देवी शीतला मां की पूजा, जानें क्या है पूजा विधि और कथा

होली का पर्व 21 मार्च को था और अब इसके आठ दिन बाद यानी 28 मार्च को शीतला अष्टमी मनाई जाएगी। शीतला अष्टमी होली के आठवें दिन मनाई जाती है।शीतला अष्टमी को बासौड़ा के नाम से भी जानते हैं और ये कृष्ण पक्ष की तिथि को मनाई जाती है। ऐसा माना जाता है कि शीतला अष्टमी के दिन घर में चूल्हा नहीं जलता औऱ खाना पकाकर नहीं बनाते हैं। ये पर्व अष्टमी ऋतु परिवर्तन का संकेत देती है। इन दिनों साफ सफाई का ध्यान देना बहुत जरुरी होता है। साथ ही इस दिन के बाद  बासी खाना भी नहीं खाना चाहिए।

शीतला अष्टमी का शुभ मुहूर्त और रुप

28 मार्च सुबह 6 बजकर 27 मिनट से शाम 6 बजकर 37 मिनट तक है। इस अष्टमी को अलग अलग राज्यों में अलग अलग नामों से जाना जाता है। गुजरात, राजस्थान और यूपी में इसे शीतला अष्टमी कहते हैँ। बसौड़ा और बसोरा के नाम से भी जानते हैं। शीतला माता को चेचक जैसे रोग की देवी माना जाता है। ये हाथों में कलश, सूप, मार्जन और नीम के पत्ते धारण किए होती हैं। गदर्भ की सवारी किए ये अभय मुद्रा में विराजमान हैं।

शीतला अष्टमी की पूजा विधि

  • सबसे पहले सुबह उठकर दैनिक क्रिया से निवृत होकर नहाएं। इसके बाद पूजा की थाली तैयार करें। थाली में दही, पुआ, रोटी, बाजरा, सप्तमी के बने मीठे चावल, नमक पारा और मठरी रखें।
  • एक औऱ थाली सजाएं उसमें आटे से बना दीपक, रोली , वस्त्र, अक्षत, होली, बड़कुली की माला, सिक्के औऱ मेंहदी रखें। दोनों थाली के साथ में लोटे में ठंडा पानी रखें।
  • शीतला माता की पूजा करें और दीपक को जलाए बिना मंदिर में ही रखें। माता को पहले थाली में रखीं सभी चीजें च़ढ़ां दें और घर में सभी सदस्यों को हल्दी का टीका लगाएं।

  • अब हाथ जोड़कर माता से प्रार्थना कें और कहें हे माता मान लेना और शीली ठंडी रहना कहें। घर में पूजा करने के बाद मंदिर में पूजा करें। मंदिर में पहले माता को जल चढ़ाएं और रोली और हल्दी से टीका करें। मेंहदी, मोली और माला अर्पित करें।
  • अंत में एक बार फिर मां को जल चढ़ाए और थोड़ा जल चढ़ाएं इसे घर के सभी सदस्यों की आंख पर लगाएं। इसके बाद जहां होलिका दहन हुआ था वहां पर पूजा करें और थोड़ा जल चढ़ाएं।
  • घर आने के बाद पानी रखने की जगह पर पूजा करें और अगर पूजन सामाग्री बच जाती है तो गाय या ब्राह्मण को दे दें।

क्या है शीतला अष्टमी की व्रत कथा

एक कथा के अनुसार एक गांव में एक बूढ़ी औरत रहती थी। एक दिन उसने और उसकी दोनों बहुओं मे शीतला माता का व्रत रखा। मान्यता है कि इस दिन व्रत में बासी चावल चढ़ाए और खाए जाते हैं, लेकिन बहुओं को इस बात का ध्यान नहीं रहा औऱ उन्होंने सुबह ताजा खाना बना लिया। असल में दोनों की संताने पैदा हुई थीं और बासी खाना खाकर कोई बीमार ना पड़े इसलिए उन्होंने ताजा खाना बना लिया।

कुछ ही समय बिता तो देखा की उनकी सतानों की मृत्यु हो चुकी थी। इस बारे में जब सास को पता चला तो उसने अपनी दोनों बहुओं को घर से बाहर निकाल दिया। दोनों अपने अपने बच्चों के शव को लेकर रोते हुए घर से बाहर चली गई। बीच रास्ते में आराम करने के लिए थोड़ी दूर रुक गई।वहां उन्हें दो बहनें और मिली जिनका नाम शीतला और ओरी था। दोनों अपने सिर में जुएं से परेशान रहती थीं।

दोनों बहनों को परेशान देख बहुओं ने बहनों के सिर की सफाई कर दी। कुछ समय बाद दोनों बहनों को सिर से आराम मिल गया। दोनों को जैसे ही आराम मिला उन्होंने कहा कि तुम्हारी गोद हमेशा हरी रहे। ये सुनकर दोनों बहुएं बिलख बिलख कर रोने लगीं और अपने बच्चों के शव दिखाएं। ये बातें सुनकर बहनें समझ गई की इन दोनों ने ताजा खाना बना दिया इस वजह से इनके साथ ऐसा हुआ है।

दोनों बहुओं ने शीतला मां से माफी मांगी और कहा की आगे से वो ऐसी गलती नहीं करेंगी। मां ने प्रसन्न होकर दोनों के बच्चों को फिर से जीवित कर दिया। इस दिन के बाद से पूरे गांव में शीतला माता का व्रत धूमधाम से मनाया जाने लगा।

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